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janpad सोलह जनपदों के देशों मै अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा श्री राम की गाथा - माता ने विजय का आशीर्वाद

सोलह जनपदों के देशों मै अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा घुमा हर और श्री राम की गाथा प्रचलित थी

भगवान श्री राम जी ने भरत कुमार पुत्र पुष्कल को और हनुमान ही को शत्रुध्न सहित यज्ञ के घोड़ों की सुरक्षा प्रदान करने का कार्य सौंपा 16 janpad in hindi


अश्वमेध यज्ञ घोड़ा रवना से पूर्व शत्रुघ्नको इस प्रकार आदेश देकर भगवान् श्रीराम ने अन्य योद्धाओं की ओर देखते हुए पुनः मधुर वाणी में कहा वीरो मेरे भाई शत्रुघ्न घोड़े की रक्षा के लिये जा रहे हैं तुमलोगों में से कौन वीर इनके आदेश का पालन करते हुए पीछे की ओर से इनकी रक्षा करने के लिये जायगा जो अपने मर्मभेदी अस्त्रशस्त्रो द्वारा सामने आये हुए सब वीरों को जीतने तथा भूमण्डल में अपने सुयश को फैलाने में समर्थ हो वह मेरे हाथ पर रक्खा हुआ यह बीड़ा उठाले,


पुष्कल ने ली जिम्मेदारी स्तिथि नियंत्रित रखने का वचन दिया 16 janpad in hindi


श्री रघुनाथ जी के ऐसा कहने पर भरतकुमार पुुत्र पुष्कल ने आगे बढ़कर उनके कर कमल से वह बीड़ा उठा लिया और कहा, स्वामिन् मैं जाता हूँ मैं ही कवच आदि के द्वारा सब ओर से सुरक्षित हो तलवार आदि शस्त्र तथा धनुषबाण धारण करके अपने चाचा शत्रुध्न को पृष्ठभाग की रक्षा करूँगा, इस समय आपका प्रताप ही समूची पृथ्वी पर विजय प्राप्त करेगा ये सब लोग तो केवल निमित्तमात्र हैं, यदि देवता असुर और मनुष्यो सहित सारी त्रिलो की युद्ध के लिये उपस्थित हो जाय तो उसे भी मैं आपकी कृपा से रोकने में समर्थ हो सकता हूँ, मेरा पराक्रम देखकर प्रभुको स्वयं ही सब कुछ ज्ञात हो जायगा,


पुष्कल के साहस सुनकर रघुपति प्रसन्न हुए, सोलह जनपदों के देशों मै अश्वमेघ यज्ञ


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ऐसा कहते हुए पुष्कल की बात सुनकर भगवान् श्री रामने उनकी प्रशंसा की तथा साधुसाधु कहकर उनके कथन का अनुमोदन किया, इसके बाद वानर वीरों में प्रधान हनुमान जी आदि सब लोगों से कहा महावीर हनुमान् मेरी बात ध्यान देकर सुनो मैंने तुम्हारे ही प्रसाद से यह अकण्टक राज्य पाया है, हमलोगो ने मनुष्य होकर भी जो समुद्र को पार किया तथा सीता के साथ जो मेरा मिलाप हुआ, यह सब कुछ मैं तुम्हारे ही बल का प्रभाव समझता हूँ, मेरी आज्ञा से तुम भी सेना के रक्षक होकर जाओ, मेरे भाई शत्रुघ्न की मेरी ही भाँति तुम्हें रक्षा करनी चाहिये, महामते जहाँ जहाँ भाई शत्रुघ्न की बुद्धि विचलित हो वहाँ वहाँ तुम इन्हें समझा वुझाकर कर्तव्य का ज्ञान कराना, 


परमबुद्धिमान् श्री रामचन्द्र जी का यह श्रेष्ठ वचन सुनकर हनुमान जी ने उनकी आज्ञा शिरोधार्य की और जाने के लिये तैयार होकर प्रणाम किया, तब महाराज ने जामवंत जी को भी साथ जाने का आदेश दिया सब लोग रथों तथा सुवर्णमय आभूषणो से विभूषित अच्छे अच्छे घोड़ों पर सवार हो वख्तर और टोप से सजधज कर शीघ्र यहाँ से यात्रा करें,


