Savitri aur satayvaan, सावित्री कौन थी? सावित्री ने सत्यवान को कैसे बचाया? सावित्री ने यमराज से क्या वरदान मांगा था? सती सावित्री देवी की संपूर्ण कहानी।
Savitri aur satayvaan, प्राचीन काल में मद्रदेश नाम का एक राज्य था। उस राज्य का राजा अश्वपति था। वह अच्छे आचरण का धर्मात्मा राजा था। वह बड़ा दानवीर था। उसके द्वार पर कोई भी आया हुआ संतुष्ट होकर ही जाता था। याचक को खाली हाथ लौटाना उसके धर्म के प्रतिकूल था। राजा के राज्य में ब्राह्मणों को यज्ञ आदि करने की स्वतंत्रता थी।
साथ ही कोई शूद्र भी उसके राज्य में अपमानित नहीं होता था। राजा क्षमाशील था। राजा सभी तरह से सुखी और प्रसन्न था। पर नियति के खेल निराले हैं। वह किसी को भी पूरा सुख नहीं देती। कोई न कोई ऐसी कमी रख देती है जिससे प्राणी को कोई दुःख रहता ही है अभाव रहता ही है। अश्वपति को एक बहुत बड़ा दुःख था। वह यह था कि उसके कोई संतान न थी। युवा अवस्था में तो उसने कोई चिंता नहीं की। जब उसकी उम्र ढलने लगी तब उसे लगा कि निस्संतान मरना घोर पाप है। ऐसे व्यक्ति का न तो यह लोक सुधरता है और न परलोक। वह नरक का भागी होता है। तब राजा ने अपने गुरुओं को बुलाकर उनसे विचार किया। गुरुवर मैं हर तरह से सुखी हूं पर निस्संतान होने के कारण मैं बड़ा दुखी हूं। मुझे इस संकट से बचाने के लिए कोई श्रेष्ठ उपाय बताइए। विद्वानों ने सोचकर कहा आप देवी सावित्री की तपस्या कीजिए। वही प्रसन्न होकर आपको वरदान देगी। राजा ने सावित्री देवी की उपासना शुरू कर कर दी। वह नियमपूर्वक उसकी सेवा करता था। कम अन्न खाता था। ब्रह्मचर्य का पालन करता था। उसने अठारह वर्ष तक देवी सावित्री का जपतप किया। एक लाख बार हवन किया। अंत में सावित्री देवी उससे प्रसन्न हो गई। वह प्रकट होकर बोली राजा मैं तुमसे संतुष्ट हूं। तुमने मेरी जो उपासनाआराधना की है वह सराहनीय है। तुम जो चाहो मुझसे वरदान मांग सकते हो। अश्वपति की आंखों में खुशी के आंसू उमड़ आए। वह कुछ बोलना चाहता था पर उससे बोला नहीं गया। बोलो राजा बोलो। सावित्री देवी ने फिर कहा। राजा ने अपनेआपको संभाला। फिर वह धीरे से बोला देवी मां आप तो सब कुछ जानती हैं कि मैंने यह तप क्यों किया है। आप हर किसी के हृदय की बात को जानती हैं फिर भी आपकी आज्ञा से मैं यह प्रार्थना करूंगा कि मैंने यह तपस्या संतान के लिए की है। मां यह सच है कि वंशहीन व्यक्ति चाहे वह राजा हो या रंक उसका जीवन पापमय होता है। उसकी गति और मुक्ति किसी भी लोक में नहीं होती मुझे आप संतान का वर दीजिए। देवी बोली मुझे पहले ही तुम्हारे तप का अभिप्राय मालूम था इसलिए मैंने परमपिता ब्रह्मा से अनुरोध कर दिया था। राजा तुम्हारे संतान जरूर होगी। मां की जय। पर कन्या होगीअत्यंत ही सुंदर गुणवान और तेजस्वी कन्या धन्य हो मांधन्य हो राजन् वह कन्या सती होगी और तुम्हारे कुल का गौरव बढ़ाएगी। जिस तरह पुत्र वंश के नाम को उजागर करता है उसी तरह वह कन्या तुम्हारे नाम को सारी धरती पर फैलाएगी। सावित्री देवी अंतर्धान हो गई। राजा के कानों में देवी के