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Mahabharat: महाभारत का सारांश क्या है? - महाभारत ग्रन्थ की महानता और विशालता एक गतिशील ग्रंथ के रूप में वर्णन

Mahabharat महाभारत ग्रन्थ की महानता और विशालता एक गतिशील ग्रंथ के रूप में महाभारत का वर्णन, महाभारत के प्रथम पर्व में उल्लेखित एक श्लोक जिसका अनुवाद इस प्रकार है,




mahabharat katha ka saransh

जो महाभारत में है वह आपको संसार में कहीं न कहीं अवश्य मिल जायेगा, जो यहाँ नहीं है, वो संसार में आपको अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा


महाभारत प्राचीन भारत का सबसे बड़ा महाकाव्य है. और हिन्दुओं के सबसे पवित्र धार्मिक ग्रंथों में से एक है। इसमें उस समय का इतिहास लगभग १,११,००० श्लोकों में लिखा हुआ है। इस पोस्ट से हम महाभारत की सम्पूर्ण कथा संक्षिप्त में प्रकाशित कर रहे हैं, जल्दी ही हम महाभारत की सम्पूर्ण कथा यथावत विस्तार रूप में भी प्रकाशित करेंगे।





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इस की पूर्ण कथा का संक्षेप इस प्रकार से है.


1. चन्द्रवंश से कुरुवंश तक की उत्पत्ति।
2. पाण्डु का राज्य अभिषेक।
3. कर्ण का जन्म, लाक्षाग्रह षड्यंत्र तथा द्रौपदी का स्वयंवर।
4. इन्द्रप्रस्थ की स्थापना।
5. पाण्डवों की विश्व विजय और उनका वनवास।
6. शांति दूत श्रीकृष्ण, युद्ध की शुरुआत तथा श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता उपदेश।
7. पितामह भीष्म और आचार्य द्रोण वध।
8. अंगराज कर्ण, मामा शल्य और दुर्योधन वध।
9. दुर्योधन वध और महाभारत युद्ध की समाप्ति।
10. यदुकुल का संहार और पाण्डवों का स्वर्गगमन।


महाभारत के बाद की कथा, असली महाभारत, एक गतिशील ग्रंथ के रूप में महाभारत का वर्णन कीजिए, महाभारत का युद्ध किस कारण हुआ था, महाभारत का सारांश, महाभारत काल का समय, महाभारत की कथा, महाभारत कब और किसने लिखी, महाभारत का असली नाम क्या है?. महाभारत में कितने श्लोक है, महाभारत का सबसे छोटा पर्व कौन सा है?, धृतराष्ट्र ने पांडवों को आधे राज्य के तौर पर कौन सा भाग दिया?



पाण्डु का राज्य अभिषेक. mahabharat katha ka saransh


धृतराष्ट्र जन्म से ही अन्धे थे, अतः उनकी जगह पर पाण्डु को राजा बनाया गया, इससे धृतराष्ट्र को सदा अपनी नेत्रहीनता पर क्रोध आता और पाण्डु से द्वेष भावना होने लगती। पाण्डु ने सम्पूर्ण भारतवर्ष को जीतकर कुरु राज्य की सीमाओ का यवनो के देश तक विस्तार कर दिया। एक बार राजा पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों कुन्ती तथा माद्री के साथ आखेट के लिये वन में गये। वहाँ उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दृष्टिगत हुआ। पाण्डु ने तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुये मृगरुपधारी निर्दोष ऋषि ने पाण्डु को शाप दिया, राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है, अतः जब कभी भी तू मैथुनरत होगा तेरी मृत्यु हो जायेगी।



कुन्ती तथा माद्री mahabharat katha ka saransh

इस शाप से पाण्डु अत्यन्त दुःखी हुये और अपनी रानियों से बोले, हे देवियों! अब मैं अपनी समस्त वासनाओं का त्याग करके, इस वन में ही रहूँगा तुम लोग हस्तिनापुर लौट जाओ़" उनके वचनों को सुन कर दोनों रानियों ने दुःखी होकर कहा, नाथ! हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकतीं। आप हमें भी वन में अपने साथ रखने की कृपा कीजिये। पाण्डु ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर के उन्हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी। इसी दौरान राजा पाण्डु ने अमावस्या के दिन ऋषि-मुनियों को ब्रह्माजी के दर्शनों के लिये जाते हुये देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा, राजन्! कोई भी निःसन्तान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता, अतः हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं। "ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले, हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है; क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता। क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?



