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महाभारत परिचयात्मक विवरण Parichay Vivran rachanakaal aur Rachanakaar Aarshkavya - महाभारत आर्य सनातन धर्म का एक महान् ग्रन्थ


महाभारत - परिचयात्मक विवरण
mahabharat Parichay Vivran Aarshkavya




महाभारत आर्य सनातन धर्म का एक महान् ग्रन्थ और श्रेष्ठ ज्ञान का संग्रह है। रामायण और महाभारत बहुत बृहद और दुनिया मै सबसे बड़ा आर्षकाव्य है, इसमें प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। महाभारत इसी महत्व के कारण महर्षि व्यास ने इसे महाभारत नाम दिया, पूर्व मै यह जय सहिंता नाम से जाना जाता रहा था, और कहा की वेदों उपनिषद को जानने वाला यदि महाभारत को ना जानें वो महा मूर्ख है। उसको विद्द्वान नहीं कहना चाहिए,  महाभारत इतना बड़ा ग्रंथ है की इसमें अर्थ शास्त्र, काम शास्त्र, भौतिकी शास्त्र , रसायन शास्त्र, जीव और जगत का सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान एवं मानव ज्ञान  का वर्णन मिलता है, 

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महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना तीन वर्षों में की थी। उन्होंने सर्वप्रथम इसकी रचना अपने मानस में की थी। तत्पश्चात् उसे लिपिबद्ध करने की इच्छा से ब्रह्मदेव से निवेदन किया – भगवन् मैंने विविध ज्ञानों के कोष “महाभारत" की रचना की है। इसे लिपिबद्ध करने के लिए मुझे उपयुक्त लेखक की आवश्यकता है, तब ब्रह्मा ने महर्षि से कहा – 'इस कार्य के लिए गणेश सर्वथा उपयुक्त होंगे। तत्पश्चात् महर्षि व्यास ने भगवान गणेश का ध्यान किया और गणेश उनके समक्ष उपस्थित हो गए। महर्षि व्यास ने भगवान् श्रीगणेश से लेखन कार्य सम्पन्न करने की अभ्यर्थना की। 

भगवान् गणेश ने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकृति दे दी किन्तु एक शर्त यह रखी कि मेरी लेखनी रुकनी नहीं चाहिए। इस पर महर्षि व्यास ने भी गणेश से निवेदन किया कि आप प्रत्येक श्लोक का अर्थ समझकर ही लिखिएगा।फलतः लेखन कार्य प्रारम्भ होने पर व्यास ऋषि बोलते जाते और गणेश समझकर ही लिखते जाते थे। अतः जब महर्षि व्यास को श्लोक बोलने में कुछ समय सोचने की अपेक्षा होती थी। तब इसके लिए कुछ समय निकालने के लिए वे रहस्यात्मक अर्थ वाले कूट (गूढार्थ) श्लोक बोलते थे जिन्हें लिखने से पूर्व गणेश थोड़ी देर समझने में लगाते थे जिससे महर्षि व्यास अगला श्लोक निर्माण कर लेते थे। ऐसे कूट श्लोकों की संख्या आठ हजार आठ सौ है। इन श्लोकों का अर्थ गणेश, व्यास ऋषि, शुकदेव भली-भाँति जानते थे, सञ्जय इसका अर्थ जानते थे या नहीं इसमें सन्देह है, ऐसा वर्णन महर्षि व्यास द्वारा स्वयं किया गया है, यथा -


अष्टौ श्लोकसहस्राणि अष्टौ श्लोक शतानि च। अहं वेदिम् शुको वेत्ति संजयो वेत्ति वानवा।।

महाभारत-रचनाकार महाभारत के रचयिता 'महर्षि वेदव्यास' का सम्बन्ध महाभारत के पात्रों के साथ अत्यन्त घनिष्ठ है। उनकी माता का नाम 'सत्यवती' था, जो चेदिराज वसु उपरिचर के वीर्य से यमुना के किसी द्वीप में उत्पन्न हुई थी। मल्लाहों के राजा महा. भा. आदि. पर्व 1.81 दासराज के द्वारा जन्मकाल से ही उनकी रक्षा तथा पोषण हुआ था। यमुना के किसी द्वीप में जन्म के कारण व्यास "द्वैपायन" कहलाते थे, शरीर के रङ्ग के कारण 'कृष्णमुनि' तथा यज्ञीय उपयोग के लिए एक वेद को चार संहिताओं में विभाग करने के कारण 'वेद व्यास' के नाम से विख्यात थे। महर्षि व्यास, ऋषि पराशर के पुत्र थे। इस सन्दर्भ में महाभारत के आदि पर्व में निम्नलिखित श्लोक मिलता है - 