कहे हुए शब्द गूंजने लगे। वह प्रसन्न हो गया। वह दौड़ा दौड़ा राजमहल में आया। उसने यह शुभ समाचार सबको सुनाया। महल में भी प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। चारों ओर मंगल गीत गाए जाने लगे राजा अश्वपति की सबसे बड़ी रानी का नाम धर्मिष्ठा था। वह भी राजा की तरह सदा धर्म और कर्म का पालन करने वाली थी। उसका हृदय दया का सागर था। एक दिन धर्मिष्ठा ने राजा को बताया महाराज एक शुभ संवाद बोलो रानी। महाराज मेरे पांव भारी हैं। सच रानी ने लाज के कारण पलकें झुका लीं। ओह रानी आज मेरी प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं है।
Savitri aur satayvaan, मां सावित्री के वरदान का ही यह फल है। हां महाराज आप सच कहते हैं यह सब उसी की कृपा का फल है। भगवान अब जल्दी से जल्दी मुझे वह दिन दिखाए जब मैं एक संतान का पिता कहलाऊं और मेरी रानी उसकी जननी। हां महाराज। दोनों बड़ी आकुलता से उस दिन की प्रतीक्षा करने लगे। राजा अश्वपति पूजा से निवृत्त होकर सूर्य को अर्घ्य दे रहे थे। सूर्य भगवान अपने संपूर्ण तेज से चमक रहे थे। आकाश साफ और नीला था। हवा में सुगंध मिली हुई थी। शायद वह बगीचे की ओर से आ रही थी। वे जैसे ही इस कार्य से निवृत्त हुए वैसे ही एक दासी ने आकर कहा महाराज की जय हो बधाई क्यों क्या हुआ राजा ने पूछा। महाराज आपके पुत्री हुई है। सच बहुत बहुत बधाई राजा ने अपने गले का हार उतारकर उस दासी को दे दिया। दासी ने महाराज की एक बार फिर जयकार की। राज ने स्वयं जाकर देखासचमुच कन्या अत्यंत रूपवती होने के साथसाथ तेजस्वी थी। महारानी धर्मिष्ठा ने राजा से कहा यह कितना बड़ा सच है कि स्त्री मां बनकर बड़ा सुख और संतोष पाती है। किसी बात से वह ऐसा संतोष नहीं पाती। मैं अपने हृदय की प्रसन्नता को कह नहीं पा रही हूं महाराज हां रानी यह सब मां सावित्री की कृपा है। राजा ने कहा मैं अभी राजगुरु व विद्वान पंडितों को बुलाकर नामकरण आदि का मुहूर्त निकलवाता हूं। ठीक है महाराज। महाराज ने शीघ्र ही महामंत्री को बुलाया। और उनसे अपने मन की बात कही। थोड़ी ही देर में राजगुरु के अलावा बड़ेबड़े पंडित दरबार में आ गए। उन्होंने शुभ मुहूर्त निकाला। नामकरण के दिन हवन और पूजा की गई। ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। गरीबों को उनकी जरूरतों के मुताबिक वस्तुएं बांटी गईं। पंडितों ने इस कन्या को सावित्री का वरदान माना इसलिए इसे सावित्री नाम दिया गया। सावित्री दिनप्रतिदिन बड़ी होने लगी। बेटी को बड़ी होने में क्या देर लगती है देखते ही देखते सावित्री ने वय प्राप्त किया। युवा होने पर उसका सौंदर्य खूब खिल गया। वह अप्सरासी लगने लगी। एक दिन राजारानी बगीचे में टहल रहे थे। सावित्री भी अपनी सखियों के साथ खड़ी थी। एक नटखट भंवरा सावित्री पर मंडराने लगा। सावित्री उसे बारबार हटाती लेकिन वह भंवरा इतना ढीठ था कि बारबार आकर सावित्री पर मंडराने लगता। सावित्री ने अपनी खास सहेली वनिका से कहा वनिका तुम खड़ीखड़ी क्या कर रही हो इस भंवरे को हटाओ न वनिका ने मजाक में कहा