राकेश टिकैत मंच पर रो रहा है। आत्महत्या की बातें कर रहा है।
4 दर्जन किसान नेताओं के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी हो गया है। लाल किला मामले में राजद्रोह का मुकदमा चलेगा। पुलिस पर हमलों के मामलों में UAPA लगाए जाने की तैयारी है। अमित शाह ने खुद अस्पतालों में जाकर एक-एक घायल पुलिसकर्मी से मुलाकात की। उत्तर प्रदेश की सीमा पर उपद्रवियों की कुटाई हो रही है सो अलग। उनमें फूट भी पड़ गई है। कई भाग निकले तो। नरेश टिकैत अब राकेश टिकैत के विरोध में हैं। अपने ही गिरोह के दीप सिद्धू पर सारे दोष डाल रहे वो, लेकिन नपेंगे सब। राजदीप सरदेसाई की नौकरी गई।
हम सबने लालू यादव, मुलायम सिंह, करुणानिधि और शरद पवार जैसे नेताओं की राजनीति देखी है।
एक से बढ़ कर एक घाघ नेता देखे। लेकिन, इस खेल को जिस तौर-तरीके से मोदी-शाह खेलते हैं, वो मैंने आज तक नहीं देखा। जब राष्ट्र के लिए लंबे समय तक टिक कर कार्य करना है तो कड़े संयम और जनभावनाओं का सम्मान, दोनों के बीच संतुलन बना कर चलना पड़ेगा। जनभावना कहती थी प्रदर्शनकारियों को मारो, जम कर पीटो। संयम कहता था कि उन्हें गुंडागर्दी करने दो, समय को समय दो और जनता खुद अंत में उन पर थूकेगी। फिर पेलो। सरकार ने दोनों कर दिया। आइए देखते हैं।
ज्योति राघोबा जगताप, सागर तत्यराम गोरखे, रमेश मुरलीधर गैचोर, सुधीर धवले, सुरेंद्र गडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, रोम विल्सन, अरुण फरेरिया, सुधार भारद्वाज, वरवरा राव, वेर्नोन गोंजाल्विस, आनंद तेलतुंबड़े, गौतम नवलखा, हनी बाबू और फादर स्टेन स्वामी - ये 16 जेल में बंद वो अर्बन नक्सली हैं, जिन्होंने भीमा-कोरेगाँव में हिंसा करवाई थी। आज इनके लिए कोई आवाज़ नहीं उठाता इनके ही गिरोह से। क्यों? ये अप्रासंगिक हो गए हैं। कर दिए गए हैं। कभी इनकी तूती बोलती थी। कोई प्रोफेसर है तो कोई पादरी, कोई कवि है तो कोई एक्टिविस्ट। कभी जलवा था इनका!
शरजील इमाम, उमर खालिद, इशरत जहाँ, फैसल फारूक, ताहिर हुसैन और देवांगना कलीता - ऐसे दर्जनों हैं जो दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों के कारण जेल में बंद हैं। कभी इन पर हाथ डालना भी मुश्किल था। लगभग 1500 से भी अधिक ऐसे आरोपित हैं, जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया। सफूरा जरगर और खालिद सैफी जमानत पाने में कामयाब रहे। ये सभी कोर्ट में रोते रहते हैं कि जेल में इन्हें ठीक से नहीं रखा जा रहा। हाँ, मौलाना साद ज़रूर बाहर है। लेकिन, उसने अपनी ही समुदाय में कोरोना फैलाया और हिंदुओं को उसकी करतूतों से शायद ही नुकसान हुआ हो।
