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Saudas Katha Narad ji Dvra bhaag 2 वाल्मिकी रामायण महात्म्य

 वाल्मिकी रामायण महात्म्य दूसरे अध्याय में ब्राह्मण सौदास के बारे में लिखा है,
Saudas Katha Narad ji Dvra bhaag 2

 कि राक्षस शरीर का आश्रय लेकर दुखमग्न होकर भूख प्यास से पीड़ित तथा क्रोध के वशीभूत हो गया । शरीर का रंग कृष्ण पक्ष की रात के समान काला था । वे भयानक बन में रहकर नाना प्रकार के पशुओं , मनुष्यों , सांप बिच्छू आदि जंतुओं  पक्षियों और वानरों को बलपूर्वक पकड़ कर खा जाते थे । 

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उस राक्षस के द्वारा यह पृथिवी बहुत सी हड्डियों तथा लाल पीले शरीर वाले रक्त पा यी प्रेतों से परिपूर्ण हो अत्यंत भयंकर दिखाई देने लगी । छ: महीने में ही सौ योजन विस्तृत भू भाग को अत्यंत दुखित करके वह राक्षस पुन: दूसरे किसी बन में चला गया । वहां भी प्रति दिन नर मांस का भोजन करता रहा । एक दिन नर्मदा जी के तट पर गया । एक अत्यंत धर्मात्मा कलिंग देश का  ब्राह्मण भी वहां आया जिनका नाम गर्ग था । कंधे पर गंगाजल लिए भगवान विश्वनाथ की स्तुति तथा श्री राम के नामों का गान करता हुआ उस पुण्य प्रदेश में आया था । गर्ग मुनि को आते देख राक्षस बोल उठा कि मुझे भोजन प्राप्त हो गया   परन्तु भगवन्नाम उच्चारण के कारण ब्रह्मर्षि को मारने में असमर्थ होकर बोला  महात्मन् आपको नमस्कार । मैंने पहले कोटि सहस्त्र ब्राह्मणों का भक्षण किया है । 


Saudas Katha Narad ji Dvra bhaag 2 आपके पास जो नाम रूपी कवच है, 

वही राक्षसों के महान भय से आपकी रक्षा करता है । आपके नाम स्मरण से हम राक्षसों को भी परम शांति प्राप्त हो गई । अतः सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्व  को जानने वाले महाभाग ब्राह्मण ! आप मुझे रामायण कथा सुनाकर इस पाप कर्म से मेरी रक्षा कीजिए । ब्राह्मण ने कहा महाभाग राक्षस राज ! तुम्हारी बुद्धि निर्मल हो गई है । इस समय कार्तिक मास का शुक्ल पक्ष चल रहा है । इसमें रामायण की कथा सुनो । राम भक्ति परायण राक्षस ! तुम रामचन्द्र जी के महात्म्य को श्रवण करो । श्री राम चन्द्र जी के ध्यान में तत्पर रहने वाले मनुष्यों को बाधा पहुंचाने में कौन समर्थ हो सकता । जहां राम का भक्त है , वहां ब्रह्मा , विष्णु और शिव विराजमान है । ऐसा कहकर गर्ग मुनि ने उसे कथा सुनाई । कथा सुनते ही उसका राक्षसत्व दूर हो गया । राक्षस भाव का त्याग कर के वह देवताओं के समान सुन्दर करोड़ों सुर्यों के समान तेजस्वी और भगवान नारायण के समान कांति मान हो गया । अपनी चार भुजाओं में शंख , चक्र , गदा और पद्म लिए वह श्री हरि के वैकुंठ धाम में चला गया । नारद जी कहते हैं कि रामायण के स्मरण  करने से ही मनुष्य करोड़ों महापातकों तथा समस्त पापों से मुक्त हो परम गति को प्राप्त होता है । मनुष्य रामायण इस नाम का जब एकबार भी उच्चारण करता है , तभी वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और अन्त में भगवान विष्णु के लोक में चला जाता है । जो मनुष्य भक्ति भाव से रामायण कथा को पढ़ते और सुनते हैं उन्हें , उन्हें गंगा स्नान की अपेक्षा सौ गुना पुण्य फल प्राप्त होता है।

             इस प्रकार वाल्मीकि रामायण के महात्म्य का दूसरा अध्याय पूरा हुआ । पाठक विचार करें कि वैकुंठ को प्राप्त करना कितना सहज है । इसके अनुसार खूब पाप करिए केवल रामायण का स्मरण कर लीजिए सब माफ हो जाएगा और वैकुंठ भी मिल जाएगा ।

        Saudas Katha Narad ji Dvra bhaag 2 साधारण बात के लिए शिव जी 

सौदास को राक्षस बनाकर करोड़ों ब्राह्मणों व अन्य जीवजंतु को मरवाया । उन्हें भी पाप लगा होगा क्योंकि पाप करनेवालों के साथ कराने वाला भी पापी ही कहाता है । परन्तु हमारे शिव जी भी रामायण का स्मरण करके पाप नष्ट कर लिए होंगे ।

          लोग कैसे इस बात को समझेंगे कि ऐसे कथाओं के कारण ही पाप बढ़ रहा है ।  राम कथा त्रेता के अंत में हुआ और सतयुग में राम कथा सुनना सुनाना अतिशयोक्ति है । आशा है आप सब समझदारी से विचार करेंगे । लकीर के फकीर नहीं रहेंगे ।

               


बाल्मीकि रामायण महात्म्य,

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