अब यह भंवरा नहीं हटेगा राजकुमारी जी यह भंवरा कह रहा है कि हमारी राजकुमारी जवान हो गई है। राजा और रानी ने यह बात सुन ली। रानी ने कहा महाराज आपने कुछ सुना कि यह सखी क्या कह रही है। हां रानी हमारी बेटी अब युवा हो गई है। युवा बेटी मांबाप को सताती है कि अब मेरे हाथ पीले करो भंवरे मंडराने लगे हैं कांटे वस्त्र उलझाने लगे हैं और नींद कम आने लगी है। हां रानी हम शीघ्र ही इस पर सोचेंगे। यह सही है कि जो पिता अपनी पुत्री के योग्य होने पर अच्छे वर की खोज नहीं करता उसकी हर जगह निंदा होती है। रानी हम जल्द से जल्द सावित्री के लिए एक योग्य वर की तलाश करेंगे। राजा ने थोड़ी देर सोचा। फिर कहा अच्छा तो यह होगा कि हम सावित्री से ही पूछ लें विवाह के बारे में उसकी क्या इच्छा है हां यही ठीक रहेगा। रानी ने मुसकराते हुए कहा समझदार बेटी और बेटे को यह अधिकार देना चाहिए। इसे ही महाराज निज की स्वतंत्रता कहते हैं। राजा ने जोर से पुकारा सावित्रीबेटी सावित्री सावित्री ने जैसे ही पिता की पुकार सुनी वह लपककर पास आई। यौवनसरोवर के कमल खिल गए थे। अचानक पिता के पुकारने पर सावित्री को लगा कि अवश्य ही मेरे पिता ने मेरी सहेलियों व दासियों की बातें सुन ली हैं अतः वह मारे शर्म के लाल हो गई थी। उसके नयन अपनेआप ही झुक गए। वह अपने अंगूठे से दूब को कुरेदने लगी। क्या बात है बेटी इतनी चुपचुप कैसे खड़ी हो गईं रानी ने उसके समीप आकर उसे अपने गले लगाया। यूं ही पिताजी। सुनो बेटी रानी ने स्नेह से कहा तुम्हारे पिताजी तुम से कुछ कहना चाहते हैं। ध्यान से सुनो। कहिए पिताजी। सावित्री ने सिर झुकाए हुए कहा मैं आपकी बेटी हूं। आपकी हर बात को सुनना मेरा धर्म है। आपकी हर आज्ञा का पालन करना मेरा कर्तव्य है। आप जो चाहें कहिए। राजा ने गंभीर स्वर में कहा अब तुम युवा हो गई हो यानी कली से फूल। दूसरे शब्दों में विवाह के योग्यहम चाहते हैं कि तुम्हारे लिए किसी योग्य वर की खोज करके हम अपने धर्म का पालन करें। पिताजी मैं भी आपकी हर आज्ञा मानकर अपने धर्म का पालन करूंगी। सावित्री ने विनीत स्वर में कहा। तुम योग्य व समझदार हो अतः इस विषय में हम तुम्हारी इच्छा की स्वतंत्रता चाहते हैं। राजा ने कहा तुम्हें संकोच करना और डरना नहीं चाहिए। यदि तुम्हें कोई पुरुष पसंद हो तो हमें बताओ। सावित्री ने कहा पिताजी मुझे आपने बहुत स्वतंत्रता दे रखी है पर जो कन्या मर्यादा के बाहर जाती है वह अधर्म ही करती है। मर्यादा स्त्री का धर्म है। जो काम मांबाप की सीमा में है उसे भला मैं आपकी आज्ञा के बिना कैसे कर सकती हूं मैं जानती हूं कि हमारे यहां इस तरह की स्वतंत्रता नहीं है। मुझे तुमसे यही आशा थी बेटी। रानी ने स्नेह से कहा। राजा ने कहा मैं चाहता हूं कि तुम अपना मनपसंद वर खुद ढूंढ़ो। मैं हर प्रकार से सक्षम बाप हूं। अपनी बेटी की हर इच्छा को मैं किसी भी सूरत में पूरी कर सकता हूं। तुम्हारी इच्छा भी पूरी करूंगा। तुम अपने लिए लड़के को पसंद करो। भगवान ने चाहा तो सब ठीक होगा। जैसी आपकी आज्ञा। राजा और रानी चले गए। दासियों