भगवान श्री राम जी ने मन्त्री सुमन्त्र से कि आगे की रणनीतिक वार्ता


तत्पश्चात् बल और पराक्रम से शोभा पाने वाले श्री रामचन्द्र जी ने अपने उत्तम मन्त्री सुमन्त्र को बुला कर कहा मन्त्रिवर वताओ इस कार्य में और किन किन लोगों को नियुक्त करना चाहिये कौन कौन मनुष्य अश्व की रक्षा करने में समर्थ हैं, उनका प्रश्न सुनकर सुमन्त्र बोले श्री रघुनाथ जी सुनिये आपके यहाँ सम्पूर्ण शस्त्र और अस्त्र के शान में निपुण महान् विद्वान् धनुर्धर तथा अच्छी प्रकार बाणों का सन्धान करने वाले अनेकों वीर उपस्थित हैं, उनके नाम ये हैं, प्रतापागथ नीलरत्न लक्ष्मीनिधि रिपुताप उग्राश्व और शस्त्रवित्ये सभी बलमें बढ़ेचढ़े राजा चतुर ङ्गिणी सेना के साथ कवच आदि से सुसजित होकर जायें और आपके घोड़े की रक्षा करते हुए शत्रुघ्न जी की आज्ञा शिरोधार्य करें, 


गरीबों दीन दुखियो मै अमूल्य रत्न और कपड़े बाटे गए। सभी महर्षियों को शास्त्रोक्त उत्तम दक्षिणाएँ दी गई,


मन्त्री की यह बात सुनकर श्री रामचन्द्र जी को बड़ा हर्ष हुआ और उन्होंने उनके बताये हुए सभी योद्धाओ को जाने के लिये आदेश दिया, श्री रघुनाथ जी की आज्ञा पाकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई क्योंकि वे बहुत दिनों से युद्धकी इच्छा रखते थे और रण में उन्मत्त होकर लड़ने वाले थे, श्री सीता पति की प्रेरणा से वे सभी राजा कवच आदि से सुसजित हो अस्त्र शस्त्र लेकर शत्रुघ्न के निवास स्थान पर गये,


अन्न और वस्त्र रत्न दान किए गए, सोलह जनपदों के देशों मै अश्वमेघ यज्ञ 16 janpad in hindi


तदनन्तर ऋषि की आज्ञा पाकर श्री रामचन्द्र जी ने आचार्य आदि सभी महर्षि यों को शास्त्रोक्त उत्तम दक्षिणाएँ देकर उनका विधिवत् पूजन किया, उस समय श्री रघुनाथ जी के यज्ञ में सब ओर यही बात सुनायी देती थी देते जाओ देते जाओ खूब धन लुटाओ किसी को निराश नहीं करो साथ ही समस्त भोग सामग्रियों से युक्त अन्न का दान करो,


कुमार शत्रुघ्न अपनी माता से मिल आशीर्वाद लेने पहुंचे


इस प्रकार वह यज्ञ चल रहा था, उसमें दक्षिणा पाये हुए श्रेष्ठ ब्राह्मणों की भरमार थी, वहाँ सभी तरह के शुभ कर्मों का अनुष्ठान हो रहा था, इधर श्री रामचन्द्र जी के छोटे भाई शत्रुघ्न अपनी माता के पास जा उन्हें प्रणाम करके बोले कल्याण मयी माँ मैं घोड़े की रक्षाके लिये जा रहा हूँ मुझे आज्ञा दो, तुम्हारी कृपा से शत्रुओं को जीत कर विजय की शोभा से सम्पन्न हो अन्य महाराजाओं तथा घोड़े को साथ लेकर लौट आऊँगा, 


माता ने विजय का आशीर्वाद दिया

माता बोली बेटा जाओ महावीर तुम्हारा मार्ग मङ्गलमय हो, अपने समस्त शत्रुओं को जीतकर फिर यहाँ लौट आओ, तुम्हारा भतीजा पुष्कल धर्मज्ञों में श्रेष्ठ है उसकी रक्षा करना, पुुत्र तुम पुष्कल के साथ सकुशल लौट कर आओगे तभी मुझे अधिक प्रसन्नता होगी, अपनी माता की ऐसी बात सुनकर शत्रुघ्न ने उत्तर दिया माँ मैं अपने शरीर की भाँति पुष्कल की रक्षा करूँगा तथा जैसा मेरा नाम है उसके अनुसार शत्रुओं का नाश करके प्रसन्नता पूर्वक लौटूंगा, तुम्हारे इन युगल चरणों का सरण करके मैं कल्याण का ही भागी होऊँगा, 


कुमार शत्रुघ्न का माता के महल से प्रस्थान, सोलह जनपदों के देशों मै अश्वमेघ यज्ञ

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ऐसा कहकर वीर शत्रुघ्न वहाँ से चल दिये तथा यज्ञमण्डप से छोड़ा हुआ वह यज्ञ का अश्य अस्त्र शस्त्रों की विद्या में प्रवीण सम्पूर्ण योद्धाओं द्वारा चारों ओर से घिर कर सबसे पहले पूर्व दिशा की ओर गया उसका वेग वायु के समान था, जब वे चलने को उद्यत हुए तो उनकी दाहिनी बॉह फड़क उठी और उन्हें कल्याण तथा विजय की सूचना देने लगी,


