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दार्शनिक प्रश्नों का स्वरूप (Nature of Philosophical questions)

दार्शनिक प्रश्नों का स्वरूप (Nature of Philosophical questions)

Darshan+Vaidik+ved


दर्शन का स्वरूप, उसकी उत्पत्ति के कारण तथा दार्शनिक चिन्तन कीस्वाभाविकता के सम्बन्ध में विचार करने के पश्चात् अध्येता को सामान्य रूप से तोदर्शन के प्रश्नों का स्वरूप ज्ञात हो ही गया है। परन्तु ज्ञान की अन्य शाखाओं के प्रश्नों से भिन्न इन प्रश्नों के वास्तविक स्वरूप को अध्येता हृदयंगम कर सके इसहेतु इस सम्बन्ध में पृथक् रूप से भी विचार करने की आवश्यकता है। चिन्तन करनेपर ज्ञात होता है कि ज्ञान की अन्य शाखाओं के सदृश दर्शन शास्त्र का सम्बन्धवस्तु- विशेष या घटना विशेष के विषय में जानकारी प्राप्त करना या खोज बीनकरना नहीं है, वरन् कुछ ऐसे मौलिक (fundamental) तथा सामान्य (gene-ral) प्रश्नों पर विचार करना है जिनका उत्तर जाने बिना न विश्व के मूल स्वरूपको समझा जा सकता है और न ही विश्व की वस्तुओं के मूल स्वरूप और अन्तिममूल्य (ultimare value) को उदाहरण के रूप में यह एक दार्शनिक प्रश्न नहींहै कि वायुयान का अविष्कार किसने किया ? या दिल्ली का लाल किला किसनेबनवाया? प्रत्युत यह एक दार्शनिक प्रश्न है कि संसार का सृजन किसने किया ?क्या ईश्वर ने इसका सृजन किया है ? अथवा अन्य परमाणुओं के आकस्मिकसम्मिश्रण मात्र से ही इसकी उत्पत्ति हो गई है ? पुनः यह एक दार्शनिक प्रश्न नहीं है कि बम्बई यहाँ से कितनी दूर है ? वरन् यह एक दार्शनिक प्रश्न है कि 'देश' काक्या स्वरूप है? न ही यह एक दार्शनिक प्रश्न है कि मैसूर का 'वृन्दावन उद्यान' कब बनाया गया ? परन्तु यह एक दार्शनिक प्रश्न है कि 'काल' का क्या स्वरूप है ?तदुपरान्त यह एक दार्शनिक प्रश्न नहीं कहा जा सकता कि कालिदास कौन था ?किन्तु यह एक दार्शनिक प्रश्न है कि मनुष्य का वास्तविक स्वरूप क्या है और जीवात्मा किसे कहते हैं ? न ही यह एक दार्शनिक प्रश्न कहा जा सकता है कि कालिदास का देहान्त कब हुआ? परन्तु यह एक दार्शनिक प्रश्न है कि जीवन किसेकहते हैं और मृत्यु का क्या स्वरूप है? इसी प्रकार "क्या यह कहना सत्य है कि आकाश नीला नहीं है" ? - यह एक दार्शनिक प्रश्न नहीं है? प्रत्युत यह एक दार्श-निक प्रश्न है कि ज्ञान (अर्थात् प्रामाणिक ज्ञान) का क्या स्वरूप है और ज्ञान(Knolwedge) का सत्य ( Reality) से क्या सम्बन्ध है ? पुन: क्या आजाद दर्शन का स्वरूप हिन्द सेना के सेनानियों के विरुद्ध ब्रिटिश सरकार का बाद (मुकदमा ) चलानाउचित (नैतिक) था या अनुचित (अनैतिक) ? यह एक दार्शनिक प्रश्न नहीं है।वरन यह एक दार्शनिक प्रश्न है कि नैतिकता और अनैतिकता का मूल स्वरूप याहै ? यह भी एक दार्शनिक प्रश्न नहीं है कि सिकन्दर का भारत पर आक्रमण करनेका क्या लक्ष्य था ? किंतु यह एक दार्शनिक प्रश्न है कि मनुष्य जीवन का क्यालक्ष्य है? इस प्रकार हम देखते हैं कि जब हम वस्तु विशेष या घटना विशेष केसम्बन्ध में जिज्ञासा न करके उनके आदि कारण तथा अन्तिम लक्ष्य (The firstwhence and the last whither) के विषय में विचार करने लगते हैं अर्थात्उनके मूल एवं वास्तविक स्वरूप के विषय में सोचने लगते हैं तब हम दर्शन के क्षेत्रमें प्रवेश कर जाते हैं और हमारी समस्याओं का स्वरूप दार्शनिक होता है।

Yog Vashistha Ramayan

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