Ad Code

Ticker

Avidhya Kya Hai? What is the literal meaning of avidya? vidya shabd kee utpatti - आविद्या का अर्थ बता देना भी अभीष्ट है, ऊपर उद्धृत अथर्व मन्त्र में

अविद्या क्या है? Avidhya Kya Hai? What is the literal meaning of avidya?

आविद्या का अर्थ बता देना भी अभीष्ट है, ऊपर उद्धृत अथर्व मन्त्र में अविद्या योग आदि में सम्मत पञ्चपर्वा अविद्या, अथवा आद्य शंकराचार्य की माया अथवा सामान्यतया गृहीत अज्ञान नहीं है। यह अविद्या मृत्यु से तरण कराने वाली यज्ञादि कर्मशक्ति है। वेद का स्पष्ट कथन है,

अविद्यया मृत्युं तीर्वा विद्ययामृतमश्नुते। 

Avidhya-Kya-Hai-What-is-the-literal-meaning-of-avidya-vidya-shabd-kee-utpatti


यह माध्य. तथा काण्व संहिता के चालीसवें अध्याय में पढ़ा गया है तथा ईशोपनिषत् शीर्षक से पृथक् कृत ग्रन्थ में भी है। अर्थ स्पष्ट है, अविद्या साधन से मृत्यु को पारकर विद्या साधन से अमृत को प्राप्त करता है। विद्या प्रतिद्वन्द्वी यदि अविद्या मानी जावे तथा वह शरीर की मूल है तो उसके निवारण का तो कोई उपाय ही नहीं है।  इन्हीं ऋगादि तत्त्वों से सृष्टि तैत्तिरीय ब्रा. के निम्नलिखित मन्त्र से बतायी गयी,

ऋग्भ्यो जातां सर्वशो मूर्तिमाहुः सर्वा गतिर्याजुषी हैव शश्वत्। सर्वं तेजः सामरूप्यं ह शश्वत् सर्वं हेदं ब्रह्मणा हैव सृष्टम्।।३/१२/९/३ 

समस्त मूर्तपिण्ड ऋचाओं से उत्पन्न हुए हैं, सभी गतियाँ सदैव यजुर्मूलक हैं। इसी भाँति यावन्मात्र तेज सामरूप हैं इस भाँति निश्चय ही यह सब कुछ वेद से ही सृष्ट है। महाभारत शान्तिपर्व, Mahabharat Shanti Parv, में भी वेद veda,को सद्भूतोत्पादक स्थान कहा गया है,

सद्भूतोत्पादकं नाम तत्स्थानं वेदसंज्ञितम्। 

विद्यासहायो भगवान् त्रयास्ते हव्यकव्यभुक्।।३४४/१२ 

What knowledge? What is gained by worshiping knowledge?

सद्भूतों का उत्पादक वह स्थान वेद संज्ञा से प्रसिद्ध है। जहाँ भगवान् विद्या सहित विद्यमान रहते हुए हव्य और कव्य के भोक्ता हैं। वेद veda, के तत्त्वरूप के प्रतिपादक ये पर्याप्त निदर्शन हैं। तत्त्वरूप वेद की इयत्ता न होने से उसकी अनन्तता स्वतः सिद्ध है। इसी दृष्टि से वाङ्मय वेद भी तत्त्ववेद का प्रतिपादक होने से अनन्त है। 

वाङ्मय वेद की इस विशाल राशि का संकेत वेदों की चार से अधिक संख्या बताते हुए यत्र-तत्र किया गया है। भगवान् याज्ञवल्क्य कहते हैं : 

ऋग्वेदो वै भर्गः, यजुर्वेदो महः सामवेदो यशः

येऽन्ये वेदास्तत्सर्वम्। शत.ब्रा. १२.३.५.९ 

ved ke bare mein,

सवनों की पूर्णता पर 'मयि भर्गः, मयि महः, मयि यशः, मयि सर्वम्' के जप का विधान किया गया है। शतपथ में इन भर्ग आदि का अर्थ वेदों के सम्बन्ध से बताते हुए कहा गया है कि ऋग्वेद भर्ग है, यजुर्वेद मह है, सामवेद यश है तथा (इनसे भिन्न) अन्य (सब) वेद सर्व हैं। 

तान अथवा तीन से अधिक होने पर संस्कृत में बहवचन का प्रयोग होता है। 'वेदाः' बहुवचन है। अतः न्यूनातिन्यून तीन वेद भी लें, इनमें एक अथर्ववेद को मान लें ता मा ऋग्, यजुः, साम और अथर्व से अतिरिक्त दो वेदों की सत्ता प्रमाणित होती है। निश्चित ही यदि हम बहुवचन को दो के पश्चात् तीसरे से प्रारम्भ कर अनन्तता की ओर ले जाएं तो अर्थ की इस सरणि में क्या बाधा हो सकती है। प्रस्तुत प्रसंग में इस अर्थ को दूसरी संख्या से ही जो वेदक्रम में पाँचवीं है लेना उपयुक्ततर है। 

संघटना स्वरूप से वेद तीन, यज्ञोपयोग की दृष्टि से विभाजित वेद चार हैं । ये चार ही ग्रन्थ रूप में निबद्ध होने से व्यवहार सौकर्य के कारण निर्विवाद रूप से सर्वत्र प्रसिद्ध हैं। अतः अर्थप्राप्त विषय निष्ठता की दृष्टि से प्राप्त प्रथम वेद पञ्चम क्रम पर ही होगा। यही कारण है कि पुराण, नाट्य, आयुर्वेद तथा ज्योतिष आदि सभी पञ्चम वेद कहे जाते हैं 

What is maya? Avidhya Kya Hai? What is the literal meaning of avidya?

पूर्वोद्धृत (५९ क्रमांकीय) छान्दोग्य श्रुति के नारदवचन में पुराण को पञ्चम वेद कहने का यही कारण है। अपने अधीत विषयों में नारद उस ज्ञान को प्राप्त करने का इच्छुक है जिससे इस दृश्य प्राकृतिक प्रपञ्च से परे विद्यमान उस परासत्ता का बोध हो, जिसके पश्चात् कुछ ज्ञातव्य शेष न रहे। इसके लिए सृष्टि की वैज्ञानिक छानबीन आवश्यक है। उसके लिए वेदों को पुराण रूप में देखना आवश्यक है तथा इसमें भी पुनः अनेक वैज्ञानिक विषयों की जानकारी अपेक्षित है। नारद पुराण से आरम्भ कर इन विषयों की गणना करते हैं। साथ ही वे पुराण की प्रथम गणना का औचित्य भी

इतिहासपुराणं पञ्चमं वेदानां वेदम् वाक्य से बता देते हैं। 
What is the literal meaning of avidya?

raja janak ji ke,

इस विषय का प्राथम्य इतिहास पुराण के ग्रन्थों में तथा अन्यत्र भी इसी भाव को लेकर बताया गया है। प्रारम्भ अथर्ववेद में ही मिलता है। पुनः उद्धरण ६९वें पर ध्यान देना होगा वहाँ चार वेदों के मध्य केवल पुराण का नाम ही पढ़ा गया है। पुनः उद्धरण ७२ ख को देखते हैं जहाँ ऋगादि चार वेदों के पश्चात् अव्यवहित रूप में इतिहास, पुराण, गाथा, नाराशंसी नाम पढ़े गये हैं।  पुराणेतिहास का एक नाम 'आख्यान' भी है। वायु पुराण में हिरण्यकशिपु को आख्यान पञ्चमवेद' पढ़ते हुए ही उत्पन्न हुआ बताया गया है,

Post a Comment

0 Comments