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Valmiki ramayan Sunderkand Pushpak Viman ka Sach rahashy aur gati पुष्पक यान प्राचीन विमान - रावण का पुष्पक विमान

विमान वायुयान पुष्पक विमान रामायण काल के अन्दर विमान वायुयान के सम्बन्ध में स्थान-स्थान पर वर्णन आता है जिनको निदर्शन के लिये यहाँ दिया जाता है। सवारी का पुष्पक विमान



Valmiki ramayan Sunderkand Pushpak Viman ka Sach rahashy aur gati - विमान वायुयान पुष्पक विमान, रावण का पुष्पक विमान कहां है   


कैलासपर्वतं गत्वा विजित्य नरवाहनम्। विमानं पुष्पकं तस्य कामगं वै जहार यः॥ (वा०रा० अरण्य०3, 11, 14)

कैलास पर्वत पर जाकर वहाँ सवारी के ले जाने वाले पुष्पक नाम के विमान को लाया। 

यस्य तत्पुष्पकं नाम विमानं कामगं शुभम्। वीर्यादावर्जित भद्रे येन यामि विहायसम्॥ (वा०रा० अरण्य० 48, 16) 

रावण सीता से कहता है कि हे सीता! सुन्दर पुष्पक विमान विश्रवण का था जिसे मैं बल से जीतकर लाया हूँ इस से मैं आकाश में जाता हूँ।  


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Valmiki ramayan Sunderkand



स तस्य मध्ये भवनस्य संस्थितो महद्विमानं मणिरत्न- चित्रितम्। प्रतप्तजाम्बूनदजालकृत्रिमं ददर्श धीमान् पवनात्मजः कपिः॥ तद्प्रमेयप्रतीकारकृत्रिमं कृतं स्वयं साध्विति विश्वकमर्णा। दिवं गते वायुपथे प्रतिष्ठितं व्यराजतादित्यपथस्य लक्ष्मवत्॥ स पुष्पकं तत्र विमान मुत्तमं ददर्श तद्वानरवीरसत्तमः। (वा० रा० सुन्दर० 8। 1-2, 8)   

जड़ित स्वर्णतारों की जालियाँ जिसमें लगी थीं जिसकी आए थे। उस ऐसे भारी विमान की गति घण्टे में अढ़ाई सौ मील थी। इस तुलना से यदि छोटा-सा विमान होता   हनुमान् ने लंका में रावणनिवास स्थान में मणिरत्नों से तुलना नहीं हो सकती। उसके आकाश में उड़ने पर वायु मार्ग में विराजमान सूर्य पथ में चिह्न की भाँति दिखाई देने वाले पुष्पक विमान को देखा। 


जालवातायनैर्युक्तं काञ्चनैः स्फाटिकैरपि। (वा० रा० सुन्दर० 91, 16) 

 

वह पुष्पक विमान सोने की जालियों और स्फटिक मणि की खिड़कियों से युक्त था। 


पुष्पक विमान की गति Pushpak Viman ka Sach rahashy aur gati,



अह्नां त्वां प्रापयिष्यामि तां पुरीं पार्थिवात्मज। पुष्पकं नाम भद्रं ते विमानं सूर्यसन्निभम्।। (वा० रा० युद्ध० 12, 118-9)   


विभीषण राम को कहता है- हे राम मैं तुम्हें एक दिन में-दिन के अन्दर आठ दस घण्टों में अयोध्या पुष्पक विमान से पहुँचा दूंगा। उक्त कथन में पुष्पक विमान की गति घण्टे में अढाई सौ मील लगभग थी। विदित हो यह पुष्पक विमान एक भारी विमान सैकड़ों सवारी ले जाने वाला था। क्योंकि श्रीराम लक्ष्मण, सीता, विभीषण, सुग्रीव तथा अनेक सैनिक भी बैठकर अयोध्या हो तो उस समय उसकी उड़ान घण्टे में उस से कई गुणा सकती थी। कुछ ज्ञात होता है कि छोटे-छोटे विमान या उड़ने के साधन वहाँ लंका में अधिक थे। विभीषण भी राम के पास उड़कर ही आया था। किन्तु पुष्पक विमान बहुत ही बड़ा था जिसमें सेना भी बैठ सकती थी जैसे आजकल सैनिक विमान होते हैं। पुष्पक विमान में कोई एक हंसयन्त्र या हंसाकार का अग्रभाग लगा था और बीच में रेल के समान डब्बे या बैठने के स्थान होंगे। रामायण की विमानकला भी बढ़ी चढ़ी थी।     


वाल्मीकि रामायण सुंदरकांड अष्टमः सर्गः आठवां सर्ग श्लोक 1 से 7 तक,  रावण का पुष्पक विमान कहां है, 

Pushpak Viman ka Sach rahashy aur gati - विमान वायुयान पुष्पक विमान



पुष्पक विमान का वर्णन   स तस्य मध्ये भवनस्य संस्थित पर महद्विमानं बहुरत्नचित्रितम् ।  प्रतप्तजाम्बूनदजालकृत्रिमं  ददर्श वीरः पवनात्मजः कपिः ॥ १॥ 


