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महाभारत काल मै शास्त्र विज्ञान प्रकाश का वर्ण विक्षेपण (Spectrum of Light), वर्ण विक्षेपण क्षमता से क्या तात्पर्य है, प्रकाश का वर्ण विक्षेपण और स्पेक्ट्रम

महाभारत काल मै शास्त्र विज्ञान प्रकाश का वर्ण विक्षेपण (Spectrum of Light), वर्ण विक्षेपण क्षमता से क्या तात्पर्य है, प्रकाश का वर्ण विक्षेपण और स्पेक्ट्रम, prakaash ka varn vichalan aur varnakram,


सूर्य की किरणों में अनेक रङ्ग की किरणें समाहित होती हैं। जब ये किरणें किसी प्रिज्म से होकर गुजरती हैं तो सात रङ्गों में विभाजित हो जाती हैं। इस घटना को "प्रकाश का वर्ण विक्षेपण” कहते हैं। वर्षा ऋतु में इन्द्रधनुष इसी कारण दिखाई देता है। न्यूटन ने यह नियम सन् 1966 ई. में प्रतिपादित किया था। महाभारत में महर्षि व्यास ने सूर्य की किरणों के पृथक-पृथक होने की घटना का उल्लेख किया है। महाभारत के शान्ति पर्व में व्यास ऋषि का जीवात्मा तथा परमात्मा के साक्षात्कार के विषय में कथन हैं कि जिस प्रकार सूर्य की किरणें परस्पर मिली हुई ही सर्वत्र विचरती हैं तथा स्थित हुई दृष्टिगोचर होती हैं, उसी


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मणिरत्नचिंता तां तु केचिदभ्येत्य पार्थिवाः। दृष्ट्वापि नाभ्यजानन्त तेऽज्ञानात् प्रपतन्त्युत।। - महा. भा. सभा पर्व 3.33


प्रकार अलौकिक जीवात्मा स्थूल शरीर से ही निकलकर सम्पूर्ण लोकों में जाते हैं (यह ज्ञान दृष्टि से ही जानने में आ सकता है)। जैसे – विभिन्न जलाशयों के जल में सूर्य की किरणों का पृथक-पृथक् दर्शन होता है, उसी प्रकार योगी पुरूष सभी सजीव शरीरों के भीतर सूक्ष्म रूप से स्थित पृथक्-पृथक् जीवों को देखता है।' इस वर्णन के अनुसार सूर्य की किरणें परस्पर मिली हुई सब ओर विचरती हैं। अतः ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि जलाशय का जल प्रिज्म के समान कार्य कर रहा है और वह सूर्य की किरणों को अलग-अलग विभक्त कर रहा है। यह क्रिया भौतिक विज्ञान की दृष्टि से प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कहलाती है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार प्रकाश की वर्ण-विक्षेपण क्रिया को निम्नलिखित रूप से व्यक्त किया जा सकता है, यथा



सूर्य के किरणे जब किसी प्रिज्म में से जाती है तो यह प्रिज्म के आधार की ओर झुकने के अतिरिक्त भी यह विभिन्न रंगों में विभाजित हो जाती है। इस प्रकार उत्पन्न विभिन्न रंगों के प्रकाश के समूह को वर्णक्रम (Spectrum) कहते हैं। इस वर्णक्रम को VIBGYOR कह सकते हैं। इससे ज्ञात होता है कि सूर्य का प्रकाश विभिन्न रङ्गों के प्रकाश से मिलकर बना है। प्रिज्म इन रङ्गों के प्रकाश को



यथा मरीच्यः सहिताश्चरन्ति सर्वत्र तिष्ठन्ति च दृश्यमानाः । देहैर्विमुक्तानि चरन्ति लोकांस्तथैव सत्वान्यतिमानुषाणि ।। प्रतिरूपं यथैवाप्सु तापः सूर्यस्य लक्ष्यते। सत्ववत्सु तथा सत्वं प्रतिरूपं स पश्यति।। महा. भा. शान्ति पर्व. 253. 2-3


अलग-अलग कर देता है क्योंकि प्रिज्म का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रङ्गों के प्रकाश के लिए अलग-अलग होता है। महाभारत के उपर्युक्त श्लोक के अनसार जलाशय का जल, प्रिज्म के समान कार्य कर रहा है तभी उस जल में पड़ने वाली सूर्य की किरण पृथक-पृथक प्रतीत हो रही है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि महर्षि व्यास

को वर्ण-विक्षेपण की प्रक्रिया का अद्भुत ज्ञान था।

इन्द्रधनुष (Rainbow) -


प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण 

द्वारा 'इन्द्रधनुष' नभ में दिखाई देता है। महाभारत के वन पर्व में इन्द्रधनुष का वर्णन मिलता है। यह इन्द्रधनुष प्रकाश के वर्ण विक्षेपण द्वारा ही बनता है और लोगों को आकाश में दिखाई देता है। वर्तमान भौतिक वैज्ञानिक इन्द्रधनुष के बनने का यही कारण मानते हैं। यह वर्षा ऋतु में प्रायः देखा जाता है। न्यूटन के अनुसार सामान्य जीवन में प्रतिदिन बहुत से स्पेक्ट्रम (Spectrum) के उदाहरण देखने को मिलते हैं, यथा – इन्द्रधनुष (Rainbow)। इन्द्रधनुष का निर्माण वर्षाकाल में बनी असंख्य जल-बूंदों पर सूर्य का प्रकाश पड़ने से होता है। वर्षा की किरणें लगभग गोलाकार होती हैं। सूर्य की किरणें इन बूंदों पर इस प्रकार पड़ती हैं कि उनसे अपवर्तित (Refract) होकर रङ्गों की एक चौड़ी पट्टी बनाती हैं, इसे ही इन्द्रधनुष (Rainbow) कहते हैं।