कुमार पुष्कल अपने धर्म पत्नी से मिलकर सब स्तिथि बताएं और गृहणी के कर्तव्यों का स्मरण कराया


पुष्कल अपने सुन्दर एवं समृद्धि शाली महल में गये और वहाँ अपनी पतिव्रता पत्नी से मिले जो स्वामी के दर्शन के लिये उत्कण्ठित थी और उन्हें देखकर हर्ष में भर गयी थी, उससे मिलकर पुष्कल ने कहा, हे भद्रे मैं चाचा शत्रुघ्न का पृष्ठ पोषक होकर रथ पर सवार हो यज्ञ के घोड़े की रक्षा के लिये जा रहा हूँ, इस कार्य के लिये मुझे श्री रघुनाथ जी की आज्ञा मिल चुकी है, तुम यहाँ रहकर मेरी समस्त माताओं का सत्कार करना तथा चरण दबाना आदि सभी प्रकार की सेवाएँ करना, उनके प्रत्येक कार्य में उनकी आज्ञा का पालन करने मे आदर एवं उत्साह के साथ प्रवृत्त होना, यहाँ लोपामुद्रा आदि जितनी पतिव्रता देवियाँ आयी हुई हैं वे सभी अपने तपोबल से सुशोभित एवं कल्याणमयी है, तुम्हारे द्वारा उनमें से किसी का अपमान न हो जाय इसके लिये सदा सावधान रहना,  


पत्नी कान्तिमती ने पुष्कल जी को आश्वासन दिया और उनका मनोबल बढ़ाया 16 janpad in hindi


पुष्कल जब इस प्रकार उपदेश दे चुके तो उनकी पतिव्रता पत्नी कान्तिमती ने पति की ओर प्रेम पूर्ण दृष्टि से देखा तथा अत्यन्त विश्वस्त होकर मन्द मन्द मुसकराती हुई वह गद्गद वाणी मे बोली नाथ संग्राम में आपकी सर्वत्र विजय हो आपको चाचा शत्रुघ्नजी की आज्ञा का सर्वथा पालन करना चाहिये तथा जिस प्रकार भी घोड़े की रक्षा हो उसके लिये सचेष्ट रहना चाहिये, स्वामिन् आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके अपने श्रेष्ठ कुल की शोभा बढ़ाइये महाबाहो जाइये इस यात्रा में आपका कल्याण हो, यह है आपका धनुष जो उत्तम गुण सुदृढ़ प्रत्यञ्चा से सुशोभित है इसे शीघ्र ही हाथ में लीजिये इसकी टंकार सुन कर आप के शत्रुओ का दल भय से व्याकुल हो उठेगा, 


कान्तिमती ने पुष्कल को सैन्य पोशाक पहनाई और आरती उतारी

वीर ये आपके दोनों तरकश हैं, इन्हें बाँध लीजिये जिससे युद्ध में आपको सुख मिले, इसमें वैरियों को टुकड़े टुकड़े कर डालने वाले अनेक बाण भरे हैं, प्राणनाथ कामदेव के समान सुन्दर अपने शरीर पर यह सुदृढ़ कवच धारण कीजिये जो विद्युत्की प्रभा के समान अपने महान् प्रकाश से अन्धकार को दूर किये देता है, प्रियतम अपने मस्तक पर यह शिरस्त्राण मुकुट भी पहन लीजिये जो मन को लुभानेवाला है, साथ ही मणियों और रत्नों से विभूपित ये दो उज्ज्वल कुण्डल हैं, इन्हें कानों में धारण कीजिये, 


पतिव्रता कान्तिमती ने अस्त्र शस्त्रों से शोभायमान अपने पति को वीरमाला से विभूषित किया तथा कुडुम अगुरु कस्तूरी और चन्दन आदि अनेकों फूलों के हार पहनाये पूजन के पश्चात् उस सती ने बारम्बार पति की आरती उतारी


पुष्कलने कहा प्रिये, तुम जैसा कहती हो वह सब मैं करूँगा, वीर पत्नी कान्तिमती तुम्हारी इच्छा के अनुसार मेरी उत्तम कीर्ति का विस्तार होगा, ऐसा कह कर पराक्रमी वीर पुष्कल ने कान्तिमती के दिये हुए कवच सुन्दर मुकुट धनुप और विशाल तरकश इन सभी वस्तुओं को ले लिया, उन सबको धारण करके वे वीरोचित शोभा से सम्पन्न दिखायी देने लगे, उस समय सम्पूर्ण अस्त्र शस्त्रों के शान में प्रवीण उत्तम योद्धा पुष्कल की शोभा बहुत बढ़ गयी, 


