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Valmiki Ramayan Sarg 1 Shlok 8 Narad Katha in Hindi बाल्मीकि रामायण बालकाण्ड प्रथम सर्ग श्लोक 8

 Valmiki Ramayan Sarg 1 Shlok 8 Narad Katha in Hindi बाल्मीकि रामायण बालकाण्ड प्रथम सर्ग के श्लोक संख्या 8 से नारद जी बाल्मीकि जी को बताना प्रारम्भ करते हैं । 


बताते हैं कि इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न एक ऐसे पुरुष हैं , जो लोगों में राम नाम से विख्यात हैं , वे ही मन को वश में रखने वाले , महाबलवान , कांति मान , धैर्यवान और जितेंद्रिय हैं ।

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 वे बुद्धिमान , नितिज्ञ , वक्ता , शोभायमान तथा शत्रु शंहारक हैं । उनके कंधे मोटे और भुजाएं बड़ी बड़ी हैं । ग्रीवा शंख के समान और ठोढ़ी मांसल है । भगवान श्री राम की छाती चौड़ी है और धनुष बड़ा है , गर्दन के नीचे की हड्डी मांस से छिपी है । वे शत्रुओं के नाश करने वाले हैं । भुजाएं घुटने तक लंबी है , मस्तक सुंदर है , ललाट भव्य और चाल मनोहर है । उनका शरीर मध्यम और सुडौल है , देह का रंग चिकना है । वे बड़े प्रतापी हैं । उनका वक्ष: स्थल भरा हुआ है , आंखें बड़ी बड़ी हैं वे शोभायमान और शुभ लक्षणों से संपन्न हैं ।

         वे  धर्म के ज्ञाता , सत्य प्रतिज्ञ तथा प्रजा के हित साधन में लगे रहने वाले हैं । वे यशस्वी , ज्ञानी , पवित्र । जितेंद्रिय और मन को एकाग्र रखने वाले हैं । वे प्रजापति के समान पालक , श्रीसंपन्न , वैरिविध्वंसक और जीवों तथा धर्म के रक्षक हैं । वे स्वधर्म और स्वजनों के पालक , वेद वेदांगो के तत्ववेत्ता तथा धनुर्वेद में प्रवीण हैं । वे अखिल शास्त्रों के तत्वज्ञ , स्मरण शक्ति से युक्त  और प्रतिभा सम्पन्न हैं । अच्छे विचार और उदार हृदय वाले वे श्री 

राम चन्द्र जी बातचीत करने में चतुर तथा समस्त लोकों के प्रिय हैं । Valmiki Ramayan Sarg 1 Shlok 8 Narad Katha in Hindi

          जैसे नदियां समुद्र में मिलती हैं , उसी प्रकार सदा राम से साधु पुरुष मिलते रहते हैं । वे आर्य एवं सबमें समान भाव रखने वाले हैं , उनका दर्शन सदा ही प्रिय मालूम होता है । 16

          संपूर्ण गुणों से युक्त वे श्री राम चन्द्र जी अपनी माता कौशल्या के आनन्द बढ़ाने वाले हैं  , गंभीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालय के समान हैं ।

            वे विष्णु भगवान के समान बलवान हैं । उनका दर्शन चंद्रमा के समान मनोहर प्रतीत होता है । वे क्रोध में कालाग्नी के समान ओर क्षमा में पृथिवी के समान हैं , त्याग में कुबेर देव और सत्य में धर्मराज के समान  हैं । 

     इस प्रकार उत्तम गुणों से युक्त और सत्य पराक्रम वाले सद्गुण शाली अपने प्रियतम ज्येष्ठ पुत्र को , जो प्रजा के हित में संलग्न रहने वाले थे , प्रजावर्ग का हित करने की इच्छा से राजा दशरथ ने प्रेमवश युवराज पद पर अभिशिक्त करना चाहा । श्लोक 20- 21 बालकाण्ड प्रथम सर्ग ।

          पाठक गण ! महर्षि बाल्मीकि जी ने नारद जी से पूछा था कि -  Valmiki Ramayan Sarg 1 Shlok 8 Narad Katha in Hindi

को न्वस्मिं संप्रत म् लोके  ।

बालकाण्ड , सर्ग 1/2

अर्थात् इस समय उपरोक्त गुण वाला पुरुष कौन हैं ? इसी प्रश्न का उत्तर देते हुए उपरोक्त सभी गुणों को नारद जी राजा दसरथ के पुत्र श्री राम चन्द्र जी में बताते हैं । उनके अनेक गुणों को बताते हुए श्लोक संख्या 12 में नारद जी बताते हैं कि - 

धर्माज्ञ: सत्य संधश्च प्रजानाम् च हितेरत: । 

      अर्थात् धर्म के ज्ञाता , सत्य प्रतिज्ञ तथा प्रजा के हित साधन में लगे रहने वाले हैं ।

         इस वाक्य से यह सावित होता है कि जिस समय भगवान राम राजा है और प्रजा पालन में लगे हुए थे उस समय ही मुनि बाल्मीकि जी और मुनि नारद जी में प्रश्नोत्तर हो रहा है । Valmiki Ramayan Sarg 1 Shlok 8 Narad Katha in Hindi

          इससे यह भी ज्ञात होता है कि मुनि बाल्मीकि जी को उस समय तक भगवान रामचन्द्र जी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था । परन्तु भगवान राम जी तो बन जाते समय भी लक्ष्मण और सीता सहित बाल्मीकि जी के आश्रम में रुके थे । राजा बनने के कुछ दिन बाद ही सीता जी उन्हीं के आश्रम में जाकर रुकी थी और लव कुश के जन्म से लेकर बड़े होने तक वहीं रही थीं तो क्या उन्हें उनके चरित्र के संबंध में कुछ भी पता नहीं चला था जबकि उन्हें भी अवतार ही कहा जाता है ? विद्वज्जन विचार करें ।

valmiki ramayana Pancham 

Naradji ne Kaha in hindi 

भगवान नारद जी ने उन्हें विधि बताते हुए कहा

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