व सखियों ने सावित्री को फिर घेर लिया। वे उससे हँसी ठिठोली करने लगीं। राजा ने दूसरे दिन दरबार में अपने प्रमुख मंत्रियों और वृद्ध ब्राह्मणों को इकट्ठा किया। उनको अपने मन की बात बताई। अनुभवी महामंत्री ने कहा महाराज यही सही तरीका है। स्त्री को कम से कम यह स्वतंत्रता तो मिलनी ही चाहिए कि वह अपना वर स्वयं निश्चित करे। स्वयंवर भी इसी स्वतंत्रता का एक प्रतीक है। महाराज केवल राजा का पुत्र होने से ही वह योग्य हो सभी कलाओं में पूर्ण हो यही जरूरी नहीं। स्वयंवर में तो हम नरेश के नाम और राज्य का ही वर्णन करते हैं। उनके आचरण को तो हम नहीं जानते। । हां महामंत्री सावित्री योग्य और समझदार है। हम चाहते हैं कि वह अपनी इच्छा से ही अपना वर चुने। आप इसके साथ विश्वासी सैनिक और सहेलियां भेज दीजिए यह वर की खोज में यात्रा पर जाएगी। राजा ने खुले मन से कहा। राजगुरु ने उठकर कहा इनके साथ मेरी बेटी भी जाएगी। मेरी बेटी सुज्ञाना भी धर्मशास्त्र की पंडित है वह सावित्री को धर्म की मर्यादा भी बताती रहेगी। यह तो और अच्छा रहेगा। रानी ने कहा जब कभी भी राजा के पांव गलत रास्ते पर जाते हैं तब गुरु मुनि और ऋषि ही उन्हें सही राह दिखाते हैं। महाराज ने कहा फिर सावित्री की यात्रा की तुरंत तैयारी की जाए। शीघ्र ही तैयारियां कर दी गईं। जाने के पहले सावित्री ने राजारानी से आशीर्वाद लिया। राजा ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा मां सावित्री तुम्हारी मनोकामना पूरी करे। रानी ने उसे गले लगाकर कहा मेरी बेटी को उसके मन को भाने वाला पति मिले। सावित्री रवाना हो गई। सावित्री सारे आर्यावर्त में घूमी। अनेक नगरों में जाकर कितने ही राजकुमारों से मिली। पर उसे कोई अच्छा नहीं लगा। न जाने क्यों उसे जीवन का ऐश्वर्य पसंद नहीं आया। महलों की दिखावटी तड़कभड़क और अहंकार ने उसे प्रभावित नहीं किया। एक राजकुमार ने उससे कहा देवी मैं उस कुल का राजकुमार हूं जिसने देवता और दैत्यों पर भी राज्य किया था सावित्री मुसकराकर बोली आप हर वस्तु को अधिकार में कर सकते हैं।
Savitri aur satayvaan, आप पृथ्वी के लोगों को अपने हथियारों के बल से दास बना सकते हैं पर अपने प्रेम से आपने कितने लोगों को दास बनाया है आपने कितने लोगों के मन पर विजय पाई राजकुमार चुप हो गया। सावित्री ने कहा आपको शायद यह पता नहीं है कि मेरे पिता नारीस्वतंत्रता के हामी हैं। उन्होंने मुझे इसीलिए यह कार्य सौंपा है कि मैं किसी योग्य उदार पुरुष की अर्धांगिनी बनकर रहूं। आपके अहंकार भरे विचारों से लगता है कि आप मुझे दासी बनाकर रखेंगे। इस तरह सावित्री अनेक राजकुमारों और राजाओं से मिलती हुई एक पवित्र वन में पहुंची। वहां उसने एक ऋषि की तरह जीने वाले युवक को देखा। वह युवक चेहरे से तेजस्वी लग रहा था। उसके चेहरे की शालीनता बता रही थी कि वह किसी उच्च कुल का स्वामी है। उसने अपने कंधे पर लकड़ियों का गट्टर लाद रखा था। वह बहुत ही धीरेधीरे जा रहा था। सामने से अचानक उसने रथों व घोड़ों को आते हुए देखा तो ठिठक गया। उसने सोचा कहीं हमारा