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Manushy Vs Shaitn मानव या राक्षस बनना

Manushy Vs Shaitn 
मानव के पास जीवन जीने की  शैली के लिए दो ही विकल्प हैं - 
ऋषि बनना या राक्षस (पशुवत व्यवहार) बनना ।


Manushy+Vs+Shaitn


पहला विकल्प है- अष्टांग योग का आचरण  करते हुए ऋषि बनकर इस पूरे ब्रह्मांड को जानकर [परमात्मा ,आत्मा , मूल प्रकृति , फिर मूल प्रकृति से  काल, महत्त ,अहंकार, मन ,आकाश ( आधुनिक वैज्ञानिक के अनुसार स्पेस), दिशा, वायु (आधुनिक वैज्ञानिक के अनुसार -वैक्यूम ऊर्जा ),अग्नि (आधुनिक वैज्ञानिक के अनुसार-क्वांटा , इलेक्ट्रॉन, फोटोन, क्वार्क ) ,जल (आधुनिक वैज्ञानिक के अनुसार-एटम एवं आयन), पृथ्वी (आधुनिक वैज्ञानिक के अनुसार-मॉलिक्यूल), उपग्रह, ग्रह, पृथ्वी, चंद्रमा, सूर्य , समस्त प्राणी जगत के शरीर अर्थात पूरी सृष्टि को जानकर ] सुख और परम सुख (मोक्ष) को प्राप्त करना ।   इस जीवन शैली में वर्तमान में सुखी होकर मृत्यु के बाद अगले लगभग 31 नील वर्षो तक परम सुखी रहते हुए जन्म नही  लेना पड़ता   है । लगभग 31 नील वर्षो  के बाद फिर मानव योनि को ही प्राप्त होता है  । प्रकृति में विकार होकर  जो उपरोक्त पदार्थ बनते हैं  इनको जाने बिना  सुख मिलना असंभव है ।

ऋषि बनने के लिए ही मानव योनि मिलती है ।


दूसरा है -राक्षस अर्थात पशुवत व्यवहार विधि से, इस सृष्टि के पदार्थो के भोग ही भोग में फंसकर सुख- दुःख के साथ , अल्पायु में रोगी होकर मृत्यु को प्राप्त होना,  और तुरन्त  अगली  पशुवत योनि में  में ही जन्म लेना ।


किस आधार पर इन दो विकल्पों की  बताया है ?


 उसके  लिए आपको पूरी सृष्टि समझनी पड़ेगी , इस ब्रह्मांड में 3 सत्ता अनादि हैं- परमात्मा, आत्मा और प्रकृति । इस ब्रह्मांड में दिन- रात की तरह प्रलय- सृष्टि  होते रहते हैं । जिस तरह दिन -रात में 24 घंटे होते हैं, उसी तरह सृष्टि की आयु 432 करोड वर्ष और प्रलय की आयु भी 432 करोड वर्ष होती है ।

 

प्रलय अवस्था- अपने मूल में लौट जाना ही प्रलय  अवस्था कहलाती है,  मूल प्रकृति जिससे यह समस्त ब्रह्मांड बनता है वह  प्रलय अवस्था में एकरस होकर इस पूरे ब्रह्मांड में भरी रहती है उस समय उसमें  कोई भी कणीय अवस्था (इलेक्ट्रॉन  फोटोन, एलिमेंट आदि ) नहीं होती एवं उस समय वह क्रियाहीन, अचल, अकम्प , शिव धाम, ध्रुव, सनातन,  अनून,  साम्यवस्था (सोई हुई अवस्था)  में त्रिगुण सत-रज-तम, प्रभव ,सत-असत, अवस्था  मैं रहती है ।


 - जो कर्ता की रचना करके कारण द्रव्य किसी संयोग विशेष से अनेक प्रकार कार्यरूप होकर वर्तमान में व्यवहार करने के योग्य हैं, वह सृष्टि कहलाती है । सृष्टि उसको कहते हैं जो पृथक द्रव्यों का ज्ञान युक्तिपूर्वक मेल करके नाना रूप बनाना । परमपिता परमेश्वर मूल प्रकृति में सत- रज- तम, इन गुणों को एक्टिवेट करके यह सृष्टि की रचना करता है ।


 अब हमें प्रकृति के इन तीन गुणों सत -रज- तम  को जानना  अति आवश्यक है -

 सत गुण -सत वह गुण है जिसके कारण प्रकाश एवं  प्रीति अर्थात आकर्षण व धारण बल आदि की उत्पत्ति होती है  रजोगुण -रजोगुण के कारण  अप्रीति अर्थात प्रतिकर्षण बल एवं गतिशीलता की उत्पत्ति होती है, तमोगुण- तमोगुण के कारण अहंकार, जड़ता, गुरूता, निष्क्रियता,  द्रव्यमान आदि गुणों की उत्पत्ति होती है ।

प्रकृति का जो सबसे पहला गुण है आकर्षण  उसके बिना सृष्टि की रचना संभव ही नहीं है ।  प्रकृति का जो दूसरा गुण है प्रतिकर्षण का, यदि यह ना हो तो पूरा ब्रह्मांड एक ठोस पिंड के रूप में ही रह जाएगा , अर्थात प्रतिकर्षण का गुण अनिवार्य होना चाहिए ।

 अब आप व्यवहार में आ जाइए मनुष्य का शरीर बना ही प्रकृति के आकर्षण(सत) गुण की वजह से, इसलिए  ब्रह्मांड के समस्त पदार्थ से इसका आकर्षण का गुण होना स्थाई भाव है यदि मानव के पास प्रतिकर्षण गुण अर्थात ज्ञान नहीं होगा  तो पूरे ब्रह्मांड के समस्त पदार्थ इस अकेले मानव को ही चाहिए और इसी प्रवृत्ति को हम राक्षस या पशुपत व्यवहार कह रहे हैं ।

 

सृष्टि सुचारू रूप से चले इसलिए हमें ज्ञान होना  अनिवार्य शर्त  है ।

 पूर्ण ज्ञान केवल वेद से ही मिलना संभव है क्योंकि वेद केवल ज्ञान का ही ग्रंथ है और ज्ञान वह है जिससे समस्त प्राणी जगत का कल्याण होता है । ऋषि बनने के लिए आपको अष्टांग योग का पालन करना  अनिवार्य शर्त है और राक्षस बनने के लिए आधुनिक विज्ञान  का आचरण करना होगा जिससे आपका मन कभी नहीं भर सकता  ।


चिंतन आपका है कि आपको ऋषि बनना है या राक्षस अर्थात पशुवत व्यवहार । 

पशुवत व्यवहार से इस पृथ्वी पर मानव पूरी सृष्टि आयु नहीं रह सकता  क्योंकि वर्तमान में हम देख ही रहे हैं कि हमने  हवा, पानी ,भूमि, ध्वनि में प्रदूषण कर ही दिया है इसलिए यहां अब मानव का रहना मुश्किल है  जबकि  अभी सृष्टि के लगभग 234 करोड़ वर्ष बाकी हैं। मानव की आयु 100 वर्ष से लेकर 400 वर्ष तक के लिए डिजाइन है , यदि हम इससे पहले मृत्यु को प्राप्त होते हैं तो यह हमारी राक्षस प्रवृत्ति के कारण ही होता है ।

NAMASTE KYU KARTE HA?

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