Valmiki Ramayana Sanat Kumar ji Katha Nivedan
वाल्मिकी रामायण महात्म्य के तृतीय अध्याय में सनत्कुमर जी
Valmiki Ramayana Sanat Kumar ji Katha Nivedan के निवेदन पर नारद जी
माघ मास में रामायण कथा सुनने वालों का वृत्तांत बताते हुए कहते हैं कि पूर्वकाल द्वापर युग में सुमति नामक एक चंद्रवंशी राजा हुए । उनका मन सदा धर्म में ही लगा रहता था । वे सत्यवादी तथा सब प्रकार की संपत्तियों से सुशोभित थे । सदा श्री राम कथा के सेवन और श्री राम की ही समाराधना में संलग्न रहते थे । श्री राम की पूजा अर्चना में लगे रहने वाले भक्तों की वे सदा सेवा करते थे । उनमें अहंकार का नाम भी नहीं था । वे पूज्य पुरुषों के पूजन में तत्पर रहने वाले, समदर्शी तथा सद्गुण सम्पन्न थे । राजा सुमति समस्त प्राणियों के हितैषी , शान्त, कृतज्ञ और यशस्वी थे । उनकी परम सौभाग्य शालिनी पतिव्रता पत्नी सत्यवती भी समस्त शुभ लक्षणों से सुशोभित थी । वे दोनों पति पत्नी सदा रामायण को पढ़ने, सुनने और सुनाने में संलग्न रहते थे।
एक दिन उस त्रिभुवन विख्यात धर्मात्मा राजा एवं रानी सत्यवती को देखने के लिए विभांडक मुनि अपने शिष्यों के साथ आए । सपत्नीक राजा ने उनका यथोचित सत्कार किया । मुनि राजा को भगवान राम की ही आराधना करते हुए देखकर इसका कारण पूछा ।
राजा सुमति ने कहा कि हे साधु शिरोमने ! पूर्व जन्म में मैं मालती नामक शूद्र था । सदा कुमार्ग पर ही चलता और सब लोगों के अहित साधन में ही संलग्न रहता था । दूसरों की चुगली खाने वाला , धर्मद्रोही , देवता संबंधी द्रव्य का अपहरण करने वाला तथा महापातकियों के संसर्ग में रहने वाला था । मैं दैव संपत्तियों से ही जीविका चलाता था ।
Valmiki Ramayana Sanat Kumar ji Katha Nivedan गो हत्या , ब्राह्मण हत्या और चोरी करना यही अपना धंधा था ।
मैं सदा दूसरे प्राणियों की हिंसा में ही लगा रहता था । प्रति दिन दूसरों से कठोर बातें बोलता , पाप करता और वेश्याओं में आशक्त रहता था । इस प्रकार कुछ काल घर में रहा फिर बड़े लोगों की आज्ञा का उल्लंघन करने के कारण मेरे सभी भाई बंधुओं ने मुझे त्याग दिया और मैं दुखी होकर बन में चला आया और बाशिष्ठ ऋषि के आश्रम के पास घर बना कर रहने लगा । इसी समय यह जो मेरी पत्नी सत्यवती है वह मेरे आश्रम पर आईं । उस समय इनका नाम काली था और यह निषाद कुल की कन्या थी । इसके पिता का नाम दांभिक था और यह विंध्य पर्वत पर निवास करती थी । सदा दूसरों का धन चुराना और चुगली खाना ही इसका काम था। एक दिन इसने अपने पति की हत्या कर डाली । इसीलिए भाई बन्धुओं ने इसे घर से निकाल दिया । इस तरह परित्यक्ता काली उस दुर्गम एवं निर्जन वन में मेरे पास आई थी । तब मैं और काली पति पत्नी का संबंध स्वीकार करके रहने और मांसाहार से जीवन निर्वाह करने लगे ।
एक दिन हम दोनों जीविका के निमित्त कुछ उद्यम करने के लिए वशिष्ठ जी के आश्रम पर गए । वहां देवर्षियों का समाज जुटा हुआ था । वहां ब्राह्मण लोग माघ मास में प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे । हम लोग निराहार थे और भूख प्यास से कष्ट पा रहे थे । फिर नौ दिनों तक लगातार भक्ति पूर्वक रामायण की कथा सुनने के लिए हमलोग वहां जाते रहे । उसी समय हम दोनों की मृत्यु हो गई । हमारे उस कर्म से भगवान मधुसूदन का मन प्रसन्न हो गया । अतः उन्होंने हमें ले आने के लिए दूत भेजे । वे दूत हम दोनों को विमान में बिठा कर भगवान के परम पद में के गए । हम दोनों देवाधिदेव चक्र पानि के निकट जा पहुंचे । वहां हमलोग कोटि सहस्र और कोटि शत युगों तक श्री राम धाम में निवास करके ब्रह्मलोक में आए । वहां भी उतने समय रहकर हम इन्द्र लोक में आगाए ।
Valmiki Ramayana Sanat Kumar ji Katha Nivedan मुनि श्रेष्ठ !
वहां इन्द्र लोक में भी उतने ही काल तक रहकर परम उत्तम भोग भोगने के पश्चात हम क्रमशः इस पृथिवी पर आए हैं । यहां भी रामायण के प्रसाद से हमें अतुल संपत्ति प्राप्त हुई है । मुने ! अनिच्छा से रामायण का श्रवण करने पर भी हमें ऐसा फल प्राप्त हुआ है । नौ दिनों तक भक्ति भाव से रामायण की अमृतम यि कथा सुनी जाए तो वह जन्म , जरा और मृत्यु का नाश करने वाली होती है । विप्रवर ! सुनिए , विवश होकर भी जो कर्म किया जाता है , वह रामायण के प्रसाद से परम महान फल प्रदान करता है । नारद जी कहते हैं कि यह सब सुनकर मुनीश्वर विभां डक राजा सुमति का अभिनंदन करके अपने तपोवन को चले गए । इस प्रकार रामायण महात्म्य का तीसरा अध्याय समाप्त हुआ । पाठक गण ! क्या विचित्र कथा है ? जो पति पत्नी चोर डकैत ब्राह्मण हत्यारा गो हत्यारा । पति हत्यारिन और सभी जीवों को कष्ट देने वाले थे अनिच्छा से नौ दिनों तक कथा सुन लिया तो उसे परमात्मा विमान भेजकर अपने पास ले गए और कितना बड़ा सुख प्रदान किया ? कथा वाचक इसी प्रकार लोगों को पाप से मुक्त होने का लॉलीपॉप देकर जनमानस को पाप करने के लिए प्रेरित करते हुए समाज को दूषित करने में अपना सहयोग प्रदान कर रहे हैं । बहुत अल्प कथाकार हैं जो ठीक ठीक बताते हैं कि अच्छे कर्मों का ही फल अच्छा होता है । बुरे कर्मों का फल सौ जन्म में भी रामायण और भागवतादि कथा सुनने सुनाने से माफ नहीं होता ।अशुभ कर्मों का फल तो दुःख के रूप में निश्चय मिलता ही है।
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वाल्मीकि रामायण सौदास की कथा भाग २
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