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padma purana online - पद्म पुराण कथा इन हिंदी अध्याय 27 - भगवत्पूजन दीपदान यमतर्पण दीपावलीकृत्य गोवर्धनपूजा

padma purana online - पद्म पुराण कथा इन हिंदी अध्याय  27 - भगवत्पूजन दीपदान यमतर्पण दीपावलीकृत्य गोवर्धनपूजा, पद्मपुराण के अनुसार अध्याय  27 यमद्वितीया के दिन करने योग्य कृत्यों का वर्णन!


padma purana stories - padma purana online महादेव जी कहते हैं,

जो प्रतिदिन मालती से भगवान् गरुड़ध्वज का पूजन करता है वह जन्म के दुःखों और बुढ़ापे के रोगों से छुटकारा पाकर मुक्त हो जाता है। जिसने कार्तिक में मालती की माला से भगवान् विष्णु जी की पुजा की हैं।उसके पापो को भगवान धो डालते है। 

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padma purana stories - padma purana online, चन्दन कपूर अरगजा केशर केवड़ा और दीपदान भगवान् केशव को सदा ही प्रिय हैं। 


कमल का पुष्प तुलसीदल मालती अगस्त्य का फूल और दीपदान  ये पाँच वस्तुएँ कार्तिक में भगवान् के लिये परम प्रिय मानी गयी हैं। कार्तिकेय केवड़े के फूलों से भगवान् हृषीकेश का पूजन करके मनुष्य उनके परम पवित्र एवं कल्याणमय धाम को प्राप्त होता है। जो अगस्त्य के फूलों से जनार्दन का पूजन करता है उसके दर्शन से नरक की आग बुझ जाती है। जैसे कौस्तुभमणि और वनमाला से भगवान् को प्रसन्नता होती है। उसी प्रकार कार्तिक में तुलसीदल से वे अधिक सन्तुष्ट होते हैं। 



padma purana stories - padma purana online कार्तिकेय अब कार्तिक में दिये जानेवाले दीपका माहात्म्य सुनो।


मनुष्य के पितर अन्य पितृगणों के साथ सदा इस बात की अभिलाषा करते हैं कि क्या हमारे कुल में भी कोई ऐसा उत्तम पितृ भक्त पुत्र उत्पन्न होगा जो कार्तिक में दीपदान करके श्रीकेशव को सन्तुष्ट कर सके। स्कन्द कार्तिक में घी अथवा तिल के तेल से जिसका दीपक जलता रहता है उसे अश्वमेध यज्ञ से क्या लेना है। जिसने कार्तिकमें भगवान् केशव के समक्ष दीपदान किया है उसने सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया और समस्त तीर्थों में गोता लगा लिया, बेटा विशेषतः कृष्णपक्ष में पाँच दिन बड़े पवित्र हैं। कार्तिक कृष्णा १३ से कार्तिक शुक्ला २ तक उनमें जो कुछ भी दान किया जाता है वह सब अक्षय एवं सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करनेवाला होता है। 




padma purana stories - padma purana online, लीलावती वेश्या दूसरे के रखे हुए दीप को ही जलाकर शुद्ध हो अक्षय स्वर्ग को चली गयी।

इसलिये रात्रि में सूर्यास्त हो जाने पर घर में गोशाला में देववृक्ष के नीचे तथा मन्दिरों में दीपक जलाकर रखना चाहिये। देवताओं के मन्दिरों में श्मशानों में और नदियों के तट पर भी अपने कल्याण के लिये घृत आदि से पाँच दिनों तक दीपक जलाने चाहिये। ऐसा करने से जिनके श्राद्ध और तर्पण नहीं हुए हैं वे पापी पितर भी दीपदान के पुण्य से परम मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं  भामिनि कार्तिक के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को घर से बाहर यमराज के लिये दीप देना चाहिये। इससे दुर्मृत्यु का नाश होता है। दीप देते समय इस प्रकार कहना चाहिये मृत्यु पाशधारी काल और अपनी पत्नी के साथ सूर्यनन्दन यमराज त्रयोदशी को दीप देने से प्रसन्न हों ।



 मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह । त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीयतामिति ॥ १२४ । ५ 


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कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी को चन्द्रोदय के समय नरक से डरने वाले मनुष्यों को अवश्य स्नान करना चाहिये। 


जो चतुर्दशी को प्रातकाल स्नान करता है उसे यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता। अपामार्ग ओंगा या चिचड़ा तुम्बी लौकी प्रपुन्नाट चकवड़ और कटफल कायफल  इनको स्नान के बीच में मस्तक पर घुमाना चाहिये। इससे नरक के भय का नाश होता है। उस समय इस प्रकार प्रार्थना करे  हे अपामार्ग  मैं हराई के ढेले काँटे और पत्तों सहित तुम्हें बारबार मस्तक पर घुमा रहा हूँ। मेरे पाप हर लो।  यों कहकर अपामार्ग और चकवड़ को मस्तक पर घुमाये।

सीतालोष्टसमायुक्तः सकण्टकदलान्वितः । हरपापमपामार्ग भ्राम्यमाणः पुनः पुनः॥ १२४। ११




padma purana stories - padma purana online, तत्पश्चात् यमराज के नामों का उच्चारण करके तर्पण करे। 




