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bhagwan ram ka rajyabhishek aadarsh ram rajay भगवान श्री राम जी का राज्याभिषेक देवताओं द्वारा भगवान की स्तुति

देवताओं द्वारा भगवान श्री राम की स्तुति, जब श्री रामचन्द्र जी का राज्याभिषेक हो गया


मुने जब श्री रामचन्द्र जी का राज्याभिषेक हो गया तो राक्षसराज रावणके वधसे प्रसन्नचित्त हुए देवताओंने प्रणाम करके उनका इस प्रकार स्तवन किया, aadarsh ram rajay stuti


देवता बोले देवताओं की पीड़ा दूर करने वाले दशरथ नन्दन श्री रामआपकी जय हो, आपके द्वारा जो राक्षसराज का विनाश हुआ है उस अद्भुत कथा का समस्त कविजन उत्कण्ठा पूर्वक वर्णन करेंगे, भुवनेश्वर प्रलयकाल में आप 

सम्पूर्ण लोकों की परम्परा 

को लीला पूर्वक ग्रस लेते हैं, प्रभो आप जन्म और जरा आदि के दुःखों से सदा मुक्त हैं, प्रबल शक्ति सम्पन्न परमात्मन् आपकी जय हो आप हमारा उद्धार कीजिये उद्धार कीजिये, धार्मिक पुरुषों के कुलरूपी समुद्र में प्रकट होने वाले अजरअमर और अच्युत परमेश्वर आपकी जय हो, भगवन् आप देवताओं से श्रेष्ठ हैं, आपका नाम लेकर अनेकों प्राणी पवित्र हो गये, फिर जिन्होंने श्रेष्ठ द्विजवंश में जन्म ग्रहण करके उत्तम मानव शरीर को प्राप्त किया है, 


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शिव और ब्रह्माजी भी जिनको मस्तक झुकाते हैं

उनका उद्धार होना कौन बड़ी बात है शिव और ब्रह्माजी भी जिनको मस्तक झुकाते हैं जो पवित्र यव आदि के चिह्नों से सुशोभित तथा मनोवाञ्छित कामना एवं समृद्धि देने वाले हैं उन आप के चरणों का हम निरन्तर अपने हृदय में चिन्तन करते रहें यही हमारी अभिलाषा है, आप कामदेव की भी शोभा को तिरस्कृत करने वाली मनोहर कान्ति धारण करते हैं, परम पावन दयामय यदि आप इस भूमण्डल को अभयदान न दें तो देवता कैसे सुखी हो सकते हैं, 

अवतार लीला

 नाथ जब जब दानवी शक्तियाँ हमें दुःख देने लगें तब तब आप इस पृथ्वी पर अवतार ग्रहण करें, विभो यद्यपि आप सबसे श्रेष्ठ अपने भक्तों द्वारा पूजित अजन्मा तथा अविकारी हैं तथापि अपनी माया का आश्रय लेकर भिन्न भिन्न रूप में प्रकट होते हैं। आपके सुन्दर चरित्र पवित्र लीलाएँ मरने वाले प्राणियों के लिये अमृतके समान दिव्य जीवन प्रदान करने वाले हैं। उनके श्रवण मात्रसे समस्त पापोका नाश हो जाता है। आपने अपनी इन लीलाओं से समस्त भूमण्डल को व्याप्त कर रक्खा है तथा गुणों का गान करनेवाले देवताओं द्वारा भी आपकी स्तुति की गयी है। जो सब के आदि हैं परन्तु जिनका आदि कोई नहीं है जो अजर तरुण रूप धारण करने वाले हैं जिनके गले में हार और मस्तक पर किरीट शोभा पाता है जो कामदेवकी भी कान्तिको लजित करने वाले हैं साक्षात् भगवान् शिव जिनके चरण कमलों की सेवा में लगे रहते हैं तथा जिन्होंने अपने शत्रु रावण का बलपूर्वक वध किया है वे श्रीरघुनाथ जी सदा ही विजयी हो, ब्रह्मा आदि सम्पूर्ण देवताओं ने इस प्रकार स्तुति करके विनीत भाव से श्री रघुनाथ जी को बारंबार प्रणाम किया,


