Garud Puran यमलोक जाने का रास्ता किस प्रकार का होता है किस प्रकार से पापी जीव दुख पाते हैं। भगवान केशव ने बताया कि गरुड़ पुराण में मरने के बाद क्या होता है। गरुड उवाच!
कीदृशो यमलोकस्य पन्था भवति दुःखदः। तत्र यान्ति यथा पापास्तन्मे कथय केशव॥१॥
गरुड जी ने कहा-हे केशव! यमलोक का मार्ग किस प्रकार दुःखदायी होता है। पापी लोग वहाँ किस प्रकार जाते हैं, वह मुझे बताइये॥१॥
यममार्गं महहुःखप्रदं ते कथयाम्यहम् ।
मम भक्तोऽपि तच्छुत्वा त्वं भविष्यसि कम्पितः॥२॥
वृक्षच्छाया न तत्रास्ति यत्र विश्रमते नरः।
यस्मिन् मार्गे न चान्नाद्यं येन प्राणान् समुद्धरेत्॥३॥
न जलं दृश्यते क्वापि तृषितोऽतीव यः पिबेत्।
तप्यन्ते द्वादशादित्याः प्रलयान्ते यथा खग॥४॥
श्रीभगवान् बोले-
हे गरुड! महान् दुःख प्रदान करने वाले यममार्ग के विषयमें मैं तुमसे कहता हूँ, मेरा भक्त होनेपर भी तुम उसे सुनकर काँप उठोगे॥२॥
यममार्ग में वृक्षकी छाया नहीं है, जहाँ प्राणी विश्राम कर सके। उस यममार्ग में अन्न आदि भी नहीं हैं, जिनसे कि वह अपने प्राणोंकी रक्षा कर सके॥३॥
हे खग! वहाँ कहीं जल भी नहीं दीखता, जिसे अत्यन्त तृषातुर वह (जीव) पी सके। वहाँ प्रलयकालकी भाँति बारहों सूर्य तपते रहते हैं ॥४॥
कण्टकैर्विध्यते क्वापि क्वचित्सर्महाविषैः॥५॥
सिंहैात्रैः श्वभि|रैर्भक्ष्यते क्वापि पापकृत् ।
वृश्चिकैदश्यते क्वापि क्वचिद्दह्यति वह्निना॥६॥
ततः क्वचिन्महाघोरमसिपत्रवनं महत् ।
योजनानां सहस्त्रे द्वे विस्तारायामतः स्मृतम्॥७॥
उस मार्गमें जाता हुआ पापी कभी बर्फीली हवासे पीडित होता है तथा कभी काँटे चुभते हैं और कभी महाविषधर सर्पोके द्वारा डंसा जाता है॥५॥
(वह) पापी कहीं सिंहों, व्याघ्रों और भयंकर कुत्तोंद्वारा खाया जाता है, कहीं बिच्छुओंद्वारा डॅसा जाता है और कहीं उसे आगसे जलाया जाता है॥६॥
तब कहीं अति भयंकर महान् असिपत्रवन नामक नरकमें वह पहुँचता है, जो दो हजार योजन विस्तारवाला कहा गया है॥७॥
सदावाग्नि च तत्पत्रैश्छिन्नभिन्नः प्रजायते॥ ८॥
क्वचित् पतत्यन्धकूपे विकटात् पर्वतात् क्वचित् ।
गच्छते क्षुरधारासु शंकूनामुपरि क्वचित्॥ ९ ॥
स्खलत्यन्धे तमस्युग्रे जले निपतति क्वचित् ।
क्वचित् पङ्कजलौकाढये क्वचित् संतप्तकर्दमे॥१०॥
वह वन कौओं, उल्लुओं, वटों (पक्षिविशेषों), गीधों, सरघों तथा डाँसोंसे व्याप्त है। उसमें चारों ओर दावाग्नि व्याप्त है, असिपत्रके पत्तोंसे वह (जीव) उस वनमें छिन्न-भिन्न हो जाता है॥८॥
कहीं अंधे कुँएमें गिरता है, कहीं विकट पर्वतसे गिरता है, कहीं छूरेकी धारपर चलता है तो कहीं कीलोंके ऊपर चलता है॥९॥
कहीं घने अन्धकारमें गिरता है, कहीं उग्र (भय उत्पन्न करनेवाले) जलमें गिरता है, कहीं जोंकोंसे भरे हुए कीचड़में गिरता है तो कहीं जलते हुए कीचड़में गिरता है॥१०॥
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