वाल्मीकि रामायण सुंदरकांड सप्तमः सर्गः सातवां सर्ग श्लोक १ से १७ तक, पुष्पक विमान का वर्णन, पुष्पक विमान की क्या विशेषता थी?
pushpak viman in ramayan,
यथा महत्पादृषि मेघजालं विद्युत्पिनद्धं सविहङ्गजालम् ॥ १॥
बलवान हनुमान जी उन घरों के समूहों को देखते चले जाते थे, जिनमें पन्नों के और सौने के झरोखे बने हुए थे। उन घरों की वैसी ही शोभा हो रही थी, जैसी शोभा वर्षाकालीन मेघों की बिजुली और वकपंक्ति से होती है ॥ १ ॥
निवेशनानां विविधाश्च शाला: सामान प्रधानशङ्खायुधचापशालाः
मनोहराश्चापि पुनर्विशाला पनाम का ददर्श वेश्माद्रिषु चन्द्रशालाः॥२॥
उस विशाल भवन के भीतर रहने बैठने सोने आदि के लिये विविध दालान कोठे बने हुए थे। उनमें शङ्खों शस्त्रों और धनुषों के रखने के कमरे बने हुए थे। उन पर्वताकार भवन समूहों के ऊपर बनी हुई अटारियों को, जिनको चन्द्रशाला भी कहते हैं) हनुमान जी ने देखा ॥२॥
सर्वैश्च दोषैः परिवर्जितानि कपिर्ददर्श स्ववलार्जितानि ॥३॥
विविध प्रकार के द्रव्यों से परिपूर्ण, क्या देवता, क्या असुर सब से पूजित अर्थात् क्या देवता और क्या असुर सभी इनमें रहने को लालायित रहते थे समस्त दोषों से रहित और रावण के निज भुजबल से सम्पादित इन भवनों को हनुमान जी ने देखा ॥३॥
तानि प्रयत्नाभिसमाहितानि भयेन साक्षादिव निर्मितानि ।
महीतले सर्वगुणोत्तराणि ददर्श लङ्काधिपतेहाणि ॥ ४ ॥
बड़े प्रयत्न और सावधानी से मानों साक्षात् मय नाम के दैत्य द्वारा निर्मित और इस भूमण्डल पर सब प्रकार से श्रेष्ठ, रावण के इन भवनों को हनुमान जी ने देखा ॥ ४॥
ततो ददशेच्छितमेघरूपं मनोहरं काञ्चनचारुरूपम् ।
रक्षोधिपस्यात्मबलानुरूपं गृहोत्तमं ह्यप्रतिरूपरूपम् ॥ ५॥
ये अत्यन्त ऊँचे मेघाकार, मनोहर, सौने के वने, राक्षसराज रावण के बल के अनुरूप और अनुपम उत्तम भवन थे ॥ ५ ॥
महोतले स्वर्गमिव प्रकीर्ण श्रिया ज्वलन्तं बहुरत्नकीर्णम् ।
नानातरूणां कुसमावकीर्ण गिरेरिवाग्रं रजसावकीर्णम् ॥६॥
ये भवन मानों पृथिती पर उतरे हुए स्वर्ग के समान कान्तिमान और विविध प्रकार के बडून से रत्तों से भरे हुए थे। इन विविध प्रकार के रत्नों से भरे होने के कारण, वे घर पुष्पों और पुष्पपराग से पूर्ण पर्वतशिखर जैसे जान पड़ते थे ॥६॥
नारीप्रवेकैरिव दीप्यमानं तडिदिरम्भोदवदय॑मानम् ।
हंसप्रवेकैरिव वाह्यमानं श्रिया युतं खेसुकृतं विमानम् ॥ ७ ।।
राक्षसराज रावण का वह राजभवन श्रेष्ठ सुन्दरियों से ऐसा प्रकाशमान हो रहा था, जैसे बिजलियों से मेघ की घटा प्रकाशित होती है। अथवा पुण्यावान् जन का हंसयुक्त आकाशचारी विमान शोभायमान होता है ॥ ७॥
वाल्मीकि रामायण सुंदरकांड सातवां सर्ग श्लोक १ से १७ तक, पुष्पक विमान का वर्णन, पुष्पक विमान की क्या विशेषता थी? पुष्पक विमान कैसे चलता था?