भगवान श्री राम जी ने देवताओं को वरदान दिया।

महायशस्वी श्री रामचन्द्र जी देवताओं की इस स्तुति से बहुत सन्तुष्ट हुए और उन्हें मस्तक झुकाकर चरणों में पड़े देख बोले, श्री राम ने कहा देवताओ तुमलोग मुझसे कोई ऐसा वर माँगो जो तुम्हें अत्यन्त दुर्लभ हो तथा जिसे अब तक किसी देवता दानव यक्ष और राक्षस ने भी नहीं प्राप्त किया हो, देवता वोले स्वामिन् आपने हमलोगों के इस शत्रु दशानन का जो वध किया है उससे हमें सब उत्तम वरदान प्रास हो गया, अब हम यही चाहते हैं कि जब जब कोई असुर हमलोगों को क्लेश पहुँचावे तब तब आप इमी तरह हमारे उस शत्रु का नाश किया करें, वीरवर भगवान् श्री रामचन्द्र जी ने बहुत अच्छा कह कर देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की और फिर इस प्रकार कहा, श्रीराम चोले देवताओ तुम सब लोग आदर पूर्वक मेरा वचन सुनो तुमलोगों ने मेरे गुणों को ग्रथित करके जो यह अद्भुत स्तोत्र बनाया है इसका जो मनुष्य प्रातः काल तथा रात्रि में एक बार प्रतिदिन पाठः करेगा उसको कभी अपने शत्रुओं से पराजित होनेका भयङ्कर कष्ट नहीं भोगना पड़ेगा, उसके घर में दरिद्रता का प्रवेश नहीं होगा तथा उसे रोग नहीं सतायेंगे इतना ही नहीं इसके पाठ से मनुष्योंके उल्लासपूर्ण हृदय में मेरे युगलचरणों की गाढ़ भक्तिका उदय होगा,


रामराज्य का संक्षिप्त विवरण। रामराज्य का आदर्श राज्य क्यों कहा गया है? aadarsh ram rajay,
स्वस्थ लाभ


यह कहकर नरदेव शिरोमणि श्री रघुनाथ जी चुप हो गये तथा सम्पूर्ण देवता अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने अपने लोक को चले गये, इधर लोकनाथ श्री रामचन्द्र जी अपने विद्वान् भाइयों का पिता की भॉति पालन करते हुए प्रजा को अपने पुत्र के समान मान कर सबका लालन पालन करने लगे, उनके शासन काल में जगत्के मनुष्यों की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती थी, किसी के घर में रोग आदि का प्रकोप नहीं होता था, न कभी इति दिखायी देती और न शत्रुसे ही कोई भय होता, 


गौ रक्षा और खेती गृहस्थी

वृक्षों में सदा फल लगे रहते और पृथ्वी पर अधिक मात्रा में अनाज की उपज होती थी स्त्रियों का जीवन पुत्र पौत्र आदि परिवार से सनाथ रहता था, उन्हें निरन्तर अपने प्रियतम का संयोग जनित सुख मिलते रहने के कारण विरह का क्लेश नहीं भोगना पड़ता था, सब लोग सदा श्री रघुनाथ जी के चरणकमलों की कथा सुनने के लिये उत्सुक रहते थे, नकी वाणी कभी परायी निन्दा में नहीं प्रवृत्त होती थी, उनके मन में भी कभी पाप का संकल्प नहीं होता था , सीता पति श्री रामके मुख की ओर निहारते समय लोगों की आँखें स्थिर हो जाती वे एकटक नेत्रों से उन्हें देखते रह जाते थे, 


