valmiki ramayana Pancham Adhyay mai Naradji ne Kaha in hindi भगवान नारद जी ने उन्हें विधि बताते हुए कहा
बाल्मीकि रामायण महात्म्य के पंचम अध्याय में सनत कुमार जी से नारद जी के लिए कहलवाया गया है कि -
इदा निम् श्रोतू मिच्छामि विधिम् रामायण स्य च ।
अर्थात् अब मैं आपसे रामायण कथा की विधि सुन ने की इच्छा करता हूं ।
भगवान नारद जी ने उन्हें विधि बताते हुए कहा कि शौच स्नान से निवृत होकर इन्द्रियों को अपने बस में करके आचमन संध्या हवन कर सब दोषों से दूर एवं शुद्ध होकर सब के हित में तत्पर रहते हुए जो रामायण का आश्रय लेता है वह परम सिद्धि को प्राप्त होता है ।
फिर रामायण के महत्व को बताते हुए कहा है कि - valmiki ramayana Pancham Adhyay mai Naradji ne Kaha in hindi
गंगा मैया के समान तीर्थ , माता के समान तुल्य गुरु , भगवान विष्णु के सदृश देवता तथा श्री रामायण जी से बढ़ कर कोई उत्तम शास्त्र नहीं है ।
वेदों के समान ग्रंथ , शान्ति के समान सुखद भाव , सुख से बढ़ कर ज्योति तथा रामायण से उत्कृष्ट कोई काव्य नही है !
क्षमा के समान बल , कीर्ति के समान सम्पदा , ज्ञान के समान लाभ तथा रामायण से बढ़ कर उत्तम कोई शास्त्र नहीं है ।
आगे कथाकार को सम्मानित करने के लिए कहा कि रामायण कथा के अंत में वेदज्ञ वाचक को दक्षिणा सहित गौ का दान करे । उन्हें रामायण की पुस्तक तथा वस्त्र और आभूषण आदि दे । कहा कि जो वाचक को रामायण की पुस्तक देता है , वह भगवान विष्णु के धाम में जाता है ; जहां जाकर उसे कभी शोक नहीं करना पड़ता । अब कथा सुनने का फल बताते हुए कहते हैं कि पंचमी तिथि को रामायण की अमृत्म यि कथा को आरंभ करके उसके श्रवण मात्र से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है । यदि दो बार यह कथा श्रवण की गई तो श्रोता को पुंडरीक यज्ञ , अश्वमेध यज्ञ और अग्निष्टोम यज्ञ के परम पुण्य फल को प्राप्त करता है ।
आगे कहा है कि जो मनुष्य श्रद्धा युक्त हो valmiki ramayana Pancham Adhyay mai Naradji ne Kaha in hindi
कर इसका एक श्लोक या आधा श्लोक भी पढ़ता है , वह तत्काल ही करोड़ों उपपात कों से छुटकारा पा जाता है । साथ ही यह भी लिखा है कि यह गुह्यतम वस्तु है , इसे सत्पुरुषों को ही सुनना चाहिए । जो ब्रह्म द्रोही , पाखण्ड पूर्ण आचार में तत्पर तथा लोगों को ठगने वाली वृत्ति से युक्त है उन्हें यह परम उत्तम कथा नहीं सुनानी चाहिए । फिर स्थान बताते हैं कि इस कथा को श्री राम के मंदिर में अथवा किसी पुण्य क्षेत्र में , सत्पुरुषों की सभा में रामायण कथा का प्रवचन करना चाहिए । फिर बार बार कहा है कि इसका श्रवण अथवा पाठ करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है ।
पाठक गण विचार करें एक बार कहा गया कि इसे पापियों को नहीं सुनाना चाहिए सत्पुरुष को ही सुनना सुनाना चाहिए और फिर इससे पाप भी नष्ट होते हैं ये एक दूसरे के विरोधी बातें हैं । लगता है पापी लोग ऐसे श्लोक बनाकर बाल्मीकि रामायण में घुसा दिया है । यह कितनी अच्छी बात है कि वेद के जैसा कोई भी शास्त्र नहीं है । साथ ही वेद जानने वाले विद्वानों को ही कथाकार के रूपमे बुलाने तथा उनको सम्मानित करने की बात भी कहा है । परन्तु वर्तमान के लगभग सभी रामायण , भागवत व अन्य कथाकार वेद विरोधी बने हुए हैं । वे अपने किसी भी कथा में वेद पढ़ने और पढ़ाने की बात बिल्कुल ही नहीं करते । परमात्मा उन्हें सद्बुद्धि दे तथा वे वेद का पढ़ना पढ़ाना और सुनना सुनाना परम धर्म समझकर ऐसे ही लोगों को समझाएं इसी कामनाओं के साथ बाल्मीकि रामायण के महात्म्य की कथा का विराम किया जाता है । यह लेख किसी को दुःख पहुंचा ने हेतु नहीं लिखा जा रहा है । इसे जान समझकर हम सभी सत्य तक पहुंच सकें इसी इच्छा से लिखा जा रहा है ।
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