पतिव्रता कान्तिमती ने अस्त्र शस्त्रों से शोभायमान अपने पति को वीरमाला से विभूषित किया तथा कुडुम अगुरु कस्तूरी और चन्दन आदि से उनकी पूजा करके अनेकों फूलों के हार पहनाये जो घुटनेतक लटककर पुष्कलकी कान्ति बढ़ा रहे थे। पूजन के पश्चात् उस सती ने बारम्बार पति की आरती उतारी, उसके बाद पुष्कल बोले, अब मैं तुम्हारे सामने ही यात्रा करता हूँ, 


कुमार पुष्कल ने किए अपनी माता मांडवी और पिता भरत से भेंट 16 janpad in hindi


पत्नी से ऐसा कहकर वे सुन्दर रथपर आरूढ़ हुए और अपने पिता भरत तथा स्नेहविह्वला माता माण्डवी का दर्शन करने के लिये गये, वहाँ जाकर उन्होंने बड़ी प्रसन्नता के साथ पिता और माता के चरणों में मस्तक सुकाया फिर पिता और माता की आश लेकर वे पुलकित शरीर से शत्रुघ्न की सेना में गये जो बड़े बड़े वीरों से सुशोभित थी, तदनन्तर शत्रुघ्न श्री रघुनाथ जी के महायश सम्बन्धी घोड़े को आगे करके अनेकों रथियों पैदल चलने वाले शूरवीरों अच्छे अच्छे घोड़ों और सवारों से घिर कर बड़ी प्रसन्नता के साथ आगे बढ़े,


सोलह जनपदों में पाञ्चाल कुरु उत्तर कुरु और दशार्ण देशों मै राम की गाथा सुनाई पड़ी


वे घोड़े के साथ साथ पाञ्चाल कुरु उत्तर कुरु और दशार्ण आदि देशो में जो सम्पत्ति में बहुत बढ़े चढ़े थे भ्रमण करते रहे,  शत्रुघ्न जी सब प्रकार की शोभा से सम्पन्न थे, उन्हे उन सभी देशो में श्री रामचन्द्र जी के सम्पूर्ण सुयश की कथा सुनायी पड़ती थी, लोग कहते थे श्री रघुनाथ जी ने रावण नामक असुर को मार कर अपने भक्त जनों की रक्षा की है अब पुनः अश्वमेध आदि पवित्र कार्यों का अनुष्ठान आरम्भ कर के भगवान् श्री राम त्रिभुवन में अपने सुयश का विस्तार करते हुए सम्पूर्ण लोकों की भय से रक्षा करेंगे, इस तरह भगवान्का यशोगान करने वाले लोगों पर सन्तुष्ट होकर पुरुष श्रेष्ठ शत्रुघ्न जी उन्हे पुरस्कार के रूप में सुन्दर हार नाना प्रकार के रत्न और बहुमूल्य वस्त्र देते थे, 


अनेकों गॉवों और जनपद 16 janpad in hindi


श्री रघुनाथ जी के एक सचिव थे जिनका नाम था सुमति था, वे सम्पूर्ण विद्याओं में प्रवीण और तेजस्वी थे, वे भी शत्रुघ्न जी के अनुगामी होकर आये थे, महाधीर शत्रुघ्न उनके साथ अनेकों गॉवों और जनपदों में गये किन्तु श्री रघुनाथ जी के प्रताप से कोई भी उस घोड़े का अपहरण न कर सका, भिन्न भिन्न देशों के जो बहुत से राजे महाराजे थे वे यद्यपि महान् बल से विभूपित तथा चतुरङ्गिणी सेना से सम्पन्न थे तथापि मोती और मणियो सहित बहुत सी सम्पत्ति साथ ले घोड़ेकी रक्षामें आये हुए शत्रुघ्नजीके चरणों में गिर जाते और बारम्बार कहने लगते रघुनन्दन यह राज्य तथा पुत्र पशु और वान्धवोंसहित सारा धन भगवान् श्रीरामका ही है हमारा इसमें कुछ भी नहीं है । उनकी ऐसी बातें सुनकर विपक्षी वीरों का हनन करनेवाले शत्रुघ्नजी वहाँ अपनी आज्ञा घोषित कर देते और उन्हें साथ ले आगेके मार्गपर बढ़ जाते थे,

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