प्रजा रक्षक

सबका हृदय निरन्तर करुणा से भरा रहता था । सदा इष्ट यज्ञयागादि और आपूर्त कुएँ खुदवाने बगीचे लगवाने आदि के अनुष्ठान करने वाले लोगों के द्वारा उस राज्य की जड़ और मजबूत होती थी, समूचे राष्ट्र में सदा हरी भरी खेती लहराती रहती थी, जहाँ सुगमता पूर्वक यात्रा की जा सके ऐसे क्षेत्रों से वह देश भरा हुआ था, उस राज्य का देश सुन्दर और प्रजा उत्तम थी, सब लोग स्वस्थ रहते थे , गौएँ अधिक थीं और घास पात का अच्छा सुभीता था, स्थान स्थान पर देवमन्दिरों की श्रेणियाँ रामराज्य की शोभा बढ़ाती थीं, उस राज्य में सभी गाँव भरे पूरे और धन सम्पत्ति से सुशोभित थे, वाटिकाओं में सुन्दर सुन्दर फूल शोभा पाते और वृक्षों में स्वादिष्ठ फल लगते थे, कमलों से भरे हुए तालाब वहाँ की भूमिका सौन्दर्य बढ़ा रहे थे, रामराज्य में केवल नदी ही सदग्भा उत्तम जलवाली थी वहाँकी जनता कहीं भी सदम्भा दम्भ या पाखण्ड से युक्त नहीं दिखायी देती थी, ब्राह्मण क्षत्रिय आदि वर्गों के कुल समुदाय ही कुलीन उत्तम कुल में उत्पन्न थे उनके धन नहीं कुलीन थे अर्थात् उनके धनका कुत्सित मार्ग में लय उपयोग नहीं होता था, उस राज्य की स्त्रियों मे ही विभ्रम हाव भाव या विलास था विद्वानों में कही विभ्रम भ्रान्ति या भूल का नाम भी नहीं था। 


सत्त्वगुण का ही उद्रेक


वहाँ की नदियाँ ही कुटिल मार्ग से जाती थीं प्रजा नहीं अर्थात् प्रजा में कुटिलता का सर्वथा अभाव था। श्रीराम के राज्य में केवल कृष्णपक्ष की रात्रि ही तम अन्धकार से युक्त थी मनुष्यों में तम अज्ञान या दुःखनहीं था। वहॉकी स्त्रियों में ही रजका संयोग देखा जाता था धर्म प्रधान मनुष्यों में नहीं अर्थात् मनुष्यों में धर्म की अधिकता होने के कारण सत्त्वगुण का ही उद्रेक होता था रजोगुण का नहीं धन से वहाँ के मनुष्य ही अनन्ध थे मदान्ध होनेसे बचे थे उनका भोजन अनन्ध अन्नरहित नहीं था, उस राज्य में केवल रथ ही अनय लोह रहित था राज कर्मचारियो में अनय अन्याय का भाव नहीं था, फरसे फावड़े चँवर तथा छत्रों में ही दण्ड डंडा देखा जाता था अन्यत्र कहीं भी क्रोध या बन्धन जनित दण्ड देखने में नहीं आता था, जलों मे ही जडता या जलत्व की बात सुनी जाती थी मनुष्यो में नहीं, स्त्री के मध्य भाग कटि में ही दुर्बलता पतला पन थी अन्यत्र नहीं, वहाँ ओषधियों मे ही कुष्ठ कूट या कूठ नामक दवा का योग देखा जाता था मनुष्योंमें कुष्ठ कोढ़ का नाम भी नहीं था,


शिक्षा व्यवस्था न्यायिक व्यवस्था स्वस्थ लाभ


रत्नों में ही वेध छिद्र होता या मूर्तियों के हाथों में ही शूल त्रिशूल रहता था प्रजा के शरीर मैं वेध या शूल का रोग नहीं था, रसानुभूति के समय सात्त्विक भाव के कारण ही शरीर में कम्प होता था भय के कारण कहीं किसी को कँपकँपी होती हो ऐसी बात नहीं देखी जाती थी, रामराज्य में केवल हाथी ही मत वाले होते थे मनुष्यों में कोई मतवाला नहीं था, तरङ्गे जलाशयों में ही उठती थीं किसी के मन में नही क्योंकि सब का मन स्थिर था, दान मद का त्याग केवल हाथियों में ही दृष्टिगोचर होता था, राजाओं में नहीं । काँटे ही तीखे होते थे मनुष्यों का स्वभाव नहीं, केवल बाणों का ही गुणों से वियोग होता था मनुष्योंका नहीं, दृढ बन्धोक्ति सुश्लिष्ट प्रबन्धर चना या कमलबन्ध आदि इलोकों की रचना केवल पुस्तकों में ही उपलब्ध होती थी लोक में कोई सुदृढ बन्धन में बाँधा या कैद किया गया हो ऐसी बात नहीं सुनी जाती थी, प्रजाको सदा ही श्री रामचन्द्रजी से लाड़प्यार प्राप्त होता था, अपने द्वारा लालित प्रजा का निरन्तर लालन पालन करते हुए वे उस सम्पूर्ण देश की रक्षा करते थे, 


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