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yakshini ki kahani in hindi - यक्षिणी क्या है यक्षिणी कितने प्रकार की होती है - अप्सरा और यक्षिणी में अंतर

yakshini ki kahani in hindi यक्षिणी क्या है यक्षिणी कितने प्रकार की होती है - अप्सरा और यक्षिणी में अंतर.


yakshini ki kahani in hindi

हिन्दू धर्मशास्त्रों में मनुष्येतर जिन प्राणिजातियों का उल्लेख हुआ है उनमें देव गन्धर्व यक्ष किन्नर नाग राक्षस पिशाच आदि प्रमुख हैं। इन जातियों के स्थान जिन्हें लोक कहा जाता हैभो मनुष्यजाति के प्राणियों से भिन्न पृथ्वो से कहीं अन्यत्र अवस्थित हैं। इनमें से कुछ जातियों का निवास आकाश में और कुछ का पाताल में माना जाता है। इन जातियों का मुख्य गुण इनको सार्वभौमिक सम्मन्नता है अर्थात् इनके लिए किसी वस्तु को प्राप्त कर लेना अथवा प्रदान कर देना सामान्य बात है । ये जातियाँ स्वयं विविध सम्पत्तियों की स्वा मिनी हैं। मनुष्य जाति का जो प्राणी इनमें से किसी भी जाति के किसी प्राणी की साधना करता है अर्थात् उसे जप होम पूजन आदि द्वारा अपने ऊपर अनुरक्त कर लेता है उसे ये मनुष्येतर जाति के प्राणी उसकी अभिलाषित वस्तु प्रदान करने में समर्थ होते हैं। इन्हें अपने ऊपर प्रसन्न करने एवं उस प्रसन्नता द्वारा अभिलषित वस्तु प्राप्त करने की दृष्टि से ही इनका विविध मन्त्रोपचार आदि के द्वारा साधन किया जाता है जिसे प्रचलित भाषा में सिद्धि कह कर पुकारा जाता है। यक्षिणियाँ भी मनुष्येतर जाति की प्राणी हैं । ये यक्ष जाति के पुरुषों की पत्नियाँ हैं और इनमें विविध प्रकार की शक्तियाँ सन्निहित मानी जाती हैं। 


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yakshini ki kahani in hindi विभिन्न नामवारिणी यक्षिणियाँ 

विभिन्न शक्तियों से सम्पन्न हैं ऐसी तान्त्रिकों को मान्यता है । अतः विभिन्न कार्यों की सिद्धि एवं विभिन्न अभिलाषानों को पूति के लिए तंत्रशास्त्रियों द्वारा विभिन्न यक्षिणियों के साधन की क्रियाओं का आविष्कार किया गया है । यक्ष जाति चूँकि चिरंजीवी होती है अतः यक्षिणियां भी प्रारम्भिक काल से अब तक विद्यमान हैं और वे जिस साधक पर प्रसन्न हो जाती हैं उसे अभिलषित वर अथवा वस्तु प्रदान करती हैं। अब से कुछ सौ वर्ष भारतवर्ष में यक्षपूजा का अत्यधिक प्रचलन था । अब भो उत्तर भारत के कुछ भागों में जखैया के नाम से यक्ष पूजा प्रचलित है । पुरातत्त्व विभाग द्वारा प्राचीन काल में निर्मित यक्षों की अनेक प्रस्तर मूर्तियों की खोज की जा चुकी है। देश के विभिन्न पुरातत्त्व संग्रहालयों में यक्ष तथा यक्षिणियों की विभिन्न प्राचीन मूर्तियाँ भी देखने को मिल सकती हैं । लोग यक्ष तथा यक्षिणियों को देवता तथा देवियों की ही एक उपजाति के रूप में मानते हैं और उसी प्रकार उनका पूजन तथा आराधनादि भी करते हैं । इनकी संख्या सहस्रों में हैं। 


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yakshini ki kahani in hindi दश महाविद्या क्या है 

१ काली 

२ तारा 

३ महाविद्या 

४ भुवनेश्वरी 

५ भैरवी 

६ छिन्नमस्ता 

७ धूमावती 

८ बगलामुखी 

९ मातंगी और 

१० कमलये 


yakshini ki kahani in hindi दस देवियाँ दश महाविद्या के रूप में प्रसिद्ध हैं। 

यथार्थ में ये सभी देवियाँ एक ही आदि शक्ति जिसे शिवा दुर्गा पार्वती अथवा लक्ष्मी कहा जाता है की प्रतिमूर्तियाँ हैं। इन सबके स्वामी पति भगवान् सदाशिव हैं । साधकों की प्रसन्नता के लिए विभिन्न अवसरों पर पराशवित महादेवी ने अपने जो विविध रूप धारण किये हैं उन्हीं का दश महाविद्याओं के रूप में पृथक्पृथक् जप ध्यान एवं पूजन आदि किया जाता है । भगवती महादेवी के ये सभी रूप अपने भक्तों तथा साधकों को प्रसन्नता एवं अभिलषित वस्तु प्रदान करने वाले हैं। आदि शक्ति की उपासना का विधान भी हमारे देश में सहस्रों वर्षों से चला आ रहा है और शाक्त मत के नाम से इनकी उपासना करने वालों का एक पृथक् सम्प्रदाय ही बन गया है । 

