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बाल्मीकि रामायण महात्म्य के पंचम अध्याय में सनत् कुमार Valmiki Ramayan Katha Pancham Adhyay Sanat Kumar Katha Bhaag 1

 Valmiki Ramayan Katha Pancham Adhyay Sanat Kumar Katha Bhaag 1
बाल्मीकि रामायण महात्म्य के पंचम अध्याय में सनत् कुमार

 जी ने महर्षि नारद जी से रामायण कथा की विधि बताने का निवेदन किया । मुनि नारद जी ने बताया कि रामायण कथा का अनुष्ठान करने वाले वक्ता एवं श्रोता को भक्ति भाव से भावित होकर उस विधान का पालन करना चाहिए । चैत्र , माघ , तथा कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को कथा आरम्भ करनी चाहिए । चतुर्थ अध्याय के श्लोक संख्या 44 में नारद जी ने कहा था कि रामायण सभी ऋतुओं में हिताकारक है ।


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       आगे कहा है कि पहले स्वस्ति वाचन करके फिर यह संकल्प करे कि हम नौ दिनों तक रामायण की अमृतमयी कथा सनेंगे । फिर भगवान से प्रार्थना करे - श्री राम ! आजसे प्रति दिन मैं आपकी अमृतमयी कथा सुनुंगा । नित्य प्रति अपामार्ग की शाखा से दंत शुद्धि स्नान करके श्वेत वस्त्र धारण करके अपने इन्द्रियों को संयम में रख कर भाई बन्धुओं के साथ अंदर बाहर से शुद्ध होकर मौन भाव से आचमन करके भगवान नारायण को स्मरण करे । देवपूजन आदि करके हवन करे । 

          नारद जी श्लोक 15 में कहते हैं कि जो इस प्रकार मन और इन्द्रिय को संयम में रख कर रामायण की विधि का अनुष्ठान करता है , वह भगवान विष्णु के धाम में जाता है । 

 Valmiki Ramayan Katha Pancham Adhyay Sanat Kumar Katha Bhaag 1
बाल्मीकि रामायण महात्म्य के पंचम अध्याय में सनत् कुमार

           आगे कहा है कि रामायण व्रत को धारण करने वाला धर्मात्मा पुरुष चांडाल तथा पतित मनुष्य का सत्कार न करे । नास्तिक , धर्म मर्यादा को तोड़ने वाले, पर निंदक और चुगलखोर का वाणी मात्र से भी सम्मान न करे । जो पति के जीवित रहते ही पर पुरुष के समागम से संतान उत्पन्न करनेवाली है उस महिला व उस संतान का , गीत गा कर जो अपनी जीविका चलावे, देवता पर चढ़ी हुई वस्तु का उपभोग करने वाले मनुष्य का एवं उसके अन्न को खाने वालों का लोगों की मिथ्या प्रशंसा में कविता लिखने वालों का देवताओं तथा सच्चे ब्राह्मणों का विरोध करने वालों का , पराए अन्न का लोभियों का और पर स्त्री व पुरुष में आशक्त रहने वाले मनुष्यों का रामायण कथा व्रती वाणी मात्र से भी आदर न करे । इस प्रकार दोषों से दूर एवं शुद्ध होकर जितेंद्रिय एवं सबके हित में तत्पर रहते हुए जो रामायण का आश्रय लेता है , वह परम सिद्धि को प्राप्त होता है ।

 Valmiki Ramayan Katha 

       आगे कहा है कि रामायण व्रत को धारण करने वाला धर्मात्मा

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