अंशुमान सर के अनुसार सुखी जीवन पर विचार और ईश्वर को पाने के उपाय आध्यात्मिक प्रवचन
पयारी आतमा🙏🌹
सब सुखी होना चाहते है और जीवन में प्रभु को पाने की लालसा भी थोड़ी बहुत सभी मे हैं।।
सुखी होने का सूत्र सामने ही है लेकिन दिखाई नहीं देता, सूत्र है कि जो कुछ भी दिखाई देता हैं सथुल नेत्रों से वो मेरा अपना नहीं है, हमारी योग्यता, सामर्थ्य, भौतिक जगत में मान सममान यह सब हमारा नहीं है और सब कुछ जगत के लिए हैं।।
जब यह बात समझ आ जाये कि हर पल बदल रहा है जगत तो इसकि वस्तुओं को अपना मानने से कया लाभ होगाा
पडोसी गाली दे रहा था किसी ने बताया, हमने पुछा किसे दे रहा था बोला आपको, फिर पुछा गाली अगर शरीर को दे रहा था तो यह शरीर हम नहीं है और अगर आतमा को दे रहा था तो उसकि हमारी आतमा एक ही है तो फिर नाराजगी किस बात की
पैर छुये किसी ने तो अच्छा लगा, जरा सोचो जब शरीर नहीं हो तो पैरों को छुवाने मे खुश कयो हो रहे हो😊 फिर शरीर को कोई गालियां दे तो अफसोस कयो, जब वो तुमहारा नहीं है।।
लोग दुसरे कि मदद करने को परोपकार समझते है यह मिथ्या भ्रम है जब हमारे लिए जगत में कुछ भी नहीं है तो तुम दुसरे को नहीं दे रहे हो सिर्फ सामान एक जगह से दुसरि जगह सरका रहे हो, न देते तो भी तुम्हारा नहीं था
जब यह विचार दृढ होने लगे कि जगत में हमारा कुछ भी नहीं है तो सुख दुख की अनुभूति समाप्त होने लगती हैं इसे ही निरविकलप कहते है।।
आज जो हमारा पद हैं कल नहीं रहेगा, शरीर का बल भी नहीं रहेगा, बनधु बानधव भी नहीं रहेंगे तो फिर उसके साथ अपने को जोडना यही माया है।।
इसका अर्थ यह नहीं है कि मेहनत न करें, धन न कमाये सब कुछ करो लेकिन यह बात याद रखे कि यह सब मेरा नहीं है जगत का हैं और नाशवान हैं।।
भौतिक वस्तुओं से जितनी अधिक दुरी रखते हुए जगत के कार्य करेंगे उतना ही कम सुख और दुख का अनुभव होगा
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जय गुरुदेव
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