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Valmiki Ramayan Dvitiy Adhyay Saudas ki Katha Narad Muni Dvra बाल्मीकि रामायण के महात्म्य के द्वितीय अध्याय

Valmiki Ramayan Dvitiy Adhyay Saudas ki Katha Narad Muni Dvra 

बाल्मीकि रामायण के महात्म्य के द्वितीय अध्याय में सौदास की कथा नारद जी के द्वारा कहलवाया गया है ।


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            वे कहते हैं कि सतयुग में एक सोमदत्त नामक ब्राह्मण थे । वे सदा धर्म के पालन में ही तत्पर रहते थे। ब्राह्मण सोमदत्त को सौदास भी कहा जाता था । वे ब्रह्मवादी गौतम मुनि जी से गंगा जी के मनोरम तट पर सम्पूर्ण धर्मो का उपदेश सुने थे। गौतम ने पुराणों एवं शास्त्रों की कथाओं द्वारा उन्हें तत्व का ज्ञान कराया था । 

       एक दिन की बात है सौदास परमेश्वर शिव की आराधना में लगे हुए थे। उसी समय वहां उनके गुरु गौतम जी आ पहुंचे परन्तु सौंदास ने अपने निकट आए हुए गुरु को भी उठकर प्रणाम नहीं किया। परम बुद्धिमान गौतम तेज की निधि थे , वे शिष्य के वार्ताव से रूष्ट न होकर शान्त ही बने रहे । उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि मेरा शिष्य सौदास शास्त्रोक्त कर्मों का अनुष्ठान करता है ।

           किन्तु सौदास ने जिनकी 
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आराधना की थी , वे सम्पूर्ण जगत के गुरु महादेव गुरु की अवहेलना से होने वाले पाप को न सह सके । उन्होंने सौदास को राक्षस की योनि में जाने का शाप दे दिया ।

            तब सौदास ने हाथ जोड़कर गौतम से कहा । सम्पूर्ण धर्मो के ज्ञाता ! सर्वदेशी सुरेश्वर भगवन ! मैं ने जो अपराध किया है , वह सब आप क्षमा कीजिए ।

          

मुनि गौतम जी ने कहा वत्स ! कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में तुम रामायण की अमृत म यि कथा को भक्ति भाव से आदर पूर्वक श्रवण करो । इस कथा को नौ दिनों में सुनना चाहिए । ऐसा करने से यह शाप अधिक दिनों तक नहीं रहेगा। केवल बारह वर्षों तक ही रहेगा ।

            आदरणीय पाठक वृंद ! विचर करिए सौदास क्या गलत किया ? वह ईश्वर महादेव की उपासना कर रहा था जिसे इसी कथा में सबका गुरु कहा गया है । उनके गुरुदेव गौतम जी को समझ थी कि यह कोई अपराध नहीं किया है । परन्तु गुरुओं के गुरु महादेव को ही समझ नहीं रही की यह तो गुरुओं के गुरु की ही उपासना कर रहा था तो यह फिर अपराधी कैसे हुआ ?

           

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 अब जब सौदास अपने गुरु श्री गौतम जी 

से क्षमा करने को कहा तब वे उन्हें राम कथा सुनने कहा और उसके सुनने पर भी बारह वर्षों की सजा फिर भी उसे मिलेगी ही ऐसा बताया । 

          

सबसे मुख्य विचार करने की बातें ये है कि सौदास और गौतम की बात सतयुग में हो रही है जबकि रामायण काल त्रेता युग के अंत में हुआ । मिला जुला कर लेखक बिना विचार किए ही कहीं के बातों को कहीं से जोड़ दिया है । रामायण के महत्ता को बताने के लिए इन्होंने मिथ्या प्रलाप किया है । विद्वज्जन विचार करें और उचित को उचित और अनुचित को अनुचित कहने का साहस करें तभी धर्म की रक्षा होगी ।  बाल्मीकि रामायण महात्म्य के दूसरे अध्याय में सौदास ने जब अपने गुरुजी महर्षि गौतम जी से क्षमा मांगी तो उन्होंने सौदास को रामायण की कथा सुनने को कहा । सौदास के यह पूछने पर कि रामायण की कथा किसने कही है तथा उसमें किसके चरित्र का वर्णन है ? 

          महर्षि गौतम जी ने कहा ब्रह्मन्न ! सुनो । रामायण काव्य का निर्माण बाल्मीकि मुनि ने किया है । जिन भगवान श्री राम ने अवतार ग्रहण करके रावण आदि राक्षसों का संहार किया और देवताओं का कार्य संवारा था , उन्हीं के चरित्र का रामायण काव्य में वर्णन है ।

       आदरणीय विद्वज्जन विचार करें कि मुनि गौतम जी और सुदास यह चर्चा सतयुग में कर रहे हैं । कहना यह चाहिए कि त्रेता युग में बाल्मीकि जी रामायण लिखेंगे जिसमें भगवान विष्णु जी राम के रूप में अवतार ग्रहण कर रावण आदि राक्षसों का संहार करेंगे और देवताओं का कार्य संवारेंगे । परन्तु इसमें गौतम जी भूत काल की बात सौदास जी को बताते हुए प्रतीत हो रहे हैं । श्लोक इस प्रकार है - 

श्री नू रामायण म् विप्र बाल्मीकि मुनिना कृतम् ।
येन रामावता रेन राक्षसा रावनाद य: ।। 
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हतास्तु देव कार्ये ही चरित म् तस्य तत् श्री नू । बाल्मीकि रामायण महात्म्य अध्याय 2 श्लोक 40/एवं 41 का आधा अंश।

        रामायण रचना के संबंध में बाल्मीकि रामायण बालकाण्ड चतुर्थ सर्ग के के प्रथम श्लोक में लिखा है कि 

             जब श्री राम चन्द्र जी बन से लौटकर राज्य का शासन अपने हाथों में ले लिया , उसके बाद भगवान वाल्मीकि मुनि ने उनके सम्पूर्ण चरित्र के आधार पर विचित्र पद और अर्थ से युक्त रामायण काव्य का निर्माण किया । इसमें महर्षि ने चौबीस हजार श्लोक , पांच सौ सर्ग तथा उत्तर सहित सात कांडों का प्रतिपादन किया है ।

        इस प्रमाण से जब सतयुग में रामायण की रचना ही नहीं हुई थी तो महर्षि गौतम जी के द्वारा सौदास को रामायण सुनने और इससे बारह वर्षों में शाप मिटने की कथा मिथ्या प्रतीत होती है ।

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