Shubh aur Ashubh lakshan wali striyo ke lakshan pahchane शुभ लक्षण वाली स्त्रियों के अंग लक्षण
श्री हरि ने कहा-जिस कन्या के केश धुंघराले, मुख मण्डलाकार अर्थात् गोल एवं नाभि दक्षिणावर्त होती है, वह कुलकी वृद्धि करनेवाली होती है। जो स्वर्णसदृश आभावाली होती है, जिसके हाथ लाल कमलके समान सुन्दर होते हैं, वह हजारों स्त्रियोंमें अद्वितीय तथा पतिव्रता होती है। जो कन्या वक्र केशोंवाली और गोल नेत्रवाली होती है, वह निश्चित ही दुःख भोगनेवाली होती है तथा उसका पति शीघ्र ही मर जाता है।
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पूर्णचन्द्रके सदृश मुखमण्डल से सुशोभित, बालसूर्य के समान लाल-लाल कान्तिवाली, विशाल नेत्रोंसे युक्त, बिम्बाफलकी भाँति ओष्ठवाली कन्या चिरकालतक सुखका उपभोग करती है। हस्ततल में बहुत-सी रेखाओंके होनेपर कष्ट तथा अल्प रेखाओंके होनेपर वह धनहीनताका दुःख भोगती है। हाथमें रक्तवर्णकी रेखाओंके होनेसे वह सुखी जीवन व्यतीत करती है, किंतु कृष्णवर्णकी रेखाओंके होनेपर वह दास्यवृत्ति वाली दूती का जीवन व्यतीत करती है। अच्छी स्त्री वह है, जो पति के कार्यों में मन्त्री के समान परामर्श देनेवाली होती है। सहयोगमें मित्रके समान बर्ताव करती है। स्नेहके व्यवहारमें भार्या अथवा माता तथा शयनकालमें वेश्याके समान सुख प्रदान करती है। जिस कन्याके हाथमें अंकुश, कुण्डल और चक्रके चिह्न विद्यमान रहते हैं, वह पुत्रसे सम्पन्न होती है और राजाको पतिके रूपमें वरण करती है। जिस स्त्री के दोनों पार्श्व और स्तन-प्रदेश रोमसमन्वित होते हैं तथा अधरोष्ठ-भाग ऊँचा उठा हुआ होता है, वह निश्चित ही शीघ्र पतिका नाश करनेवाली होती है। जिसके हाथमें प्राकार और तोरणकी रेखाएँ दिखायी देती हैं, वह दासकुलमें भी उत्पन्न होकर रानीके पदको प्राप्त करती है। जिस कन्याकी नाभि ऊपरकी ओर उठी हुई, मण्डलाकार एवं कपिलवर्णकी रोमावलियोंसे आवृत्त रहती है,
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वह कन्या राजकुलमें उत्पन्न होकर दासी की वृत्ति से जीवनयापन करती है। जिस स्त्रीके चलनेपर दोनों पैरकी अनामिका तथा अंगुष्ठ पृथिवीतलका स्पर्श नहीं करते हैं, वह शीघ्र ही पतिका नाश करती है तथा स्वयं स्वेच्छाचारपूर्वक जीवन बितानेवाली होती है। जिस स्त्रीके चलनेसे पृथिवीमें कम्पन हो उठता है, वह शीघ्र ही पतिका नाश करके स्वेच्छाचारिणी बन जाती है। सुन्दर मनोहारी नेत्रोंके होनेसे स्त्री सौभाग्यशालिनी, उज्ज्वल चमकते हुए दाँतोंके होनेपर उत्तम भोजन प्राप्त करनेवाली, शरीरकी त्वचा सुन्दर एवं कोमल होनेसे उत्तम प्रकारकी शय्या तथा कोमल स्निग्ध चरणोंके होनेपर वह श्रेष्ठ वाहनका सुख प्राप्त करती है। चिकने, ऊँचे उठे हुए ताम्रवर्णके समान लाल- लाल नखोंसे युक्त, मत्स्य, अंकुश, पद्म, चक्र तथा लाङ्गल (हल)-चिह्नसे सुशोभित एवं पसीने से रहित और कोमल तलवाले स्त्रीके चरण सौभाग्यशाली होते हैं। सुन्दर रोमविहीन जंघा, गजशुण्डके सदृश ऊरु, पीपल पत्रके समान विशाल उत्तम गुह्यभाग, दक्षिणावर्त गम्भीर नाभि, रोमरहित त्रिवली और हृदयपर सुशोभित रोमरहित स्तन-प्रदेश-ये उत्तम स्त्री के शुभ लक्षण हैं।
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