Gyaan Gyaata Aatma gyan in hindi, ज्ञान, ज्ञाता, ज्ञात और ज्ञेय इन ४ विषयों को आज हम समझेंगे। इस पर गहराई से चर्चा करेंगे।
ज्ञात होनेकी अवस्था और ज्ञात होनेकी शक्ति, इन दोनों अर्थो में ज्ञान शब्दका व्यवहार होता है । जैसे, मैं जानता हूँ कि मैं चिन्तित हूँ, इस जगह इस जाननेकी अवस्थाको ज्ञान कहा जाता है, और जिस शक्तिके द्वारा हम वह जानते हैं वह शक्ति भी ज्ञान कही जाती है। ज्ञान शब्दके ये दोनों अर्थ जुदे होने पर भी परस्पर सम्बन्ध रखते हैं। हमारी जाननेकी अवस्था हमारी जाननेकी शक्तिकी क्रियाका फल मात्र है। जाननेकी शक्तिको बुद्धि भी कहते हैं।
ज्ञान क्या है, Gyaan Gyaata Aatma gyaan in hindi.
यह बतलानेमें ज्ञाता और ज्ञेय इन दोनोंका प्रसंग आता है। कारण, इन दोनोंका मिलन ही ज्ञान इस बातका और ज्ञानसे संबंध रखनेवाली और और अनेक बातोंका प्रमाण केवल अन्तर्दृष्टिके द्वारा और अन्तरात्मासे जिज्ञासाके द्वारा पाया जाता है। हम अन्तर्दृष्टिके द्वारा जानते हैं कि हमारे कानोंके छेदमें एक शब्द ध्वनित हो रहा है । इस ज्ञानका ज्ञाता मैं हूँ, ज्ञेय वही कर्ण-कुहरमें ध्वनित होनेवाला शब्द है, और मैं और उस ध्वनित शब्दका मिलन ही उस शब्दका ज्ञान है। और में अगर संपूर्ण रूपसे अन्यमनस्क रहूँ, अर्थात् मुझसे उस शब्दका मिलन न हो, तो मुझे उस शब्दका ज्ञान नहीं होता। हम जहाँ तक जान सके हैं वहाँ तक यही जाना गया है कि सब ज्ञानोंका
ज्ञाता चेतन जीव है । हम यह ठीक तौरसे नहीं जानते कि अचेतनको ज्ञान हो सकता है या नहीं । लेकिन वैज्ञानिक पण्डित श्रीयुत डाक्टर जगदीशचंद्र बसु महाशयने अपनी 'चेतन और अचेतनका उत्तर' ( Response in the Living and Non-Living ) नामकी पुस्तकमें जिन अद्भुत और आश्चर्यमय तत्त्वोंकी बात लिखी है, उनके द्वारा यह अनुमान होता है कि हम जिन्हें अचेतन कहते हैं वे एकदम अचेतन नहीं हैं। ज्ञेय जो है वह ज्ञाताके अन्तर्जगत् या बहिर्जगत्का विषय है। इस लिए और यकी आलोचनाके बाद ही अन्तर्जगत् और बहिर्जगत्के सम्ब-न्धमें कुछ कहना आवश्यक है। उसके बाद उस अन्तर्जगत् और बहिर्जगत्का विपय किस उपायसे कहाँ तक जाना जा सकता है और उसके जाननेसे फल क्या है, अर्थात् ज्ञानकी सीमा कितनी दूर तक है, ज्ञान लाभका उपाय क्या है, और ज्ञान लाभका उद्देश्य क्या है, इन सब बातोंकी भी कुछ कुछ आलो-चना इस ग्रंथके प्रथम भागमें होना अप्रासंगिक या असंगत नहीं होगा।
ज्ञाता। Gyaan Gyaata Aatma gyaan in hindi.
जो जानता है अर्थात् जिसे ज्ञान होता है वही ज्ञाता है। साक्षात्-सम्बन्ध में अपनेको ही ज्ञाता जानता हूँ, और परोक्षमें अपनी तरह अन्य जीवको भी अनुमानके द्वारा ज्ञाता जानता हूँ। मैं यह अन्तर्दृष्टिके द्वारा देखता हूँ कि मैं अपने ज्ञानका ज्ञाता हूँ। और जब देखता हूँ कि बहिर्जगत्का कोई विपय देख कर मैं जैसा काम करता हूं ठीक वैसा ही काम मेरे ऐसे और जीव भी करते हैं, अर्थात् मैं जैसे किसी भयानक वस्तुको देखता हूँ तो उसे त्याग करता हूँ, चा किसी प्रीतिदायक वस्तुको देखता हूँ तो उसकी ओर आकृष्ट होता हूं, वैसे ही मेरे ऐसे अन्य जीव भी उन उन वस्तुओंको देख कर उसी तरहका आचरण करते हैं, तब संगतरूपसे में अनुमान कर सकता हूँ कि उन उन वस्तुओंको देख कर मुझमें जैसा ज्ञान उत्पन्न होता है, वैसा ही ज्ञान मेरे तुल्य अन्य जीवों में भी उत्पन्न होता है । और में जैसे अपने ज्ञानका ज्ञाता हूँ वैसे ही वे भी अपने ज्ञानके ज्ञाता हैं।
अब दो प्रश्न उठते हैं। मैं कौन हूँ, मेरा स्वरूप क्या है ? Mai Koun Hu mera Saurup Kya hai
और मेरी तरहके अन्यान्य जीव भी कौन हैं और उनका स्वरूप क्या है ? इन दोनों प्रश्नोंका उत्तर पहले प्रश्नके ऊपर ही निर्भर है। क्योंकि में जैसा हूँ, अन्य सब ज्ञाता भी संभवतः वैसे ही हैं। इसलिए इसीका अनुसंधान करना यथेष्ट होगा कि प्रथम प्रश्नका उत्तर क्या है।
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