जन्मकुंडली में शानदार राजयोग कब बनता है, राजयोग जो धन-प्रतिष्ठा,अच्छकाम-काज,सफलता,भाग्य के साथ, सुख-सुबिधाओं से पूर्ण जीवन आदि।
यह राजयोग के सामान्य फल होते है जिनकी भी कुंडली मे यह राजयोग बनता है तब उनको निश्चित ही यह सुख मिलते है।
जब बहु कुंडली के केंद्र1,4,7,10 भाव स्वामी और त्रिकोण1,5,9 के स्वामी शुभ स्थिति में संबंध बनाते है, तब राजयोग बनता है।अब यह राजयोग शानदार या सर्वश्रष्ठ होकर कब उचाईयो तक लेकर जाता है और कब इसका वास्तविक राजयोगकारक फल मिलता है।
कुंडली के दूसरे और ग्यारहवे भाव धन-दायक,
सुख,सफलता,वृद्धि/लाभ दायक है।तो जिन भी जातको की कुंडली मे राजयोग बनाने वाले ग्रहो का संबंध दूसरे भाव(धन भाव) या ग्यारहवे भाव(लाभ, वृद्धि)के घर से भी राजयोग कारक ग्रहो का संबंध बन जाये तब राजयोग के फलो में दिन दुगनी रात चौगुनी जैसी तरक्की और अखंड राजयोग के फल आजीवन मिलते रहते है ऐसा क्यों? क्योंकि राजयोग धन, उचाइयां, लाभ, सुख ,कामयाबी आदि देता तो जब धनदायक (दूसरे/ग्यारहवे भाव या इनके स्वामियों)से संबंध होगा तो ऐसे जातक बहुत तरक्की करते है, फर्श से अर्श तक जाते है ग्यारहवा भाव या इसका स्वामी उचाइयां की और रास्ते देता रहे और राजयोग तो है ही सफलता के लिए और
यदि दूसरे भाव या इसके स्वामी से संबंध हुआ तो
बहुत धन,दौलत, पारिवारिक उन्नति,सुख में वृद्धि करता रहेगा।इसके विपरीत राजयोग होने पर भी यदि दूसरा बबाव या इसका स्वामी और ग्यारहवा भाव या इसका स्वामी अस्त, नीच पीड़ित,अशुभ हो तब राजयोग भी खास, धन,ऐश्वर्य,उन्नति,सफलता नही देता क्योंकि यह भाव धन दायक, और सौभाग्य दायक है ऐसी स्थिति में राजयोग है तो उसके कारक जातक को कोई अच्छी नौकरी या काम हो सकता है पर उस नौकरी या काम से जीवन मे कोई रौनक धन,समृद्धि, लाभ, खेर-बरकत आदि की जीवन मे न दिखेगी, क्योंकि धन-दायक भावो से संबंध नहीं या धनदायक भावो के स्वामी2 और 11के स्वामी अशुभ है।इसी तरह जो ग्रह लग्न कुंडली मे राजयोग दे यदि वही ग्रह नवमांश कुंडली में भी राजयोग बना ले तो सोने पर सुहागा होगा ,मतलब दोनो हाथों में जातक के लड्डू होंगे क्योंकि लग्न और नवमांश दोनो कुंडलियो में राजयोग बनने से बहुत मजबूत स्थिति राजयोग की बन जाती है और वही बात फिर जो ग्रह लग्न कुंडली मे राजतोग बना रहे है वही ग्रह नवमांश कुंडली में भी राजयोग बनाये दो बहुत कामयाबी देंगे।।
सिंह लग्न की जन्मकुंडली मे गुरु(5वे भाव)और शुक्र(दसवे भाव) और बुध दूसरे ग्यारहवे भाव का स्वामी होकर प्रबल धन सफलता कारक है तो सिंह लग्न में शुक्र बुध गुरु का किसी भी बलवान शुभ राशि मे केंद्र त्रिकोण या 11वे भाव मे संबंध बहुत ताकतवर और शानदार राजयोग के फल देगा।क्योंकि शुक्र गुरू राजतोग बना दिया और बुध अकेला ही दूसरे और ग्यारहवे भाव का स्वामी है।
यदि सिंह लगन जातक की नवमांश कुंडली मे भी इन्ही ग्रहो से राजयोग बन रहा हो या कोई शुभ संबंध हो तो सोने पर सुहागा जैसी शुभ स्थिति रहेगी।।
कन्या लग्न की जन्मकुंडली में शुक्र बुध का संबंध राजयोग कारक होता है और शुक्र दूसरे भाव का स्वामी भी होता है तो और अच्छा साथ ग्यारहवे भाव का स्वामी चन्द्र होता है तो यहाँ बुध शुक्र का संबंध बलवान स्थिति में प्रबल शानदार राजयोग देगा क्योंकि शुक्र नवे(त्रिकोण का स्वामी हौ और बुध दसवे भाव(केंद्र)और लग्न(केंद्र त्रिकोण) का स्वामी हैअब स्वामी है और शुक्र दूसरे भाव का स्वामी भी होता है स्वयं ही और यदि शुक्र बुध का संबंध चन्द्र से भी हो जाये जो कि चन्द्र ग्यारहवे भाव का स्वामी है तो बहुत ही कामयाबी देने वाला शानदार राजयोग होगा।
जिन जातकों की कुंडली मे इस तरह से संबंध राजयोग का दूसरे या ग्यारहवे भाव/भावेश से हो या इनमे से किसी एक भाव या भावेश से हो तो यही वास्तव में प्रबल शानदार राजयोग के फल देने वाला राजयोग होता है।
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