पुराना शत्रु तो नहीं आ गया है ओह यदि वह आ गया है तो अवश्य ही वह मेरे अंधे मांबाप को सताएगा। उसने भगवान को याद कियाप्रभु चाहे मेरे प्राण ले लेना पर मेरे मांबाप को जरा भी कष्ट न पहुंचाना। तभी उसने देखा कि रथ पर एक सुंदर युवती सवार है। इस पवित्र वन में यह युवती कौन हो सकती है रथी घुड़सवार और पैदल रक्षकों के साथ है यह युवती। जरूर यह कोई बड़े राजा की बेटी होगी। सावित्री ने भी उस तेजस्वी युवक को देखा। उस युवक के चेहरे पर एक सलोना खिंचाव था। सावित्री उसे देखती रही। उसके मन में भी अजीब तरह का आकर्षण पैदा हो गया। मन में उस युवक के बारे में जानने की इच्छा हुई। वैसे विदुषी सावित्री ने इतना तो अनुमान लगा ही लिया कि यह कोई श्रेष्ठ युवक है एकदम कुलीन। सावित्री ने रथ रोका। नीचे उतरी। बोली क्या मैं जान सकती हूं कि आप कौन हैं युवक ने शालीनता से कहा अवश्य। आपका नाम क्या है मेरा नाम सत्यवान है। पिता का नाम राजा धमत्सेन। इस घोर पवित्र वन में आप यह लकड़ियों का गट्ठर उठाकर कहां जा रहे हैं देवी भाग्य के फेर निराले हैं। मनुष्य को सात जन्मों के कर्मों के फल भोगने पड़ते हैं। मेरे पिता शाल्व देश के राजा थे। अंधे होने से वे राजकाज भली भांति नहीं देख पाए। मैं तब छोटा और नादान था। इन सभी स्थितियों का फायदा उठाकर पड़ोसी देश के राजा ने आक्रमण कर दिया। उसने शाल्व देश की स्वतंत्रता छीन ली। हम अपने संकट के दिन यहां बिता रहे हैं। दुर्भाग्य से मेरे मांबाप नेत्रहीन हैं इसलिए मैं उनकी सेवा कर रहा हूं। ओह आप इस वय में ही इस घोर जंगल में रहकर जिस तरह का जीवन बिता रहे हैं क्या उससे आपका मन उचाट नहीं होता सावित्री ने गंभीर होकर पूछा। नहीं देवी बिलकुल नहीं होता। सत्यवान ने कहा मांबाप की सेवा में जिसे आनंद नहीं आता वह पुत्र नरक को जाता है। उसकी उन्नति कभी नहीं होती। वह यश के शिखर पर नहीं पहुंचता। आप बड़े ही शालीन और विनम्र हैं। सावित्री ने झट से पूछा इस कार्य में आपकी पत्नी अवश्य ही सहयोग करती होगी सत्यवान मुसकराया। बोला नहीं देवी मैं तो कुंवारा हूं। मांबाप मातेश्वरी आप ठीक कहती हैं पर जिन्होंने पक्के इरादे कर लिए हैं वे हर रास्ते पर चल सकते हैं। मैं तो सत्यवान से ही विवाह करूंगी। मैंने मन में उन्हें अपना पति मान लिया है। जैसी तुम्हारी इच्छा। राजा ने कहा कल मैं दरबार में इस विवाह के लिए मंत्रियों व पूजनीय ब्राह्मणों से विचार करूंगा। सावित्री ने कोई उत्तर नहीं दिया। दूसरे दिन दरबार में राजगुरु पंडित और मंत्रीगण उपस्थित थे। राजा ने सारी बात बताकर कहा मेरी बेटी सावित्री ने वनवासी राजकुमार सत्यवान को अपना वर चुना है। राजगुरु ने कहा कोई बात नहीं जिसके भाग्य में जो लिखा है वही होता है। सावित्री का यह वर पहले से ही तय है तभी द्वारपाल ने सिर झुकाकर कहा महाराज की जय हो देवर्षि नारद पधारे हैं। राजा ने चौंककर कहा देवर्षि नारद और इस समय राजा तुरंत सिंहासन से उतरा और भागकर दरवाजे पर गया। राजा को देखते ही नारदजी ने मुसकराकर कहा नारायण नारायण देवर्षि को मेरा प्रणाम राजा ने दंडवत् होकर नारदजी को प्रणाम किया।
