ब्रह्मऋषि सत्य नारायण शर्मा जी के अनुसार मन की एकाग्रता बढ़ाने के उपाय ध्यान और उपासना के अभ्यास।
तनुमानसा निदिध्यासन (ध्यान और उपासना के अभ्यास) से मानसिक एकाग्रता प्राप्त होती है, उसके द्वारा जो सूक्ष्म वस्तु के ग्रहण करने की सामर्थ्य प्राप्त होती है उसे तनुमानसा कहते हैं।
सच्चिदानंदघन परब्रह्म परमात्मा का चिन्तन करते-करते उस परमात्मा में तन्मय हो जाना तथा अत्यन्त वैराग्य और उपरतिके कारण परमात्माके ध्यान में नित्य स्थित रहनेसे मनका विशुद्ध होकर सुक्ष्म हो जाना ही तनुमानसा नामकी तीसरी भूमिका है, अतः इसे निदिध्यासन भूमिका भी कहा जाता है।
उपर्युक्त तीन भूमिकाएं जाग्रत भूमिकाएं कहलाती है। क्योंकि इनमें जीव और ब्रह्म का भेद स्पष्ट ज्ञात होता है। इन भूमिकाओं में स्थित व्यक्ति को साधक कहा जाता है, ज्ञानी नहीं। क्योंकि तीनों अवस्थाओं में तत्त्वज्ञानके प्राप्ति योग्यता प्राप्त होती है, ब्रह्मज्ञान नहीं प्राप्त होता। अर्थात् इन तीनों भूमिकाओं में विचरता हुआ पुरुष ब्रह्ममें अभेद भाव को प्राप्त नहीं होता। परंतु ज्ञान की प्राप्ति के लिए इनकी पहले अत्यंत आवश्यकता होनेके कारण इनकी गणना अज्ञानकी भूमिका में न होकर ज्ञानकी भूमिका में ही होती है।
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