रावण के राजभवन में रखे हुए पुष्पक विमान को, जिसमें बढ़िया सुवर्ण के बने झरोखे थे और जिसमें जगह जगह रंग बिरंगे बहुत से रत्न जड़े हुए थे, पवननन्दन वीर हनुमान ने देखा ॥१॥ 


तदप्रमेयाप्रतिकारकृत्रिम कृतं स्वयं साध्विति विश्वकर्मणा। दिवं गतं वायुपथे प्रतिष्ठितं व्यराजतादित्यपथस्य लक्ष्मवत् ॥ २॥ 


वह अनुपम सुन्दरता युक्त था। उसमें कृत्रिम प्रतिमाएँ थीं। उसे विश्वकर्मा ने स्वयं ही बहुत सुन्दर बनाया था। वह आकाश में चलने में प्रसिद्ध था और सूर्य के पथ का एक प्रसिद्ध चिन्हसा था ॥२॥ 


न ते विशेषा नियताः सरेष्वपि । न तत्र किश्चिन्न महाविशेषवत् ॥३॥ 

उस विमान में ऐसी कोई वस्तु न थी जो परिश्रम पूर्वक न बनाई गयी हो और उसका कोई भाग ऐसा न था जो मूल्यवान रत्नों से न बनाया गया हो । उसका एक भी भाग ऐसा न था जिसमें कुछ न कुछ विशेषता न थी। पुष्पक में जैसी कारीगरी की गयी थी, वैसी कारीगरो देवताओं के विमानों में भी देखने में नहीं पाती थी॥३॥


तपःसमाधानपराक्रमार्जितं मनःसमाधानविचारचारिणम् । अनेकसंस्थानविशेषनिर्मितं ततस्ततस्तुल्यविशेषदर्शनम् ॥ ४ ॥ 

रावण ने एकाग्रचित्त हो तप करके जो बल प्राप्त किया था उसीके बल उसने यह पुष्पक विमान सम्पादन किया था। वह विमान सङ्कल्प मात्र ही से यथेच्छ स्थान में पहुँचा देता था। इसमें बहुत सी बैठकें विशेष रूप से बनायो गयी थीं। इसीसे वे उस विमान के अनुरूप विशेष प्रकार की भो थों ॥ ४॥ 


मनः समाधाय तु शीघ्रगामिनं दुरावरं मारुततुल्यगामिनम् । महात्मनां पुण्यकृतां मनस्विनां यविनामय्यमुदामिवालयम् ॥ ५॥ 

अपने खामी को इच्छा के अनुसार अभीष्ट स्थान पर तुरन्त पहुँच जाता था। इसकी चाल वायु को तरह बड़ी तेज़ थी। चाल में इसको कोई रोक नहीं सकता था। महात्मा, पुण्यात्मा बड़े समृद्धशाली और यशस्वी लोगों के लिये तो यह मानों श्रानन्द का घर ही था ॥ ५॥ 


विशेषमालम्ब्य विशेषसंस्थितं विचित्रकूटं बहुकूटमण्डितम् । मनोभिरामं शरदिन्दुनिर्मलं विचित्रकूटं शिखरं गिरेयथा ।। ६ ॥ 

यह विमान विशेष विशेष चालों के अनुसार, आकाश में घूमता था । उसमें विविध प्रकार की अनेक वस्तुएँ भरी थीं। उसमें बहुत से कमरे थे। अतिशय मनोरम, शरदकालोन चन्द्रमा को तरह निर्मल, विचित्र शिखरों से भूषित, तथा विचित्र शिखर से युक्त पर्वत की तरह वह जान पड़ता था ॥ ६ ॥ 


Pushpak Viman ka Sach rahashy aur gati - विमान वायुयान पुष्पक विमान, पुष्पक विमान कैसे चलता था?



वहन्ति यं कुण्डलशोभितानना महाशना व्योमचरा निशाचराः। विवृत्तविध्वस्तविशाललोचना महाजवा भूतगणाः सहस्रशः ।। ७॥ 

इस विमान को चलाने वाले विशालकाय आकाशचारी निशाचर थे। उनके मुख कुण्डलों से सुशोभित था। गोल, टेढ़े और विशाल नेत्रों वाले तथा महावेगवान हज़ारों भूतगण थे ॥ ७ ॥ 


वसन्तपुष्पोत्करचारुदर्शनं वसन्तमासादपि कान्तदर्शनम् । स पुष्पकं तत्र विमानमुत्तमं ददर्श तद्वानरवीरसत्तमः ॥ ८॥  इति अष्टमः सर्गः ॥  

वानरश्रेष्ठ हनुमान जी ने वसन्त कालीन पुष्पों के ढेर से युक्त और वसन्तऋतु से भी अधिक सुन्दर देखने योग्य, श्रेष्ठ पुष्पक विमान देखा ॥ ८॥ 

सुन्दरकाण्ड का पाठवा सर्ग पूरा हुआ । 

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