महाभारत - रचनाकाल महाभारत की घटना भारतीय इतिहास की एक अद्भुत तथा अद्वितीय घटना है। महाभारत का रचनाकाल निर्धारित करना असम्भव तो नहीं, किन्तु दुष्कर अवश्य है। प्राचीन वैदिक ग्रन्थों में जय, भारत अथवा महाभारत का किसी भी रूप में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है - न तो कथा का और न ही किसी पात्र का। इस महाकाव्य का रचनाकाल निर्धारित करने में सर्वाधिक कठिनाई पाश्चात्य विद्वानों के नकारात्मक दृष्टिकोण से उत्पन्न होती है, क्योंकि वे महाभारत युद्ध को ऐतिहासिक घटना नहीं मानते और न ही महाभारत के पात्रों को भी ऐतिहासिक व्यक्ति मानते हैं।


वे महाभारत युद्ध, महाभारत ग्रन्थ और महाभारत के पात्रों को असङ्ग रूप से एक दूसरे से जोड़ते हैं। जबकि महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास का स्वयं का व्यक्तित्व लोकातिशायी और पौराणिक है। उन्होंने महाभारत में कहीं भी स्पष्ट रूप से महाभारत के रचनाकाल का सङ्केत नहीं किया है। उन्होंने तीन वर्षों में महाभारत की रचना करने की बात कही है किन्तु वे तीन वर्ष कब के हैं, यह बताना असम्भव ही है। वस्तुतः अब तक महाभारत के रचनाकाल के विषय में जो मन्तव्य प्रकट किए गए हैं, वे प्रमाणों पर कम, गतानुगतिकता पर अधिक हैं। 

अतः इतना तो सुनिश्चित महा. भा. आदि. पर्व. 1.54-55 है कि महाभारत ग्रन्थ की रचना महाभारत युद्ध के बाद ही हुई। जैसे – रामायण के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि राम के समकालिक थे, वैसे ही महर्षि व्यास भी पाण्डव-कौरव, श्रीकृष्ण तथा महाभारत युद्ध के समकालिक थे।  

 महर्षि व्यास तो भरत से ही संबंधित थे और महाभारत युद्ध एक प्रकार से उनके परिवार के ही दो पक्षों के मध्य का ही युद्ध था। वे पाण्डवों के पक्षधर तथा महाभारत युद्ध के साक्षी भी थे। अतः ऐसे प्रतिभाशाली महर्षि द्वारा महाभारत ग्रन्थ की रचना एक सत्य वृत्तान्त ही प्रतीत होती है। निश्चय ही उन्होंने इस सत्य वृतान्त को लोकप्रिय तथा शाश्वत बनाने के लिए इसे काव्यमयता और वेदमयता प्रदान की जिससे लोक उससे शिक्षा ग्रहण कर सके। महर्षि व्यास ने अपने जीवन के किस काल में महाभारत की रचना की इसका निर्धारण भी असम्भव है। इस प्रकार महाभारत का रचनाकाल निर्धारित करना अत्यन्त दुष्कर कार्य है। अतः इस सन्दर्भ में इसके पूर्व तथा अपर काल सीमा का अनुमान आङ्कलित करते हुए निम्नलिखित सामग्री उपलब्ध होती है , संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध नाटककार महाकवि भास के छ: नाटक दूतकाव्य, उरूभङ्ग, कर्णभार, पञ्चरात्र, दूतघटोत्कट और मध्यमव्यायोग - महाभारत की विभिन्न कथाओं पर आधारित हैं।


महाकवि भास का स्थिति काल प्रायः 450 ई.पू. माना जाता है। अतः महाभारत पाञ्चवीं शताब्दी ई. पू. तक अपने वर्तमान रूप में प्रसिद्ध हो चुका था। महर्षि पाणिनि ने व्याकरण सूत्रग्रन्थ 'अष्टाध्यायी' में महाभारत और महाभारत के कतिपय पात्रों का उल्लेख किया है। अष्टाध्यायी अथ च महर्षि पाणिनि का काल ईसा पूर्व पाञ्चवीं शताब्दी माना जाता है। अतः महाभारत की रचना निश्चित रूप से ईसा पूर्व पाञ्चवीं शताब्दी से पहले हो चुकी थी। सं. वाङ् वृ. इति, पृ. 442 2, पृ. 442 महाभारत के शान्ति पर्व में जहाँ विष्णु के अवतारों का उल्लेख किया गया है।