yakshini ki kahani in hindi श्रद्धा विश्वास और धैर्य की धारणा

किसी भी साधन को प्रारम्भ करने से पूर्व साधक को उसके प्रति पूर्ण श्रद्धावान् विश्वासी अर्थात् प्रास्थावान् एवं धैर्यवान् होना आवश्यक है । जो साधक साधन के प्रति अश्रद्धा अथवा अनास्था रखते हैं उन्हें सिद्धि प्राप्त नहीं होती। अतः साधक को चाहिए कि यदि किसी साधन के विषय में उसके मन में तनिक भी सन्देह हो तो उसे करना कदापि प्रारम्भ न करे। इसी प्रकार साधनाकाल में साधक का धैर्यवान् होना परम आवश्यक है। जो साधक साधन में आने वाली कठिनाइयों के कारण अपना धैर्य तथा साहस छोड़ बैठते हैं उन्हें भी सिद्धि प्राप्त नहीं होती । 


yakshini ki kahani in hindi होम तांत्रिक जप पूजन और होम की विधियाँ

अनेक बार ऐसा भी सुना और देखा गया है कि साधनाकाल में आने वाली कठिनाइयों से विचलित हो जाने के कारण साधक को शारीरिक अथवा अन्य प्रकार की हानियाँ उठानी पड़ी हैं। अतः जब साधक में कठिनाइयों से लोहा लेने का साहस न हो तब तक उसे किसी भी साधन में प्रवृत्त नहीं होना चाहिए तान्त्रिक साधनों का मार्ग खतरों से भरा हुआ बताया गया है। इसमें तनिक सी भी असावधानी प्रमाद भूल अथवा साहसहीनता साधक के लिए प्राणघातक सिद्ध हो सकती है। जप और पूजन की विधियाँ प्रस्तुत ग्रंथ में जिन साधनों का वर्णन किया गया है उनके जप पूजन तथा होमादि की संक्षिप्त विधियाँ प्रत्येक प्रयोग के साथ दे दो गई हैं । फिर भी उनके विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर लेना प्रत्येक साधक के लिए आवश्यक है। प्रत्येक देवीदेवता के जप पूजन की विधियों का विस्तृत वर्णन महा इन्द्रजाल के और होम तांत्रिक जप पूजन और होम की विधियाँ नामक खण्ड में किया गया है। 


yakshini ki kahani in hindi  कर्मकाण्ड एवं तन्त्रशास्त्र.

साधकों को चाहिए कि वे किसी भी साधन को प्रारम्भ करने से पूर्व उस साधन में प्रयुक्त होने वाले जप पूजन तथा होम की विधियों की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए उक्त खण्ड को अवश्य पढ़ लें और उसी के निर्देशानुसार सब कार्य करें। जो साधक उक्त खण्ड को न लेना चाहें उन्हें चाहिए कि वे जप पूजन तथा होम की सर्वांगपूर्ण विधि का ज्ञान किसी कर्मकाण्ड एवं तन्त्रशास्त्र के ज्ञाता विद्वान् व्यक्ति से अवश्य प्राप्त कर लें। इस ज्ञान को प्राप्त किये बिना साधन में सफलता प्राप्त होना असंभव है। उदाहरण के लिए किसी स्थान पर षोडशोपचार पूजन का विधान कहा गया है तो किसी स्थान पर अन्य प्रकार से पूजनहोमादि करने की व्यवस्था बताई गई है तो जब तक साधक को उन सब विधियों का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं होगा तब तक वह उन्हें प्रयुक्त किस प्रकार कर सकेगा इसलिए जप पूजन एवं होम की विधियों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर लेना अत्यावश्यक है।

 

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yakshini ki kahani in hindi  इन्द्रजाल के यन्त्र सिद्धि तथा मन्त्र

सिद्धि नामक खण्डों में यन्त्रों तथा मन्त्रों के लेखन यक्षिणी साधन कामरलोक्त यक्षिणी साधन विधि अब कामरत्न नामक तन्त्रग्रन्थ में उल्लिखित यक्षिणीसाधन की विधियों का वर्णन किया जाता है। उक्त ग्रन्थ में लिखा है कि साधनकाल में तथा उसके पश्चात् साधक को चाहिए कि वह मांस मदिरा एवं ताम्बूल पानका परि त्याग कर दे और किसी का स्पर्श न करे। साधनकाल में प्रतिदिन प्रातःकाल नित्यकर्म से निवृत्त हो स्नान करके किसी एकान्त स्थान में मृगचर्म पर बैठकर मन्त्र का तब तक जप करे जब तक कि सिद्धि प्राप्त न हो। जिस यक्षिणी के साधन में जिस विधि का उल्लेख किया गया हैं उसी के अनुसार आचरण करना चाहिए । यक्षिणी का ध्यान करते समय उसका माता भगिनी पुत्री अथवा मित्र के रूप में चिन्तन करना चाहिए, 



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