Savitri aur satayvaan, सुखी रहो राजन् आइए देवर्षिआइए और मेरे दरबार की शोभा में चार चांद लगाइए। देवर्षि नारद राजा के पीछेपीछे आतेआते अपना इकतारा बजाते हुए नारायणनारायण करते जा रहे थे। दरबार में उन्हें उचित आसन दिया गया। महाराज की ओर देखकर नारदजी ने पूछा राजन् आज तो दरबार खचाखच भरा है। किस बात पर विचार हो रहा है राजा ने सारी बात बताकर कहा मेरी बेटी ने सत्यवान को अपना वर चुना है। वह उसे मन से वर भी चुकी है। अच्छा देवर्षि नारद ने सावित्री की ओर देखकर पूछा क्यों बेटी क्या मैं सच सुन रहा हूं हां देवर्षि। नारायणनारायण मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मेरी मनोकामना पूरी हो देवर्षि। सावित्री ने झुककर कहा। पर बेटी कहतेकहते रुक गए देवर्षि नारद। आप रुक क्यों गए देवर्षि सावित्री ने उन्हें गौर से देखा। बेटी यह ठीक नहीं रहेगा। क्यों देवर्षि तुम्हें वर्तमान भूत और भविष्य का पता नहीं है। देवर्षि नारद ने कहा जो तीनों लोकों की लीला को जानता है वह उस कड़वे सत्य को भी जानता है जो अज्ञात है। महात्मन् आप साफसाफ क्यों नहीं कहते सावित्री ने व्यग्रता से कहा। बेटी मैं जानता हूं कि सत्यवान जैसा सच्चा सेवाव्रती और शालीन दूसरा युवक पृथ्वी पर नहीं है। पर बेटी तुम्हें एक बात का पता नहीं है राजपुत्र सत्यवान का एक नाम चित्राश्व भी है। उसे बचपन से ही घोड़े प्यारे थे। वह मिट्टी के घोड़े बनाता था। वह कभी चित्र बनाता तो घोड़े का ही चित्र बनाता था। क्या वह सावित्री के लिए योग्य नहीं है भगवन् राजा ने पूछा। है और शतप्रतिशत है। वह तेजस्वी बुद्धिमान वीर और बड़ा ही सहनशील है। राजन् वह उदार सुंदर और मनोहर भी है। वह अपने मातापिता की बहुत सेवा करता है। राजा ने कहा भगवन् जब उसमें गुण ही गुण हैं तो वह सावित्री के योग्य क्यों नहीं राजन् सत्यवान में शायद इतनी पूर्णता इसलिए है कि उसमें एक बड़ा भयंकर दोष है। कौनसा आज से एक साल के बाद ही सत्यवान की मृत्यु हो जाएगी
सावित्री कौन थी
वट सावित्री कथा इन हिंदी
सावित्री देवी
सावित्री English
वट सावित्री पूजा विधि इन हिंदी
वट सावित्री व्रत में क्या खाना चाहिए
सत्यवान सावित्री 1977
सावित्री किसकी पुत्री थी
वट सावित्री पूजा में क्या क्या सामान लगता है?
2021 में वट सावित्री का व्रत कब है?
वट सावित्री कैसे किया जाता है?
सावित्री ने किसका वर्णन किया और क्यों?
सावित्री कौन थी उनका विवाह किससे हुआ था
सावित्री ने यमराज से कौन-कौन सेवर मांगे
सावित्री के पिता किस देश के रहने वाले थे
सावित्री किसकी पुत्री थी
सती सावित्री का पहला भाग
सत्यवान सावित्री की रागनी
सावित्री कौन थी उनका विवाह किससे हुआ?
सावित्री देवी कौन थी?
सावित्री ने सत्यवान को कैसे बचाया?
सावित्री के पिता का नाम क्या था?
सत्यवान के पुत्र का क्या नाम था?
सावित्री ने किसका वर्णन किया और क्यों?
सत्यवान सावित्री कौन है?
यमराज से पति के प्राण कैसे बचाएं?
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