वहाँ दशावतारों में बुद्ध की गणना नहीं की गई है।' इससे प्रतीत होता है कि महाभारत की रचना बुद्ध काल के पूर्व ही हो चुकी थी अन्यथा परवर्ती काल में महाभारत के रचनाकार दशावतारों में बुद्धावतार का उल्लेख अवश्य करते। ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर महात्मा बुद्ध का महापरिनिर्वाण 543 ई. पू. में हुआ था। अतः असन्दिग्ध रूप से महाभारत ईसा पूर्व छठी शताब्दी से पूर्व ही निर्मित हो चुका था। प्रो. हापकिंस और प्रो. सिल्वालेबी ने महाभारत का रचनाकाल निर्धारित करने का प्रयत्न करते हुए निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किए हैं - महाभारत परिचयात्मक विवरण क. प्रसिद्ध मीमांसक (सातवीं ई. के अन्त और आठवीं ई. के प्रारम्भ में)
कुमारिल भट्ट ने महाभारत को महर्षि व्यास विरचित महान् स्मृतिग्रन्थ कहा है। उन्होंने महाभारत के प्रायः सभी पर्यों से महत्वपूर्ण उद्धरण प्रस्तुत किये हैं। ख. सातवीं शताब्दी के महान गद्य–कवि बाणभट्ट और सुबन्धु ने अपनी
साहित्यिक कृतियों में महाभारत तथा महर्षि व्यास का सादर उल्लेख किया है। ग. 442 ई. के एक गुप्त शिलालेख में महाभारत को ‘शत साहस्री संहिता कहा गया है। घ. 450 ई. से 500 ई. के मध्य लिखे हुए उपलब्ध दान पात्रों
"शतसाहस्रीसंहितायां वेदव्यासेनोक्तम्" लिखकर महाभारत तथा वेद व्यास दोनों का उल्लेख किया है। 

मत्स्यः कूर्मो वराहश्च नरसिंहश्च वामनः । रामो रामश्च कृष्ण: कल्की च ते दश।। – महा. भा. शान्ति. पर्व 339, पृ 5390 - सं. हि. को. पृ. 718, 3 सं. वाङ् वृ. इति. पृ. 443 ङ. दक्षिण-पूर्व एशिया के कम्बोडिया नामक देश में प्राप्त हुए 600 ई. के एक शिलालेख से यह प्रमाणित होता है कि छठी शताब्दी ई. में महाभारत का प्रचार-प्रसार भारतवर्ष के बाहर भी सुदूर पूर्व के देशों में हो चुका था और उस समय उसका ग्रन्थात्मक रूप भी स्थित हो चुका था। आद्य शङ्कराचार्य ने महर्षि 

बादरायण कृत 'ब्रह्मसूत्र पर अपने भाष्य में लिखा है
कि कृष्णद्वैपायन कलि और द्वापर युग के सन्धिकरण में हुए थे – 

ब्रह्मविदामपि केषांचिदितिहासपुराणयोदेहान्तरोत्पत्तिदर्शनात्। तथाहि अपान्तरतमा नाम वेदाचार्यः पुराणर्षिर्विष्णुनियोगात्कलिद्वापरयोः सन्धौ कृष्णद्वैपायनः सम्बूभवेति स्मरन्ति। 

इस प्रकार महाभारत के रचनाकाल के विषय में कुछ भी सुनिर्णीत रूप से "इदमित्थं" नहीं कहा जा सकता। परन्तु उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ कम से कम 500 ई. पू. सम्पूर्णता को प्राप्त हो चुका था। महाभारत - स्वरूप
आधुनिक समय में महाभारत में एक लाख श्लोक मिलते हैं। इसलिए इसे 'शतसाहस्र संहिता' कहते हैं। इसका यह स्वरूप कम से कम डेढ़ हजार वर्ष से भी पुराना अवश्य है, क्योंकि गुप्तकालीन शिलालेख में यह शतसाहस्री संहिता उल्लिखित हुआ है।

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