Ved puran kya hai वेद और पुराण भिन्नताएँ वेद पुराण कितने है - चार वेद छह शास्त्र 18 पुराण के नाम, ब्रह्माजी ने पुराणों की रचना वेदों से पूर्व की है
यद्यपि वेद और पुराण एक ही आदिपुरुष अर्थात् ब्रह्माजी द्वारा रचित हैं। इनमें वर्णित ज्ञान आख्यानों तथ्यों शिक्षाओं नीतियों और घटनाओं आदि में एकरूपता है तथापि वेद और पुराण एकदूसरे से पूर्णतया भिन्न हैं। उपुर्यक्त कथन को निम्नलिखित तथ्यों द्वारा सहज और सरल ढंग से समझा जा सकता है सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने पुराणों की रचना वेदों से पूर्व की है।
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ved puran kya hai पुराण वेदों का ही विस्तृत और सरल स्वरूप हैं।
अर्थात् वेदों में जिस ज्ञान का संक्षिप्त रूप में वर्णन है पुराणों में उसका विस्तृत उल्लेख किया गया है। अन्य शब्दों में पुराण वेदों की अपेक्षा अधिक प्राचीन विस्तृत और ज्ञानवर्द्धक हैं। वेद अपौरुषेय और अनादि हैं। अर्थात् इनकी रचना किसी मानव ने नहीं की है। जबकि पुराण अपौरुषेय और पौरुषेय दोनों प्रकार के कहे गए हैं। अर्थात् पुराण मानवनिर्मित न होने पर भी मानवनिर्मित हैं। उपर्युक्त कथन को पढ़कर पाठकगण अवश्य विस्मित होंगे। उनके अंतर्मन में यह जिज्ञासा अवश्य उत्पन्न होगी कि एक वस्तु मानवनिर्मित न होने पर भी मानव निर्मित कैसे हो सकती है वास्तव में वर्तमान में हम जिन अठारह पुराणों का पठन श्रवण या चिंतन करते हैं वे एक ही पुराण के अठारह खण्ड हैं।
ved puran kya hai ब्रह्माजी ने केवल एक ही पुराण की रचना की,
सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्माजी ने केवल एक ही पुराण की रचना की थी। यह पुराण अपौरुषेय था। इसमें लगभग एक अरब सौ करोड़ श्लोक वर्णित थे। किंतु जनमानस के कल्याण और हित के लिए महर्षि वेद व्यास ने इस पुराण को अठारह खण्डों में विभाजित कर इसे सहज और सरल ढंग से प्रस्तुत किया। महर्षि वेदव्यास ने इन पुराणों में श्लोकों की संख्या केवल चार लाख तक ने सीमित कर दी। इस प्रकार ब्रह्माजी द्वारा रचित अपौरुषेय पुराण महर्षि वेदव्यास द्वारा अठारह खण्डों में विभक्त किए जाने के बाद पौरुषेय कहलाया। इसलिए पुराण अपौरुषेय और पौरुषेय दोनों प्रकार के कहे जाते हैं।
ved puran kya hai धार्मिक कर्मकांड,
ब्रह्माजी द्वारा रचित वेदों में वर्णित वेद मंत्रों धार्मिक कर्मकाण्डों और शिक्षाओं का अनुसरण करने वाले योगी पुरुष ऋषि कहलाए जबकि पुराणों में वर्णित पौराणिक ज्ञान मंत्रों उपासना विधि व्रत आदि का अनुसरण करने वाले योगियों को मुनि कहा गया। ब्रह्माजी से श्रुतियों का ज्ञान प्राप्त कर ऋषियों ने उसे अर्थ प्रदान किया और समयानुसार संसार में प्रकट किया जबकि मुनियों ने प्रवक्ता के रूप में उस ज्ञान को विस्तृत स्वरूप प्रदान किया। वेदों की अपेक्षा पुराण अधिक परिवर्तनशील और स्मृतिमूलक हैं इसलिए समयानुसार इनमें अनेक परिवर्तन होते रहे हैं। परिवर्तनशील प्रवृत्ति होने के कारण ही पुराणों को इतिहास के अधिक निकटतम कहा गया है। है सभी पुराण कथोपकथन शैली में लिखे गए हैं इसलिए संभवतः उनके मूल रूप में परिवर्तन होता गया। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये सभी पुराण विश्वास की उस पृष्ठभूमि पर अधिष्ठित हैं जहाँ इतिहास भूगोल और विज्ञान का तर्क उतना महत्त्वपूर्ण नहीं होता जितना कि उनमें व्यक्त मानवमूल्यों का। वस्तुतः इन पुराणों का महत्त्व तर्क पर आधारित है और इन्हीं अर्थों में इनका महत्त्व है।
ved puran kya hai 18 पुराणों की संख्या।
सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्माजी ने केवल एक ही पुराण की रचना की थी। एक अरब श्लोकों से युक्त यह पुराण अत्यंत विशाल और दुष्कर था। पुराण में वर्णित ज्ञान और प्राचीन आख्यान देवताओं के अतिरिक्त साधारण जनमानस को भी सहज और सरल ढंग से प्राप्त हों, यही विचार करके महर्षि वेद व्यास ने इस वृहत् पुराण को अठारह भागों में विभक्त किया था। इन पुराणों में वर्णित श्लोकों की कुल संख्या चार लाख है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित सभी अठारह पुराणों और उनमें वर्णित श्लोकों की संख्या नीचे दी जा रही हैं।
पुराण श्लोक संख्या
1, ब्रह्म पुराण दस हजार
2, पद्म पुराण पचपन हजार
3, विष्णु पुराण तेईस हज़ार
4, शिव पुराण चौबीस हज़ार
5, श्रीमद्भागवत पुराण अठारह हज़ार
6, नारद पुराण पच्चीस हज़ार
7, मार्कण्डेय पुराण नौ हजार
8, अग्नि पुराण पन्द्रह हज़ार, चार सौ
9, भविष्य पुराण चौदह हज़ार, पाँच सौ
10, ब्रह्मवैवर्त पुराण अठारह हज़ार
11, लिंग पुराण ग्यारह हज़ार
12, वराह पुराण चौबीस हज़ार
13, स्कंद पुराण इक्यासी हज़ार, एक सौ
14, वामन पुराण दस हज़ार
15, कूर्म पुराण सत्रह हजार
16, मत्स्य पुराण चौदह हज़ार
17, गरुड़ पुराण उन्नीस हज़ार
18, ब्रह्माण्ड पुराण बारह हजार
पौराणिक मान्यता के अनुसार सभी मन्वंतरों के प्रत्येक द्वापर में भगवान् विष्णु ही व्यासरूप में प्रकट होकर जनमानस के कल्याण के लिए इन अठारह पुराणों की रचना करते हैं। इन अठारह पुराणों के श्रवण और पठन से पापी मनुष्य भी पापरहित होकर पुण्य के भागी बनते हैं।
ved puran kya hai पुराणों की संख्या अठारह क्यों?
अणिमा लघिमा प्राप्ति प्राकाम्य महिमा सिद्धि ईशित्व अथवा वाशित्व सर्वकामावसायिता सर्वज्ञत्त्व दूरश्रवण सृष्टि परकायप्रवेशन वाक्सिद्धि कल्पवृक्षत्व संहारकरणसामर्थ्य भावना अमरता सर्वन्यायकत्त्व
पुराणों की 18 अठारह सिद्धियाँ तत्त्व बताई गई हैं।
सांख्य दर्शन में पुरुष प्रकृति मन पाँच महाभूतों पृथ्वी जल वायु अग्नि एवं आकाश पाँच ज्ञानेंद्रियाँ श्रोत्र त्वचा चक्षु नासिका एवं रसना और पाँच कर्मेंद्रियाँ वाक् पाणि पाद पायु एवं उपस्थ इन अठारह तत्वों का वर्णन किया गया है, छः वेदांग चार वेद मीमांसा न्यायशास्त्र पुराण धर्मशास्त्र अर्थशास्त्र आयुर्वेद धनुर्वेद और गंधर्ववेद ये अठारह प्रकार की विद्याएँ हैं। एक संवत्सर पाँच ऋतुएँ और बारह महीने ये मिलकर काल के अठारह भेदों को प्रकट करते हैं।
श्रीमद् भागवत गीता के अध्यायों की संख्या अठारह है।
श्रीमद् भागवत में कुल अठारह हज़ार श्लोक हैं।
ved puran kya hai
काली तारा छिन्नमस्ता षोडशी त्रिपुरभैरवी धूमावती वगलामुखी मातंगी कूष्मांडा कात्यायनी दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती गायत्री पार्वती श्रीराधा कात्यायनी सिद्धिदात्री भगवती जगदम्बा के ये अठारह प्रसिद्ध स्वरूप हैं। श्रीविष्णु शिव ब्रह्मा इन्द्र आदि देवताओं के अंश से प्रकट हुईं भगवती दुर्गा अठारह भुजाओं से सुशोभित हैं।
ved puran kya hai उप पुराण।
महर्षि वेदव्यास ने अठारह पुराणों के अतिरिक्त कुछ उप पुराणों की भी रचना की है। उप पुराणों को पुराणों का संक्षिप्त रूप कहा जाता है। ये उप पुराण निम्नलिखित है।
- दुर्वासा पुराण
- वरुण पुराण
- मनु पुराण
- सनत्कुमार पुराण नृसिंह पुराण
- कपिल पुराण
- उशनःपुराण
- साम्ब पुराण
- आदित्य पुराण
- माहेश्वर पुराण
- नंदी पुराण
- सौर पुराण
- कालिका पुराण
- पराशर पुराण
- वसिष्ठ पुराण
- भागवत पुराण
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