ॐ
पुनर्जन्म्रश्नोत्तरी, Reincarnation questions answered।
(1) :- पुनर्जन्म किसको कहते हैं ?
:- जब जीवात्मा एक शरीर का त्याग करके किसी दूसरे शरीर में जाती है तो इस बार बार जन्म लेने की क्रिया को पुनर्जन्म कहते हैं ।
(2) :- पुनर्जन्म क्यों होता है ?
:- जब एक जन्म के अच्छे बुरे कर्मों के फल अधुरे रह जाते हैं तो उनको भोगने के लिए दूसरे जन्म आवश्यक हैं।*
(3) :- अच्छे बुरे कर्मों का फल एक ही जन्म में क्यों नहीं मिल जाता ? एक में ही सब निपट जाये तो कितना अच्छा हो ?
:- नहीं जब एक जन्म में कर्मों का फल शेष रह जाए तो उसे भोगने के लिए दूसरे जन्म अपेक्षित होते हैं।
(4) :- पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है ?
:- पुनर्जन्म को समझने के लिए जीवन और मृत्यु को समझना आवश्यक है और जीवन मृत्यु को समझने के लिए शरीर को समझना आवश्यक है।
(5) :- शरीर के बारे में समझाएँ ?
:- हमारे शरीर को निर्माण प्रकृति से हुआ है। जिसमें मूल प्रकृति (सत्व रजस और तमस) से प्रथम बुद्धि तत्व का निर्माण हुआ है। बुद्धि से अहंकार (बुद्धि का आभामण्डल) अहंकार से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (चक्षु, जिह्वा, नासिका, त्वचा, श्रोत्र), मन पांच कर्मेन्द्रियाँ (हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक्)। शरीर की रचना को दो भागों में बाँटा जाता है (सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर)।
(6) :- सूक्ष्म शरीर किसको बोलते हैं ?
:- सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, अहंकार, मन, ज्ञानेन्द्रियाँ। ये सूक्ष्म शरीर आत्मा को सृष्टि के आरम्भ में जो मिलता है वही एक ही सूक्ष्म शरीर सृष्टि के अंत तक उस आत्मा के साथ पूरे एक सृष्टि काल ( ४३२००००००० वर्ष ) तक चलता है । और यदि बीच में ही किसी जन्म में कहीं आत्मा का मोक्ष हो जाए तो ये सूक्ष्म शरीर भी प्रकृति में वहीं लीन हो जायेगा।*
(7) :- स्थूल शरीर किसको कहते हैं ?
:- पंच कर्मेन्द्रियाँ (हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक्), ये समस्त पंचभौतिक बाहरी शरीर ।
(8) :- जन्म क्या होता है ?
:- जीवात्मा का अपने करणों (सूक्ष्म शरीर) के साथ किसी पंचभौतिक शरीर में आ जाना ही जन्म कहलाता है ।
(9) :- मृत्यु क्या होती है ?
:- जब जीवात्मा का अपने पंचभौतिक स्थूल शरीर से वियोग हो जाता है, तो उसे ही मृत्यु कहा जाता है । परन्तु मृत्यु केवल सथूल शरीर की होती है , सूक्ष्म शरीर की नहीं। सूक्ष्म शरीर भी छूट गया तो वह मोक्ष कहलाएगा मृत्यु नहीं। मृत्यु केवल शरीर बदलने की प्रक्रिया है, जैसे मनुष्य कपड़े बदलता है। वैसे ही आत्मा शरीर भी बदलता है।
(10) :- मृत्यु होती ही क्यों है ?
जैसे किसी एक वस्तु का निरन्तर प्रयोग करते रहने से उस वस्तु का सामर्थ्य घट जाता है, और उस वस्तु को बदलना आवश्यक हो जाता है, ठीक वैसे ही एक शरीर का सामर्थ्य भी घट जाता है और इन्द्रियाँ निर्बल हो जाती हैं। जिस कारण उस शरीर को बदलने की प्रक्रिया का नाम ही मृत्यु है।
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