Garud Puran Adhyaya 1 sanskrit shlok hindi arth sahit, गरुड़ पुराण अध्याय 1 संस्कृत श्लोक हिन्दी अर्थ सहित ! महामुनि सूतजी एवं ऋषिगण भगवान् श्रीविष्णु एवं पक्षिराज गरुड के बीच संवाद।
॥श्रीहरिः॥ गरुड़ पुराण पहला अध्याय।
गरुडपुराण-सारोद्धार भगवान् विष्णु तथा गरुड के संवाद में गरुडपुराण-सारोद्धार का उपक्रम, पापी मनुष्यों की इस लोक तथा परलोक में होने वाली दुर्गति का वर्णन, दशगात्र के पिण्ड दान से यातना देह का निर्माण।
धर्म दृढबद्धमूलो वेदस्कन्धः पुराणशाखाढ्यः। क्रतुकुसुमो मोक्षफलो मधुसूदनपादपो जयति॥१॥ नैमिषेऽनिमिषक्षेत्रे ऋषयः शौनकादयः। सत्रं स्वर्गाय लोकाय सहस्त्रसममासत॥२॥
धर्म ही जिसका सुदृढ़ मूल है, वेद जिसका स्कन्ध (तना) है, पुराणरूपी शाखाओंसे जो समृद्ध है, यज्ञ जिसका पुष्प है और मोक्ष जिसका फल है, ऐसे भगवान् मधुसूदनरूपी पादप कल्पवृक्षकी जय हो॥१॥
देव-क्षेत्र नैमिषारण्यमें स्वर्गलोककी प्राप्तिकी कामनासे शौनकादि ऋषियोंने (एक बार) सहस्रवर्षमें पूर्ण होनेवाला यज्ञ प्रारम्भ किया॥२॥
जैसे वृक्ष सबको आश्रय देता है, वैसे ही भगवान् भी अपने चरणारविन्दों में आश्रय देकर सबकी रक्षा करते हैं, इसीलिये भगवान् मधुसूदनको यहाँ पादप (पद्भ्यां चरणाभ्यां पाति रक्षतीति पादपः) वृक्ष की उपमा दी गयी है।
एकदा मुनयः सर्वे प्रातर्तुतहुताग्नयः । सत्कृतं सूतमासीनं पप्रच्छुरिदमादरात्॥३॥
एक समय प्रात:कालके हवनादि कृत्योंका सम्पादन करके उन सभी मुनियोंने सत्कार किये गये आसनासीन सूतजी महाराजसे आदरपूर्वक यह पूछा- ॥३॥
ऋषय ऊचुः
कथितो भवता सम्यग्देवमार्गः सुखप्रदः। इदानीं श्रोतुमिच्छामो यममार्ग भयप्रदम्॥४॥ तथा संसारदुःखानि तत्क्लेशक्षयसाधनम् । ऐहिकामुष्मिकान् क्लेशान् यथावद्वक्तुमर्हसि ॥५॥
ऋषियोंने कहा-(हे सूतजी महाराज!) आपने सुख देनेवाले देवमार्गका सम्यक् निरूपण किया है। इस समय हमलोग भयावह यममार्गके विषयमें सुनना चाहते हैं। आप सांसारिक दुःखोंको और उस क्लेशके विनाशक साधनको तथा इस लोक और परलोकके क्लेशोंको यथावत् वर्णन करने में समर्थ हैं। अत: उसका वर्णन कीजिये ॥४-५॥
Garud Puran Adhyaya 1 sanskrit shlok hindi arth sahit, गरुड़ पुराण श्लोक अर्थ सहित।
सूत उवाच शृणुध्वं भो विवक्ष्यामि यममार्ग सुदुर्गमम् । सुखदं पुण्यशीलानां पापिनां दुःखदायकम्॥६॥
यथा श्रीविष्णुना प्रोक्तं वैनतेयाय पृच्छते । तथैव कथयिष्यामि संदेहच्छेदनाय वः॥७॥
सूतजी बोले-हे मुनियो! आपलोग सुनें। मैं अत्यन्त दुर्गम यममार्गके विषयमें कहता हूँ, जो पुण्यात्माजनोंके लिये सुखद और पापियोंके लिये दुःखद है। गरुडजीके पूछनेपर भगवान् विष्णुने (उनसे) जैसा कुछ कहा था, मैं उसी प्रकार आपलोगोंके संदेहकी निवृत्तिके लिये कहूँगा ॥६-७॥
कदाचित् सुखमासीनं वैकुण्ठं श्रीहरि गुरुम् । विनयावनतो भूत्वा पप्रच्छ विनतासुतः॥८॥ किसी समय वैकुण्ठमें सुखपूर्वक विराजमान परम गुरु श्रीहरिसे विनतापुत्र गरुडजी ने विनय से झुककर पूछा-॥८॥
गरुड उवाच भक्तिमार्गों बहुविधः कथितो भवता मम । तथा च कथिता देव भक्तानां गतिरुत्तमा॥ ९॥
अधुना श्रोतुमिच्छामि यममार्ग भयंकरम् । त्वद्भक्तिविमुखानां च तत्रैव गमनं श्रुतम्॥१०॥
सुगमं भगवन्नाम जिह्वा च वशवर्तिनी । तथापि नरकं यान्ति धिग् धिगस्तु नराधमान्॥११॥
अतो मे भगवन् ब्रूहि पापिनां या गतिर्भवेत् । यममार्गस्य दुःखानि यथा ते प्राप्नुवन्ति हि॥१२॥
