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Dybbuk Movies Review In Hindi: डिबुक फिल्म रिव्यू: इमरान हाशमी- निकिता दत्ता की हॉरर फिल्म में रोमांच की भारी कमी देखना समय की बर्बादी है,

Dybbuk Movies Review In Hindi: डिबुक फिल्म रिव्यू: इमरान हाशमी- निकिता दत्ता की हॉरर फिल्म में रोमांच की भारी कमी देखना समय की बर्बादी है, 


कुछ फिल्मों को ओरिजनल छोड़ देना ही बेहतर होता है और डिबुक खत्म होने के बाद सबसे पहला ख्याल यही आता है। मलयालम थ्रिलर 'एज्रा' के इस हिंदी रीमेक को बनाने का फैसला क्यों किया गया पता नहीं। यहूदी मिथक और मानयताओं की पृष्ठभूमि पर बनी ये फिल्म ऐसी शक्तियों के बारे में बताती है, जो हम इंसानों के समझ और दायरे से बाहर होती है। 


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Movies Review: Dybbuk
Actor: कलाकार - इमरान हाशमी, निकिता दत्ता, प्रणय रंजन, मानव कौल, डेंजिल स्मिथ 
Director: निर्देशक- जय के 


Movies Story

कहानी शुरु होती है सैम (इमरान हाशमी) से। नौकरी का एक नया अवसर सैम और माही (निकिता दत्ता) को मुंबई से मॉरीशस जाने का मौका देता है। अलग धर्म में शादी करने की वजह से माही का परिवार सैम से दूरी बनाकर रखता है। अपने गर्भपात से उबरने के लिए संघर्ष करते हुए माही को विदेश में नए सिरे से शुरुआत करने की उम्मीद है। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर है। ये नई शुरुआत बड़ी मुसीबतों का आगाज है।


Theem:

माही अपने घर की सजावट के लिए सामानों की खरीददारी कर रही होती है, जब उसकी नजर एक खूबसूरत नक्काशीदार बॉक्स पर जाती है। 16 वीं शताब्दी के इस बॉक्स को वह घर लेकर आती है और उसकी खूबसूरती और रहस्य से मोहित वह बॉक्स को खोलती है। वह बॉक्स दरअसल एक डिबुक है। जैसे ही माही उस बॉक्स को खोलती है, उसमें से एक आत्मा निकलकर माही के शरीर में प्रवेश कर जाती है। एक ऐसी आत्मा जो जब तक सब बर्बाद ना कर दे, रूकती नहीं। इसके बाद उस घर में असामान्य घटनाएं होनी शुरु हो जाती हैं। सैम भूत प्रेत पर विश्वास नहीं करता लेकिन इन चीजों से निपटने के लिए वह फादर गेब्रियल की मदद लेता है। इस बीच कई तरह के ट्विस्ट आते हैं। सैम अपनी पत्नी को बुरी आत्मा के चंगुल से बचाने के लिए कहां तक जाएगा, आगे की कहानी इसी के इर्द गिर्द घूमती है।


Acting

अभिनय की बात करें को इमरान हाशमी अपने किरदार में दमदार हैं। निकिता दत्ता, मानव कौल समेत बाकी कलाकारों ने भी अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है, लेकिन कहानी उन्हें एक सीमित दायरे के बाहर निकलने का मौका ही नहीं देती है। जय के के निर्देशन में बनी यह फिल्म हॉरर की दुनिया से कुछ भी नया नहीं परोसती है, इक्के दुक्के दृश्य को छोड़कर कोई भी सीन सिहरन पैदा नहीं करते। लिहाजा, हर बढ़ते मिनट के साथ बोर करती है। डिबुक में बंद आत्मा की कहानी में रोमांच की कमी है, जो फिल्म को और कमजोर बनाती है। खासकर फिल्म का क्लाईमैक्स निराश करता है। फिल्म के स्पेशल इफैक्ट्स और बैकग्राउंड स्कोर एक पॉजिटिव पक्ष है। फिल्म के पक्ष जो काम नहीं करता है, वो है हर कदम पर रहस्य पैदा करने की कोशिश। लगभग 1 घंटा 52 मिनट की डिबुक दूसरी हॉरर-थ्रिलर फिल्मों से अलग होने की कोशिश करती है, लेकिन यह कोशिश विफल है।


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