वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग सप्तविंश: अर्थात् सत्ताईस में लिखा है कि ताटका बन में रात बिताकर महायशस्वी विश्वामित्र जी भगवान राम जी को अनेक अस्त्र शस्त्रों का ज्ञान करवाया । इस सर्ग के श्लोक संख्या 22 में लिखा है कि -
मुनिवर विश्वामित्र जी उस समय स्नान आदि से शुद्ध हो पूर्वाभिमुख होकर बैठ गए और अत्यंत प्रसन्नता के साथ उन्होंने श्री रामचन्द्र जी को उन सभी उत्तम अस्त्रों का उपदेश दिया । जिन जिन अस्त्रों का उपदेश दिया उसका नाम इस प्रकार है -
दण्ड चक्र , धर्मचक्र , कालचक्र , विष्णु चक्र , ऐन्द्र चक्र , वज्रास्त्र , त्रिशूल , ब्रह्मशिर, ऐशिकास् त्र , ब्रह्मास्त्र , मोदकी एवं शिखरी गदा , धर्मपाश , कालपाश , वरुण पाश , सूखी अशनी , गीली पिनाक , नारायणा स्त्र , आग्नेयास्त्र या शिखरा स्त्र , वायव्यास् त्र , हयशिरा , क्रौंचास्त्र , शक्ति , कंकाल , घोर मूसल , कपाल , किंकिनी , नन्दन , खड्ग , सम्मोहनास् त्र , प्रस्वापन , प्रशमन , सौम्यास् त्र , वर्षण, शोषण , संतापन , विलापन , मादन , मानवास्त्र , मोहनास् त्र , तामस , सौमण , संवर्त , दूर्जय , मौसल , सत्य , मायमय , तेज: प्रभ , शिशिर , त्वस्टा और शितेशु ।
इन सभी अस्त्रों का उपदेश महर्षि विश्वामित्र जी ने किया ।
कुछ इस प्रकार की बातें भी लिखी है कि - ये सभी अस्त्र इच्छानुसार रूप धारण करने वाले, महान बल से सम्पन्न तथा परम उदार है ।
महर्षि विश्वामित्र जी ज्यों ही जप आरम्भ किया , त्यों ही वे सभी परम पूज्य दिव्यास्त्र स्वत: आकर श्री रघुनाथ जी पास उपस्थित हो गए और अत्यंत हर्ष में भर कर उस समय श्री रामचंद्र जी से हाथ जोड़कर कहने लगे - परम उदार रघुनंदन ! आपका कल्याण हो । हम सब आपके किंकर हैं । आप हमसे जो जो सेवा लेना चाहेंगे , वह सब हम करने को तैयार रहेंगे ।
भगवान राम ने अस्त्रों का स्पर्श करके कहा कि आप सब मेरे मन में निवास करें । तदनंतर वे विश्वामित्र जी को प्रणाम कर आगे की यात्रा प्रारम्भ की । इस प्रकार सत्ताईस सर्ग समाप्त हुआ ।
पाठक गण ! यदि अप ना और अपने राष्ट्र का कल्याण करना चाहते हैं तो हम आप सबको अस्त्र शस्त्रों की शिक्षा लेनी पड़ेगी । वेद में यही कहा है कि हम वेदों के विद्वान् भी हों और अनेक शास्त्रों से युक्त बलवान भी हों तभी हम श्रेष्ठता को धारण कर सकते हैं ।
इसमें यह अतिशयोक्ति है कि सभी अस्त्र शस्त्र आकर राम जी को हाथ जोड़कर कहा कि हम आप के किंकर हैं ।
क्या वाल्मीकि जैसे सभी अंग उपांग सहित वेदों के महा विद्वान् को यह पता नहीं था जड़ और चेतन में क्या अंतर होता है ? क्या अस्त्र शस्त्र के भी हाथ होते हैं जो जोड़ेगा ? क्या उस मूंह भी होता है जो बोलेगा ? क्या हथियारों के रखने का स्थान मन है जो भगवान राम के मन में सब हथियार निवास किया ?
क्या मंत्र के जाप से अपने आप हथियार कहीं से आजाते और चले जाते हैं ?
इसमें इतना ही ठीक है कि महर्षि विश्वामित्र जी ने अस्त्र शस्त्रों की जानकारी और उसके प्रयोग विधि श्री राम जी को बताए होंगे और मन में बसने का भी यही अर्थ है कि जैसा अस्त्र सम्बन्धी विचार मुनि विश्वामित्र जी बताए वैसा विचार श्री राम जी आपने मन में बिठा लिए । वहां न अस्त्र आया , न बोला और न उनके मन में घुसा। अस्त्र शस्त्रों को कैसे बनाएं , उसका प्रयोग कब और कैसे करें इस सिद्धांत को वे जान गए । यही उचित लग रहा है । आशा है पाठक गण विचार करेंगे ।
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