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Dev Uthani Ekadashi vrat: देव उठनी एकादशी व्रत का वर्णन और महात्म्य । संपूर्ण पूजा विधि और शुभ फल प्रभाव - भगवान विष्णु कथा

Dev Uthani Ekadashi vrat: देव उठनी एकादशी व्रत का वर्णन और महात्म्य । संपूर्ण पूजा विधि और शुभ फल प्रभाव।

Dev Uthani Ekadashi: हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इस दिन भक्त सुख और समृद्धि के लिए भगवान विष्णु की आराधना करते हैं। 


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इस दिन जातक व्रत भी रहते हैं। देवउठनी एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। यह दिवस शादी के लिए बेहद शुभ माना गया है। उत्तर भारत के कई प्रदेशों में लोग तुलसी विवाह भी करते हैं। आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि।

देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त

- एकादशी तिथि 14 नवंबर 2021: सुबह 05 बजकर 48 मिनट से शुरू।

- एकादशी तिथि 15 नवंबर 2021: सुबह 06 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी।

चातुर्मास मास होगा समाप्त

देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास समाप्त होता। मान्यताओं के अनुसार चतुर्मास में भगवान विष्णु आराम करते हैं। इस वर्ष 20 जुलाई से चातुर्मास की शुरुआत हुई थीं। शास्त्रों के अनुसार इस दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं।

देवउठनी एकादशी का महत्व


देवउठनी एकादशी तिथि से चतुर्मास अवधि खत्म हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु शयनी एकादशी को सो जाते हैं। वह इस दिन जागते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन जातक सुबह जल्द उठकर स्वस्छ वस्त्र पहनते हैं। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। शास्त्रों के अनुसार विष्णुजी के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने एकादशी को देवी वृंदा (तुलसी) से शादी की थीं। इस साल तुलसी विवाह 14 नवंबर को मनाया जाएगा।

देवउठनी एकादशी पूजा विधि

देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, पुष्प, फल, अर्घ्य और चंदर आदि अर्पित करें। भगवान की पूजा करके नीचे दिए मंत्रों का जाप करें।

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदिम्।।

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे। हिरण्याक्षप्राघातिन् त्रैलोक्यो मंगल कुरु।।

इसके बाद भगवान की आरती करें। वह पुष्प अर्पित कर इन मंत्रों से प्रार्थना करें।

इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।

त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।

इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।

न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।

इसके बाद सभी भगवान को स्मरण करके प्रसाद का वितरण करें। जय श्री हरी।






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