वेद ईश्वर रचना है। ऋग्वेद के रचयिता कौन थे
1 Vedo ki Rachna Ishweriy Granth
अग्निर्वायुराविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम्
ये तीन विशुद्ध आत्मा के अन्तःकरण में वेद ज्ञान का प्रकाश हुआ।परन्तु वेदों की सत्ता सिद्ध करने के लिए दो वर्ग बने वेद ईश्वर रचना है। ऋग्वेद के रचयिता कौन थे 1 Vedo ki Rachna Ishweriy Granth
( 1)वेद अपौरुषेय है
(2) वेद पौरूषेय है।
वेद के पौरूषेय पक्षकारों ने वेद में इतिहास खोजना,ऐतिहासिक नाम,पात्र,स्थान,नदी पर्वतके नाम,वेद की परम्परा वादी ऋषि और कार्य परिवार उनके नाम तलाशे जाने लगे।वामदेव,वशिष्ठ,त्रसदस्यु,दाधिक्रा,अनेक देवों कारूप चित्रण हाथ पैर आदि शरीर के अंग,बल,वीर्य का वर्णन किया गया है।ऋग्वेद केदशम मंडल के पुरुष सूक्त में पहुंच कर जिस पुरुष(नारायण/जल मार्गिय)की कल्पना का रूप आश्चर्य चकित करने वाला है।जैसे एक शिर के बदले हजार शिर,दो आंखों के बदले हजारों आंखें,दो पैर के बदले हजारों पैर।एक धड वाला है और दो हाथ की चर्चा करना भूल गए ।अगले मंत्रो में भी चर्चा नही हुई। ऋग्वेद के अंतिम से कुछ सूक्त पहले ही अघमर्षण मंत्रों में पाप मोचन तो नहीं है परन्तु सूर्य,चन्द्र,आकाश,अर्णन,समुद्र आदि की पूर्व सृष्टि की रचना के अनुरूप रचना कर्ता बताया गया है।
वेद अपौरुषेय है की मान्यता में कहा गया है कि पश्य देवस्य काव्यं न ममार न जीर्यते।वेद का ज्ञान ईश्वर ने दिया ।क्यों?मनुष्य को ज्ञानी बनाया,सभी ज्ञान का मूल आधार वेद है।परन्तु देखते हैं कि 80 प्रतिशत मंत्रों में धन याचना है,उसी के लिए प्रार्थना एवम् कर्मकाण्ड है,सभी देवताओं से भी अधिक धन की याचना (धन के अनेक पर्यायवाची शब्द) ही है।मेरा विचार है कि ईश्वर ने वेद के आधार पर अपना साक्ष्य भाव पैदा करने के लिए अपनी ही स्तुति,प्रार्थना,उपासना, करवाई है।क्या ईश्वर स्वामी,मालिक और जीव अल्पज्ञ गुलाम है,वह सदैव ईश्वर की चापलूसी करता रहे, उसके सामने ही हाथ जोड़े रहे। क्या प्रार्थना,स्तुति, कीर्तन जिसे चापलूसी से ज्ञान मिलता है?
हर धर्म में चाहे वे मंत्र,वर्ष, आयत हो सब का लक्ष्य चापलूसी करते हुए पढ़े पाठ करें ,कुछ भी हो सभी चापलूस बने,गुलाम बने,।।को व्यक्ति इसे नहीं मानता है उसे नास्तिक कह कर मारने, बहिष्कार करने का नियम बना लिया गया है।बुरे से बुरे कर्म करने वाले भिविश्वसनिय माना जाता है क्यों कि वह ईश्वर को स्वीकारता है और अच्छे से अच्छे कर्म में लगा इंसान अच्छा एवम् विश्वसनीय नहीं माना जाता है क्यों कि वह ईश्वर में विश्वास नहीं करता है ईश्वर के आस्तित्व को नहीं स्वीकारता है।तात्पर्य है कि सभी धर्म ग्रंथ का एक मात्र उद्देश्य ईश्वर को स्थापित करना ही है।
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