गरुड जी ने कहा-हे देव! आपने भक्तिमार्ग का अनेक प्रकार से मेरे समक्ष वर्णन किया है और भक्तोंको प्राप्त होनेवाली उत्तम गतिके विषयमें भी कहा है। अब हम भयंकर यममार्गके विषयमें सुनना चाहते हैं। हमने सुना है कि आपकी भक्तिसे विमुख प्राणी वहीं (नरकमें) जाते हैं ॥९-१०॥
भगवान्का नाम सुगमतापूर्वक लिया जा सकता है, जिह्वा प्राणीके अपने वश में है तो भी लोग नरकको जाते हैं, ऐसे अधम मनुष्योंको बार-बार धिक्कार है। इसलिये हे भगवन्! पापियोंको जो गति प्राप्त होती है तथा यममार्गमें जैसे वे अनेक प्रकारके दुःख प्राप्त करते हैं, उसे आप मुझसे कहें ॥११-१२॥
Garud Puran Adhyaya 1 sanskrit shlok hindi arth sahit, गरुड़ पुराण अध्याय 1
श्रीभगवानुवाच वक्ष्येऽहं शृणु पक्षीन्द्र यममार्गं च येन ये । नरके पापिनो यान्ति शृण्वतामपि भीतिदम्॥१३॥
श्रीभगवान् बोले-हे पक्षीन्द्र ! सुनो, मैं उस यममार्गके विषयमें कहता हूँ, जिस मार्गसे पापीजन नरककी यात्रा करते हैं और जो सुननेवालोंके लिये भी भयावह है॥१३॥
ये हि पापरतास्ताय दयाधर्मविवर्जिताः । दुष्टसङ्गाश्च सच्छास्त्रसत्संगतिपराङ्मुखाः॥१४॥
आत्मसम्भाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः । आसुरं भावमापन्ना दैवीसम्पद्विवर्जिताः॥१५॥
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः। प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ॥१६॥
ये नरा ज्ञानशीलाश्च ते यान्ति परमां गतिम् । पापशीला नरा यान्ति दुःखेन यमयातनाम्॥१७॥
पापिनामैहिकं दुःखं यथा भवति तच्छृणु । ततस्ते मरणं प्राप्य यथा गच्छन्ति यातनाम्॥१८॥
हे तार्क्ष्य! जो प्राणी सदा पापपरायण हैं, दया और धर्मसे रहित हैं, जो दुष्ट लोगोंकी संगतिमें रहते हैं, सत्-शास्त्र और सत्संगतिसे विमुख हैं; जो अपनेको स्वयंप्रतिष्ठित मानते हैं, अहंकारी हैं तथा धन और मानके मदसे चूर हैं, आसुरी शक्तिको प्राप्त हैं तथा दैवी सम्पत्तिसे रहित हैं; जिनका चित्त अनेक विषयोंमें आसक्त होनेसे भ्रान्त है, जो मोहके जालमें फँसे हैं और कामनाओंके भोगमें ही लगे हैं, ऐसे व्यक्ति अपवित्र नरकमें गिरते हैं। जो लोग ज्ञानशील हैं, वे परम गतिको प्राप्त होते हैं। पापी मनुष्य दुःखपूर्वक यम-यातना प्राप्त करते हैं ॥ १४-१७॥
पापियों को इस लोकमें जैसे दुःखकी प्राप्ति होती है और मृत्युके पश्चात् वे जैसी यमयातनाको प्राप्त होते हैं, उसे सुनो॥१८॥
Garud Puran Adhyaya 1 sanskrit shlok hindi arth sahit, गरुड़ पुराण का रहस्य क्या है?
गरुड़ पुराण अध्याय 1
गरुड़ पुराण अध्याय 20
गरुड़ पुराण अध्याय 2 pdf
गरुड़ पुराण अध्याय 15
गरुड़ पुराण अध्याय 13
गरुड़ पुराण अध्याय 16
गरुड़ पुराण अध्याय 11
गरुड़ पुराण अध्याय 4
गरुड़ पुराण अध्याय 12
गरुड़ पुराण अध्याय 2
गरुड़ पुराण अध्याय 3
गरुड़ पुराण के कितने अध्याय हैं
गरुड़ पुराण अध्याय 1 PDF
गरुड़ पुराण अध्याय 5
गरुड़ पुराण अध्याय 17
गरुड़ पुराण श्लोक अर्थ सहित
कौन सा पुराण पढ़ना चाहिए?
गरुड़ पुराण में कितने अध्याय होता है?
गरुण पुराण में कितने श्लोक हैं?
गरुड़ पुराण का रहस्य क्या है?
गरुड़ पुराण के टोटके
गरुड़ पुराण अध्याय 17
गरुड़ पुराण के अनुसार स्त्रियों को कभी 4 काम नहीं करने चाहिए
गरुड़ पुराण स्त्री
गरुड़ पुराण पूजन सामग्री
गरुड़ पुराण अध्याय 3
गरुड़ पुराण के कितने अध्याय हैं
गरुड़ पुराण कब पढ़ना चाहिए
गरुड़ पुराण अध्याय 4
शिव पुराण श्लोक अर्थ सहित
0 Comments