अब आइए, दिल्ली में 26 जनवरी को हुई घटना की पड़ताल करते हैं। 300 पुलिसकर्मी घायल हुए। राकेश टिकैत अब पूछ रहा है कि गोली क्यों नहीं चलाई पुलिस ने? सुप्रीम कोर्ट की कमिटी से बातचीत करने से इनकार करने वाले अब SC की कमिटी की जाँच माँग रहे। गिद्ध पत्रकार पूछ रहे हैं कि वहाँ पर बड़ी संख्या में पुलिस क्या कर रही थी जो घुस गए किसान। यानी, इनकी मंशा ही थी कि गोली चले और एक बड़ा दंगा हो जिसमें सैकड़ों लोग मर जाएँ। लाशों की राजनीति पर तो ये माहिर हैं ही। गोली चलती तो इधर से भी प्रतिक्रिया बड़ी होती और हताहतों की संख्या का अंदाज़ा मुश्किल होता। सरकार ने संयम बरता, पुलिस ने संयम रखा और काम बन गया।
मैं देख रहा हूँ कि गाँवों में जो लोग इन किसानों का समर्थन कर रहे थे, अब वही पूछ रहे हैं कि सरकार के इतना झुकने के बावजूद इस तरह की हरकत क्यों? सबने देखा कि सरकार ने 12 दौर की वार्ताएँ की, सबकी बात सुनी बार-बार। इन्हें मिल रहा रहा-सहा समर्थन भी खत्म हो रहा है। तभी तो दिल्ली की सीमाओं पर से ग्रामीण ही इन्हें भगा रहे हैं। कुत्तों की तरह खदेड़े जा रहे हैं ये लोग। लाल किला वैसे भी मुगलों का बनवाया हुआ है, भले ही माल हिंदुओं से लूटा गया - उसे ध्वस्त ही कर देना चाहिए था। हाँ, तिरंगे के अपमान की कीमत इन्हें चुकानी पड़ेगी और उसी की तैयारी हो रही।
जिसके पास हजारों लाठियाँ और बंदूकें हैं, उनके लिए लट्ठ बजाना और गोलीबारी करवाना बड़ा काम नहीं है। जम्मू कश्मीर में इसी सरकार ने पत्थरबाजों की नाक में दम किया है और आतंकियों का सफाया किया है। आज वहाँ शांति लौट रही है। अगर इस सरकार ने दिल्ली में बर्दाश्त किया और सहनशक्ति दिखाई तो यही कारण है। आक्रोशित मैं भी था, लेकिन कॉन्ग्रेस ने बाबा रामदेव और अन्ना हजारे पर यही तरीके अपनाए थे। अंतर ये है कि वो लोग सही थे, आज वाले गलत हैं। लेकिन 'पब्लिक सेंटीमेंट' को मोड़ना पड़ता है। आज यही किसान नेता जूते खाएँगे और कोई समर्थन नहीं करेगा।
भाजपा एक राजनीतिक पार्टी है। कल को वो सत्ता में न रही तो सारे किए-कराए धरे रह जाएँगे। मोदी को हम में से बहुत ट्रम्प बनने की सलाह देते थे लेकिन अमेरिका में ट्रम्प की बेइज्जती हुई और उन्हें जाना पड़ा। मैं इसे 'Masterstroke' नहीं कह रहा, ये मोदी-शाह का तरीका ही है। दुश्मन को अप्रासंगिक कर के कमजोर कर देते हैं, जनता को उनकी करतूतें दिखा देते हैं और फिर उन्हें सज़ा मिलती है। कल को मोदी का पंजाब दौरा होगा तो वो वहाँ जरूर ये एहसान याद दिलाएँगे कि कैसे उन्होंने गोली न चलवा कर हजारों की जान बचाई है। चुनाव आ रहे वहाँ। देश को खंडित करने की साजिश विफल हुई।
इसीलिए, राष्ट्रनीति के बीच में राजनीति हो तो हमें घबराना नहीं है। किसने सोचा था कि पुण्य प्रसून वाजपेयी, अभिसार शर्मा, बरखा दत्त और विनोद कापड़ी जैसे लोग आज बेरोजगार बैठे रहेंगे। अब राजदीप का नाम जोड़ लीजिए। जनता का एक बड़ा हिस्सा न्यूट्रल है, जिसे हिंदुत्व की राह दिखानी बाकी है। उसे कोई कह देता है कि किसान नाराज़ है तो वो मान लेती है। 26 जनवरी के बाद वो नहीं मानेगी। CAA वापस नहीं हुआ। NRC अभी भी है। सरकार संयम से काम ले रही, हम भी धैय रखें। हाँ, वामपंथियों को बेनकाब करने का कार्य जारी रखें। सरकार और दबाव बनाते रहें।
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