ददर्श युक्तीकृतमेघचित्रं विमानरत्नं बहुरत्नचित्रम् ॥ ८॥
जैसे अनेक धातुओं से रंग बिरंगे पर्वतशिखर की शोभा होती है अथवा जैसे चन्द्रमा और ग्रहों से भूषित आकाश और जैसे नाना रंगों से युक्त मेघों की घटा शोभित जान पड़ती है, वैसे ही रत्नजटित रावण का विचित्र पुष्पक नामक विमान हनुमान जी ने देखा ॥८॥
मही कृतापर्वतराजिपूर्णा शैलाः कृता वृक्षवितानपूर्णाः।
वृक्षाः कृताः पुष्पवितानपूर्णाः पुष कृतं केसरपत्रपूर्णम् ॥ ९॥
इस विमान में अनेक जनों के बैठने की जो जगह डेक थी वह चित्र विचित्र चित्रकारी से चित्रित थी। उसमें नकली बैठके, पर्वतों पर बनायी गयी थीं। उन पर्वतों के ऊपर नकली वृक्षों की छाया की हुई थी। वे वृक्ष खिले हुए फूलों से लदे हुए थे और उन पुष्पों से पराग झरा करता या ॥६॥
कृतानि वेश्मानि च पाण्डुराणि तथा सुपुष्पाण्यपि पुष्कराणि ।
पुनश्च पद्मानि सकेसराणि धन्यानि चित्राणि तथा वनानि ॥ १०॥
उस विमान में सफेद रंग के बहुत से घर भी बने हुए थे। उन घरों में सुन्दर पुष्पयुक्त पुष्करिणी भी थीं। उन पुष्करिणियों में पराग सहित कमल के फूल खिल रहे थे। उन घरों में ऐसी चित्रकारियां की गयो थीं जो सराहने योग्य थीं, तथा जो उपवन बनाये गये थे वे भी देखते ही बन पाते थे ॥ १० ॥
पुष्पाह्वयं नाम विराजमानं जाणार रत्नप्रभाभिश्च विवर्धमानम् ।
वेश्मोत्तमानामपि चोच्चमानं महाकपिस्तत्र महाविमानम् ।। ११ ॥
हनुमान जी ने वहाँ ऐसा बड़ा पुष्पक नामक विमान देखा, जो रत्नों को प्रभा से दमक रहा था और ऊँचे से ऊँचे भवनों से भी बढ़ कर ऊँचा था ॥ १२॥
कृताश्च वैडूर्यमया विहङ्गा रूप्यमवालैश्च तथा विहङ्गाः ।
चित्राश्च नानावसुभिर्भुजङ्गा जात्यानुरूपास्तुरगाः शुभाङ्गाः ॥ १२ ॥
उस विमान में पन्नों के, चाँदी के और मूगों के पक्षी और रंग बिरंगी धातुओं के बने हुए सर्प तथा उत्तम जाति के उत्तम अंगों वाले घोड़े भी बनाये गये थे ॥ १२॥
प्रवालजाम्बूनदपुष्पपक्षाः सलीलमावर्जितजिह्मपक्षाः ।
कामस्य साक्षादिव भान्ति पक्षाः कृता विहङ्गाः सुमुखाः सुपक्षाः॥१३॥
पक्षियों के परों पर मगे और सौने के फूल बने हुए थे। वे पक्षी अपने आप अपने पंखों को समेटते और पसारते थे। उन पक्षियों के पर व चोंचें बड़ी सुन्दर थीं। पंख तो उनके कामदेव के पंखों की तरह सुन्दर थे ॥ १३ ॥
वाल्मीकि रामायण सुंदरकांड मै वर्णित है पुष्पक विमान का रहस्य - रामायण काल मै रावण का पुष्पक विमान कैसा और क्या नाम था
नियुज्यमानास्तु गजाः सुहस्ताः सकेसराश्चोत्पलपत्रहस्ताः ।
बभूव देवी च कृता सुहस्तान लक्ष्मीस्तथा पद्मिनि पाहस्ता ॥ १४ ॥
इनके अतिरिक्त कमलयुक्त तालाब में, कमल के फूल को हाथ में लिये लक्ष्मी जी और उनका अभिषेक करने में नियुक्त सुन्दर लड़ वाले हाथी, जिनको सूड़ों में केसर सहित कमल के पुष्प थे, बने हुए थे ॥ १४ ॥
इतीव तद्गृहमभिगम्य शोभनं सविस्मयो नगमिव चारुशोभनम् ।
पुनश्च तत्परमसुगन्धि सुन्दरं हिमात्यये नगमिव चारुकन्दरम् ॥ १५ ॥
हनुमान जी विस्मययुक्त दो सुन्दर कन्दरा की तरह शोभित स्थानों से युक्त उस भवन में गये। फिर यह भवन वसन्त ऋतु होने के कारण सुगंधित खोडर युक्त वृक्ष की तरह सुवासित. हो रहा था ॥ १५ ॥
ततः स तां कपिरमिपत्य पूजितां चरन्पुरी दशमुखबाहुपालिताम् ।
अदृश्य तां जनकसुतां सुपूजितां सुदुःखितः पतिगुणवेगनिर्जिताम् ॥ १६ ॥
हनुमान जो उस दसमुख रावण को भुजाओं से रक्षित, लङ्का पुरी में घूमे फिरे । किन्तु सुपूजिता, एवं पति के गुणों पर मुग्धा जानकी जी उनको दिखलाई न पड़ो। अतः वे अत्यन्त दुःखी
ततस्तदा बहुविधभावितात्मनः । कृतात्मनो जनकसुतां सुवर्त्मनः ।।
अपश्यतोऽभवदतिदुःखितं मनः सुचक्षुषः प्रविचरतो महात्मनः ॥ १७ ॥
तब अनेक चिन्ताओं से युक्त, सुन्दर नीति-भार्ग-वर्ती, एक बार देखने से ही वस्तु का बीजा बकुला तक जान लेने वाले, धैर्य वान् हनुमान जी, अनेक प्रयत्न करने पर भी और बहुत खोजने पर भी, जब सीता को न देख सके, तब वे दुःखी हुए ॥ १७॥
सुन्दरकाण्ड का सातवाँ सर्ग पूरा हुआ। इति सप्तमः सर्गः॥
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