वे नाम  मन्त्र इस प्रकार हैं 



1 यमाय नमः



2 धर्मराजाय नमः 



3 मृत्यवे नमः 



4 अन्तकाय नमः



5 वैवस्वताय नमः 



6 कालाय नमः 



7 सर्वभूतक्षयाय नमः 



8 औदुम्बराय नमः 



9 दधाय नम 



10 नीलाय नमः 



11 परमेष्ठिने नमः 



12 वृकोदराय नमः 



13 चित्राय नमः 



14 चित्रगुप्ताय नमः। 



देवताओं का पूजन करके दीपदान करना चाहिये। इसके बाद रात्रि के आरम्भ में भिन्नभिन्न स्थानों पर मनोहर दीप देने चाहिये। ब्रह्मा विष्णु और शिव आदि के मन्दिरों में गुप्त गृहों में देववृक्षों के नीचे सभाभवन में नदियों के किनारे चहारदीवारी पर बगीचे में बावली के तट पर  गली  कूचों में गृहोद्यान में तथा एकान्त अश्वशालाओं एवं गजशालाओं में भी दीप जलाने चाहिये। इस प्रकार रात व्यतीत होने पर अमावास्या को प्रातकाल स्नान करे और भक्तिपूर्वक देवताओं तथा पितरों का पूजन और उन्हें प्रणाम करके पार्वण श्राद्ध करे। फिर दही दूध घी आदि नाना प्रकार के भोज्य पदार्थो द्वारा ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनसे क्षमा प्रार्थना करे। तदनन्तर भगवान् के जागने से पहले स्त्रियों के द्वारा लक्ष्मीजी को जगाये। जो प्रबोधकाल ब्राह्ममहर्त  में लक्ष्मीजी को जगाकर उनका पूजन करता है उसे धनसम्पत्ति की कमी नहीं होती। 



padma purana stories - padma purana online, तत्पश्चात् प्रातकाल कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को गोवर्धन का पूजन करना चाहिये। 

उस समय गौओं तथा बैलों को आभूषणों से सजाना चाहिये। उस दिन उनसे सवारी का काम नहीं लेना चाहिये तथा गायों को दुहना भी नहीं चाहिये। पूजन के पश्चात् गोवर्धन से इस प्रकार प्रार्थना करे 

गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक। विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव। या लक्ष्मीर्लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता॥ घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु। अग्रतः सन्तु मे गावो गावो मे सन्तु पृष्ठतः। गावो मे हृदये सन्तु गवां मध्ये वसाम्यहम्॥ १२४। ३१३३ 



पृथ्वी को धारण करने वाले गोवर्धन  आप गोकुल के रक्षक हैं। भगवान् श्रीकृष्ण ने आपको अपनी भुजाओं पर उठाया था। आप मुझे कोटिकोटि गौएँ प्रदान करें। लोकपालों की जो लक्ष्मी धेनुरूप में स्थित हैं और यज्ञ के लिये घृत प्रदान करती हैं वे मेरे पाप को दूर करें। मेरे आगे गौएँ रहें मेरे पीछे भी गौएँ रहें मेरे हृदय में गौओं का निवास हो तथा मैं भी गौओं के बीच में निवास करूँ। कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को पूर्वाह्न में यम की पूजा करे। यमुना में स्नान करके मनुष्य यमलोक को नहीं देखता। 




padma purana stories - padma purana online, कार्तिक शुक्ला द्वितीया को पूर्वकाल में यमुना ने यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। 

उस दिन नारकी जीवों को यातना से छुटकारा मिला और उन्हें तृप्त किया गया। वे पापमुक्त होकर सब बन्धनों से छुटकारा पा गये और सबकेसब यहाँ अपनी इच्छा के अनुसार संतोषपूर्वक रहे। उन सबने मिलकर एक महान् उत्सव मनाया जो यमलोक के राज्य को सुख पहुँचाने वाला था। इसीलिये यह तिथि तीनों लोकों में यमद्वितीया के नाम से विख्यात हुई। अत विद्वान् पुरुषों को उस दिन अपने घर भोजन नहीं करना चाहिये। वे बहिन के घर जाकर उसी के हाथ से मिले हुए अन्न को जो पुष्टिवर्धक है स्नेहपूर्वक भोजन करें तथा जितनी बहिनें हों उन सबको पूजा और सत्कार के साथ विधिपूर्वक सुवर्ण आभूषण एवं वस्त्र दें। सगी बहिन के हाथ का अन्न भोजन करना उत्तम माना गया है। उसके अभाव में किसी भी बहिन के हाथ का अन्न भोजन करना चाहिये। वह बल को बढ़ाने वाला है। जो लोग उस दिन सुवासिनी बहिनों को वस्त्रदान आदि से सन्तुष्ट करते हैं उन्हें एक साल तक कलह एवं शत्रु के भय का सामना नहीं करना पड़ता। यह प्रसङ्ग धन यश आयु धर्म काम एवं अर्थ की सिद्धि करने वाला है। जय श्री कृष्णा.



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