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Garud Puran के अनुसार श्राद्ध पिण्ड दान तेरहवीं पूजन विधि। आत्मा कितने दिन तक किन किन स्थानों पर भटकती है

Garud Puran के अनुसार श्राद्ध पिण्ड दान तेरहवीं पूजन विधि। आत्मा कितने दिन तक किन किन स्थानों पर भटकती है। गरुड पुराण पहला अध्याय का श्लोक।

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प्रथमेऽहनि यः पिण्डस्तेन मूर्धा प्रजायते । 
ग्रीवास्कन्धौ द्वितीयेन तृतीयाद्धृदयं भवेत्॥५१॥ 
चतुर्थेन भवेत् पृष्ठं पञ्चमान्नाभिरेव च । 
षष्ठे च सप्तमे चैव कटी गुह्यं प्रजायते॥५२॥ 
ऊरुश्चाष्टमे चैव जान्वी नवमे तथा। 
नवभिर्देहमासाद्य दशमेऽह्नि क्षुधा तृषा॥५३॥ 
पिण्डजं देहमाश्रित्य क्षुधाविष्टस्तृषार्दितः। 
एकादशं द्वादशं च प्रेतो भुङ्क्ते दिनद्वयम्॥५४॥ 
त्रयोदशेऽहनि प्रेतो यन्त्रितो यमकिङ्करैः। 
तस्मिन् मार्गे व्रजत्येको गृहीत इव मर्कटः॥५५॥ 
षडशीतिसहस्त्राणि योजनानां प्रमाणतः । 
यममार्गस्य विस्तारो विना वैतरणीं खग॥५६॥ 

Shradh pind daan श्राद्ध में कितने पिंड बनाए जाते हैं।


पहले दिन जो पिण्ड दिया जाता है, उससे उसका सिर बनता है, दूसरे दिनके पिण्डसे ग्रीवा (गरदन) और स्कन्ध (कंधे) तथा तीसरे पिण्डसे हृदय बनता है॥५१॥ चौथे पिण्डसे पृष्ठभाग (पीठ), पाँचवेंसे नाभि, छठे तथा सातवें पिण्डसे क्रमशः कटि (कमर) और गुह्यांग उत्पन्न होते हैं ॥५२॥

आठवें पिण्डसे ऊरु (जाँघे) और नौवें पिण्डसे जानु (घुटने) तथा पैर बनते हैं। इस प्रकार नौ पिण्डोंसे देहको प्राप्त करके दसवें पिण्डसे उसकी क्षुधा और तृषा (भूख-प्यास)-ये दोनों जाग्रत् होती हैं ॥५३॥ 

इस पिण्डज शरीरको प्राप्त करके भूख और प्यास से पीड़ित जीव ग्यारहवें तथा बारहवें-दो दिन भोजन करता है ॥५४॥ 

तेरहवें दिन यमदूतोंके द्वारा बन्दरकी तरह बँधा हुआ वह प्राणी अकेला उस यममार्गमें जाता है॥५५॥ 

हे खग! (मार्गमें मिलनेवाली) वैतरणी को छोड़कर यमलोक के मार्ग की दूरी का प्रमाण छियासी हजार योजन है॥५६॥ 

अहन्यहनि वै प्रेतो योजनानां शतद्वयम् । 
चत्वारिंशत् तथा सप्त दिवारात्रेण गच्छति॥५७॥ 
अतीत्य क्रमशो मार्गे पुराणीमानि षोडश। 
प्रयाति धर्मराजस्य भवनं पातकी जनः॥५८॥ 
सौम्यं सौरिपुर नगेन्द्रभवनं गन्धर्वशैलागमौ 
क्रौञ्चं क्रूरपुर विचित्रभवनं बह्वापदं दुःखदम्। 
नानाक्रन्दपुरं सुतप्तभवनं रौद्रं पयोवर्षणं 
शीताढ्यं बहुभीति धर्मभवनं याम्यं पुरं चाग्रतः॥५९॥ 
याम्यपाशैभृतः पापी हाहेति प्ररुदन् पथि । 
स्वगृहं तु परित्यज्य पुरं याम्यमनुव्रजेत्॥६०॥ 
इति गरुडपुराणे सारोद्धारे पापिनामैहिकामुष्मिकदुःखनिरूपणं नाम प्रथमोऽध्यायः ॥ 

Garud Puran ke Anusaar मरने के बाद आत्मा कहा जाति है।


वह प्रेत प्रतिदिन रात-दिनमें दो सौ सैंतालीस योजन चलता है॥५७॥ 
मार्गमें आये हुए इन सोलह पुरों (नगरों)-को पार करके पातकी व्यक्ति धर्मराजके भवनमें जाता है। 
इन सोलह नगरों के नाम इस प्रकार से है।

(१) सौम्यपुर, 
(२) सौरिपुर, 
(३) नगेन्द्रभवन, 
(४) गन्धर्वपुर, 
(५) शैलागम, 
(६) क्रौंचपुर, 
(७) क्रूरपुर, 
(८) विचित्रभवन, 
(९) बह्वापदपुर, 
(१०) दुःखदपुर, 
(११) नानाक्रन्दपुर, 
(१२) सुतप्तभवन, 
(१३) रौद्रपुर, 
(१४) पयोवर्षणपुर, 
(१५) शीताढ्यपुर तथा 
(१६) बहुभीतिपुर 

इन सभी को पार करके इनके आगे यमपुरी में धर्मराज का भवन स्थित है॥५८-५९॥ 

यमराजके दूतोंके पाशोंसे बँधा हुआ पापी जीव रास्तेभर हाहाकार करता-रोता हुआ अपने घरको छोड़ करके यमपुरीको जाता है॥६०॥ 

॥ इस प्रकार गरुडपुराणके अन्तर्गत सारोद्धारमें 'पापियोंके इस लोक तथा परलोकके दुःखका निरूपण' नामक पहला अध्याय पूरा हुआ॥ 

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