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हे प्रभु जी! मुझे असत्य से सत्य की तरफ, अज्ञान रूपी अंधकार से प्रकाश रूपी ज्ञान की तरफ ले जाने की कृपा करें।

 ओम om 
असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मा अमृतम गमय बृहदारण्यक उपनिषद , हे प्रभु जी! मुझे असत्य से सत्य की तरफ, अज्ञान रूपी अंधकार से प्रकाश रूपी ज्ञान  की तरफ ले जाने की कृपा करें।


हे+प्रभु+जी!


mantra asatoma sadgamaya, mantra om asatoma sadgamaya, जिसका अर्थ है,
  हे प्रभु जी! मुझे असत्य से सत्य की तरफ, अज्ञान रूपी अंधकार से प्रकाश रूपी ज्ञान  की तरफ और मृत्यु रूपी जीवन से मोक्ष के जीवन तरफ ले जाने की कृपा करें।


          उपनिषद् के ऋषि ने क्या कमाल के वचन कहे हैं‌। वास्तव में ऐसी प्रार्थनाएं हमें अपने जीवन के उत्थान की तरफ बढ़ने का ध्यान दिलाती हैं। खाली मंत्रों और श्लोकों को बोल देने से जीवन में कोई भी बदलाव नहीं आएगा। बदलाव तभी आयेगा जब हम प्रार्थना में दिये गये शब्दों को कार्यरूप में, मूर्त रूप में बदल देवें।

       इस वचन में ईश्वर से जो प्रार्थना की गई है उसके कर्तव्य पथ पर हमें चलना ही होगा। मन वचन और कर्म से सत्य को अपने जीवन में धारण करना ही होगा। अज्ञान रूपी अंधकार से बचने के लिए ज्ञान रूपी ग्रंथों को पढ़ना ही होगा अथवा आप्त पुरुषों अर्थात निष्काम, वेद ज्ञानी पुरुषों, गुरुओं  के समीप समय-समय पर जाना ही होगा।

          आजकल तो बहुत सा सत्य उपदेश मोबाइल पर भी उपलब्ध हो जाता है वह देखना होगा।

          तो इस प्रकार कर्तव्य प्रयत्नों पर जब हम चल पड़ेंगे तब परमात्मा हमें उपर्युक्त वचनों में कहे फलों को प्रदान करते हुए अनुभव होंगे

        यह जीवन मृत्यु रूप है। इस जीवन में यदि हम प्रातः सायं कम से कम एक एक घंटा ईश्वर की उपासना अर्थात ध्यान में जोड़ लें तो जितनी हार्दिक श्रद्धा हम प्रभु को देंगे उतने ही समय में हम देखेंगे कि हमारे शरीर में ईश्वर की दिव्यता उत्तर रही है।

       शरीर से रज और तम हट रहे हैं और सत्व बढ़ रहा है। शरीर हल्का फुल्का चुस्त फुर्त, बलिष्ठ और आनंदित हो रहा है। बुद्धि बढ़ रही है। हे प्रभु जी! मुझे असत्य से सत्य की तरफ, अज्ञान रूपी अंधकार से प्रकाश रूपी ज्ञान  की तरफ ले जाने की कृपा करें। mantra asatoma sadgamaya, mantra om asatoma sadgamaya,


        ज्यों-ज्यों समय बीतता जाएगा त्यों त्यों आनंद बढ़ता जाएगा। ऐसा आनंद न तो इस संसार के किसी भी पदार्थ  के खाने में है और न ही किसी प्रकार की भोग क्रिया में है। ऐसी अवस्था में आप अपने गृहस्थ व सर्विस इत्यादि के कार्यों को और भी दुगनी  तिगुनी ऊर्जा से निपटाने लगेंगे।
(ये बातें अपने निजी अनुभव के आधार पर लिखी गई हैं)

       तो इस शरीर में जीते जी ही मोक्ष का ऐसा आनंद हमें प्राप्त होने लगेगा। शरीर छोड़ देने के बाद आत्मा को जो लाभ मिलेगा उसका आनन्द अलग से मिलता रहेगा।

      सबको सादर अभिवादन


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