मूर्ति/चित्र पूजन । murti pujan kya hai?
आमतौर पर यह मान लिया जाता है। कि मूर्ति पूजन हिन्दू करते है। परन्तु यह पूर्ण सत्य नहीं है। हिन्दू समाज मै विभिन्न पूजा पद्धतियां है। इनमे से दो प्रमुख है। जिनको कर्म और ज्ञान के आधार पर लिया जाता है। जो साधक अत्यधिक ज्ञान वान है । वे वर्णाश्रम धर्म मै विधि सम्मत अपना कर भगवान का ध्यान, समाधि आदि करते है। जो गृहस्थ है। वे मूर्ति पूजन , चित्र , चरित देवी , देवता विभिन्न व्रत, आदि से पूजन करते है। मूर्ति / चित्र पूजन सभी मत, पंथ व समाज के अनुयाई करते है। यहां तक कि मन मै भी किसी के चित्र व मूर्ति को संजोए रखना मूर्ति पूजन के अंतर्गत आता है। कुछ समाज मै ये स्तिथि है । जैसे।
जैन समाज। मै विभिन्न पौराणिक देवी देवता को मानते है। मंदिरों में दिगंबर देव की मूर्ति होती अपना पूजन करते। और ये यहां तक की ये देवी देवता के भोग प्रसाद तक को ग्रहण नहीं करते। फिर दावा करते की मूर्ति पूजा गलत है। पाखंड है।
बौद्ध मत। मै के लगभग सभी संप्रदायों मै देवी देवता , तंत्र मंत्र को मानते है। साथ मै बुद्ध की प्रतिमा मंदिर मै रखते । घंटी डमरू बजा कर पूजन करते। फिर यह दावा करते की मूर्ति पूजन गलत है पाखंड है।
आर्य समाज।
अन्य देवी देवता की आपेक्षा श्री राम व कृष्ण को मानने का दावा करते है। आर्य समाज मंदिर मै संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का चित्र व मूर्ति दिख जाएगी। साथ मै भगवान राम व कृष्ण की चित्र व मूर्ति दिखाई पड़ेगी। स्वामी दयानंद सरस्वती जी अवतरण दिवस और मृत्यु दिवस को उत्सव कि तरह मानते है। फिर कहते है मूर्ति पूजन गलत और पाखंड है।
ईसाई समाज।
चर्च मै येशु के विशाल मूर्ति देखने को मिल जाती है। साथ मै मरियम और येशु के बाल मूर्ति भी दिख जाता । साथ मै अन्य कई देवी देवता को मानते व पूजते है। येशु के मूर्ति के सामने प्राथना करते है।
इस्लाम मोहम्मद वाद।
ये मूर्ति व पूजक दोनों के विरोधी ही नहीं वरन् मारने काटने तक का कार्य करते है। इस्लाम के अनुयाई काबा मै अल्लाह का होना मानते है। काबा मै जाकर दीवारों को चूमते चाटते है। दीवारों को छूते है। एसा करके ये विश्वास करते की अल्लाह से भेंट मुलाकात कर लिए है और सारी खुशियां पा चुके, दुनिया भर के इस्लाम अनुयाई काबा की ओर ही मुंह करके अपना पूजा पद्धति संपन्न करते है। फिर कहते मूर्ति पूजा गलत और पाखंड है।
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