महाभारत के वन पर्व में 

मार्कण्डेय ऋषि, द्वारा भगवान शिव तथा पार्वती के स्थ पर आरूढ़ होने की दशा का वर्णन करते हुए कथन है कि उस स्थ पर भगवती उमा के साथ बैठे हुए भगवान शिव इस प्रकार शोभित हो रहे थे, मानो इन्द्रधनुषयुक्त मेघों की घटा में विद्युत् के साथ भगवान सूर्य प्रकाशित हो रहे हों।' इस वर्णन में इन्द्रधनुष का उल्लेख किया गया है जोकि मेघों की छटा में विद्यमान


तस्मिन् रथे पशुपतिः स्थितो भात्युमया सह ।। विद्युत्ा सहितः सूर्यः सेन्द्रचपे घने यथा। - महा. भा. वन. पर्व. 231.31 पृ. 1611


है। यह निश्चित रूप से वर्षा ऋतु का ही वर्णन प्रतीत हो रहा है। भौतिक वैज्ञानिक भी यही मानते हैं कि वर्षा ऋतु में घने बादलों के मध्य जब कभी सूर्य की किरण नम वायुमण्डल पड़ती है तो प्रकाश की किरणों के लिए जल-बिन्दु प्रिज्म का कार्य करती है जिससे प्रकाश की किरणें सात रङ्गों में विभक्त हो जाती है और मनुष्यों की आंखों को ये सात रङ्ग इन्द्रधनुष के रूप में दिखाई देने लगते हैं। अतः इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि महाभारत काल में प्रकाश की विशेषताओं का ज्ञान महर्षियों को स्पष्ट रूप से था। वैदिक काल में ऋषियों को भली-भाँति यह ज्ञात था कि सूर्य का श्वेत प्रकाश सात रङ्गों से निर्मित होता है। इस प्रसङ्ग में निम्नलिखित ऋचाएं वेदों में वर्णित है' -mahabharat physics science



अवधिवस्तारयन्ति सप्त सूर्यस्य रश्मयः।

अर्थात् सूर्य की सात किरणें पानी को आकाश से नीचे गिरा रही है।


यत्र गावा निहिता सप्त नाम"।

अर्थात् जहाँ एक सूर्य किरण ने अपने सात नाम रखे हैं।

सप्त युंजन्ति स्थमेकचक्रमेको अश्वो वहति।


अर्थात् सूर्य के एक चक्रीय रथ को सात नामों वाला एक ही घोड़ा चलाता है। (कोणार्क मन्दिर में निर्मित मूर्ति में भी सूर्य के रथ को सात घोड़े खींचते दिखाई देते हैं।)


यं सीमा कृण्वन् तमसे विप्रचे ध्रुवक्षे मा अनवस्यन्तो अर्थम् ।
तं सूर्य हरितः सप्त यहीः स्पाशं विश्वस्य जगतो वहन्ति।।


इस विवरण से यह प्रतीत होता है कि सूर्य के श्वेत किरणों में सात रङ्ग होने का ज्ञान प्राचीन वैदिक ऋषियों को भलीभाँति था। Science in Vedic Literature, pg. 50m सर आइजक न्यूटन 17वीं सदी के महान वैज्ञानिक माने जाते थे। ऐसा माना जाता है कि वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने यह प्रदर्शित किया कि प्रकाश को विभिन्न रङ्गों में विभक्त किया जा सकता है, परन्तु प्राचीन वैदिक ग्रन्थों, धर्मशास्त्रों तथा महाकाव्यों में बहुत पहले ही प्रकाश के वर्ण विक्षेपण की क्रिया का उल्लेख किया जा चुका है। इस सन्दर्भ वृहत् संहिता में इन्द्रधनुष के बनने के वैज्ञानिक कारण का उल्लेख मिलता है, यथा- Physics RAINBOW



सूर्यस्य विवधवर्णाः पवनेन बिघट्टिताः करा: साभ्रे । वियति धनुः संस्थानाः
ये दृश्यन्ते तदिन्द्रधनुः ।।
Bruhatsamhita-chapter 35



इस वर्णन से स्पष्ट होता है कि विक्रमादित्य के काल में वराह मिहिर द्वारा लिखित वृहत् संहिता के अनुसार आर्यों को सूर्य की किरणों से जुड़े रहस्यों का पूर्ण ज्ञान था, जैसे – सूर्य की किरणें कई रङ्गों की हैं, उनके मिलने से श्वेत धूप बनती है, वे वायुमण्डल के जल कणों में होकर निकलने से पृथक् पृथक् होकर अलग-अलग रङ्ग की दिखाई देती है। Science in Sanskrit, Pg. 19


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साधनपाद- सूत्र 5 से 13,
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