कुन्ती बोली, हे आर्यपुत्र mahabharat katha ka saransh


दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है, जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ। आप आज्ञा करें मैं किस देवता को बुलाऊँ।" इस पर पाण्डु ने धर्म को आमन्त्रित करने का आदेश दिया। धर्म ने कुन्ती को पुत्र प्रदान किया, जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया। कालान्तर में पाण्डु ने कुन्ती को पुनः दो बार वायुदेव तथा इन्द्रदेव को आमन्त्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इन्द्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात् पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती ने माद्री को उस मन्त्र की दीक्षा दी। माद्री ने अश्वनीकुमारों को आमन्त्रित किया और नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ। एक दिन राजा पाण्डु, माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पाण्डु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन मे प्रवृत हुये ही थे कि शापवश उनकी मृत्यु हो गई। माद्री उनके साथ सती हो गई किन्तु पुत्रों के पालन-पोषण के लिये कुन्ती हस्तिनापुर लौट आई। वहा रहने वाले ऋषि मुनि पाण्ड्वो को राजमहल छोड़् कर आ गये, ऋषि मुनि तथा कुन्ती के कहने पर सभी ने पाण्ड्वो को पाण्डु का पुत्र मान लिया और उनका स्वागत किया।




कर्ण का जन्म, लाक्षाग्रह, षड्यंत्र तथा द्रौपदी स्वयंवर. mahabharat katha ka saransh


जब कुन्ती का विवाह नहीं हुआ था, उसी समय (सूर्य के अंश से) उनके गर्भ से कर्ण का जन्म हुआ था। परन्तु लोक-लाज के भय से कुन्ती ने कर्ण को एक बक्से मे बन्द करके गंगा नदी मे बहा दिया। कर्ण गंगाजी में बहता हुआ जा रहा था कि महाराज धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ और उनकी पत्न राधा ने उसे देखा और उसे गोद ले लिया और उसका लालन पालन करने लगे। कुमार अवास्था से ही कर्ण की रुचि अपने पिता अधिरथ के समान रथ चलाने कि बजाय युद्धकला में अधिक थी। कर्ण और उसके पिता अधिरथ आचार्य द्रोण से मिले जो कि उस समय युद्धकला के सर्वश्रेष्ठ आचार्यों में से एक थे। द्रोणाचार्य उस समय कुरु राजकुमारों को शिक्षा दिया करते थे। उन्होने कर्ण को शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि कर्ण एक सारथी पुत्र था और द्रोण केवल क्षत्रियों को ही शिक्षा दिया करते थे। द्रोणाचार्य की असम्मति के उपरान्त कर्ण ने परशुराम से सम्पर्क किया जो कि केवल ब्राह्मणों को ही शिक्षा दिया करते थे। कर्ण ने स्वयं को ब्राह्मण बताकर परशुराम से शिक्षा का आग्रह किया। परशुराम ने कर्ण का आग्रह स्वीकार किया और कर्ण को अपने समान ही युद्धकला और धनुर्विद्या में निष्णात किया। इस प्रकार कर्ण परशुराम का एक अत्यंत परिश्रमी और निपुण शिष्य बना। 




कर्ण दुर्योधन के आश्रय में रहता था। mahabharat katha ka saransh

दैवयोग तथा शकुनि के छल कपट से कौरवों और पाण्डवों में वैर की आग प्रज्वलित हो उठी। दुर्योधन बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था। उसने शकुनि के कहने पर पाण्ड्वो को बचपन मे कई बार मारने का प्रयत्न किया। युवावस्था मे आकर जब गुणो मे उससे अधिक श्रेष्ठ युधिष्ठर को युवराज बना दिया गया तो शकुनि ने लाक्ष के बने हुए धर में पाण्डवों को रखकर आग लगाकर उन्हें जलाने का प्रयत्न किया किन्तु विदुर की सहायता से पाँचों पाण्डव अपनी माता के साथ, उस जलते हुए घर से बाहर निकल गये। वहाँ से एकचक्रा नगरी में जाकर, वे मुनि के वेष में एक ब्राह्मण के घर में निवास करने लगे। फिर बक नामक राक्षस का वध करके व्यासजी के कहने पर वे पांचाल-राज्य में, जहाँ द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला था, गए। पांचाल-राज्य में अर्जुन के लक्ष्य-भेदन के कौशल से मत्स्यभेद होने पर पाँचों पाण्डवों ने द्रौपदी को पत्नी रूप में प्राप्त किया।


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