एकतत्त्ववाद के पक्ष में तर्क Arguments in Favor of Monism
मूल तत्त्व, यदि वह निरपेक्ष है, तो अवश्य ही एक होगा; क्योंकि जहाँ द्वैतहोगा या अनेकता होगी, वहाँ वे एक-दूसरे की स्वतन्त्रता में बाधक बनेंगे, वेनिरपेक्ष नहीं रह सकते। अतः अंतिम तत्त्व को अद्वैत ही मानना उचित है।
मूलतत्त्व हमारे विश्व का एक आधार होता है, अतः, उसे सर्वव्यापक होना चाहिए। और ऐसी सर्वव्यापक सत्ता एक ही हो सकती है। यदि दो हुई तोएक-दूसरे के अन्दर होगी या बाहर । यदि अन्दर हुई तो उसी का अंग होगीऔर यदि बाहर हुई तो किसी में सर्वव्यापकता नहीं रहेगी। इस प्रकार, किसी भी स्थिति में अन्तिम तत्त्व एक ही मानना पड़ेगा।
आध्यात्मिक अनुभूति भी अन्तिम तत्त्व को एक ही कहती है । 'ऊँ' शब्द एकता का ही सूचक है जो सर्वव्यापकता को सूचित करता है। इसे समस्त जगत का आधार कहा जाता है।
पाश्चात्य दर्शन के सम्प्रदाय
स्पिनोजा का निराकार एकतत्त्ववाद
(Abstract Monism of Spinoza )
हॉलैंड के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी दार्शनिक स्पिनोजा एकतत्ववाद के समर्थकहैं। इनका सिद्धान्त निराकार एकतत्ववाद कहलाता है। स्पिनोजा अपने पूर्ववर्ती दार्शनिक डेकार्ट के बुद्धिवाद का समर्थन करता है। वह डेकार्ट की द्रव्य की परिभाषा से भी सहमत है, किन्तु इस परिभाषा के आधार पर डेकार्ट जिस द्वैतवाद की स्थापना करता है उस पर स्पिनोजा को आपत्ति है। स्पिनोजा के एकतत्त्ववादी विचारों काअध्ययन हम द्वैतवाद की आलोचना से करेंगे! द्वैतवाद की आलोचना – डेकार्ट ने द्रव्य की परिभाषा निर्धारित की थी कि द्रव्यवह है जो अपनी सत्ता के लिए किसी की अपेक्षा नहीं रखता अर्थात् जो स्वयंस्थित है, स्वतन्त्र है। स्पिनोजा को इस पर कोई आपत्ति नहीं है। किन्तु उसका मत हैकि इससे द्वैतवाद की स्थापना नहीं हो सकती। डेकार्ट ने कहा था कि अन्तिम तत्त्व दो हैं—
जड़ और चेतन; दोनों निरपेक्ष एवं एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं। इस पर स्पिनोजा कहता है कि जहाँ द्वैत होगा वहाँ स्वतन्त्रता और निरपेक्षता नहीं रह सकती। दोनों तत्वों को एक-दूसरे की अपेक्षा रहेगी ही, अतः द्वैतवाद आलोच्य है।एकतत्त्ववाद की स्थापना – इस प्रकार द्वैतवाद की उपरोक्त आलोचना केपश्चात् डेकार्ट की ही उपरोक्त परिभाषा से स्पिनोजा यह निष्कर्ष निकालता है. कि अन्तिम तत्त्व दो न होकर अद्वैत सत्ता है, अर्थात् एक ही है। इस एक तत्त्व को स्पिनोजाईश्वर का नाम देता है। यह एकतत्व ईश्वर स्वयं स्थित, स्वयंभू, स्वतन्त्र, निरपेक्ष,तटस्थ, अमूर्त्त एवं अद्वितीय है। इस प्रकार, इस एक ईश्वर को मूल द्रव्य मान कर स्पिनोजा एकतत्ववाद की स्थापना करता है।
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