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प्रकाश-प्रकीर्णन (Scattering) जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है जिसमें धूल तथा अन्य पदार्थों के अत्यन्त सूक्ष्म कण होते हैं तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है।

प्रकाश-प्रकीर्णन (Scattering) जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है जिसमें धूल तथा अन्य पदार्थों के अत्यन्त सूक्ष्म कण होते हैं तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है। 


इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। बैंगनी रङ्ग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक तथा लाल रङ्ग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है।प्रकीर्णन के कारण ही सूर्योदय अथवा सूर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखाई पड़ता है। प्रकाश के प्रकीर्णन तथा अवशोषण के अध्ययन को स्पैक्ट्रोस्कोपी कहा जाता है। इसकी नींव डालने का श्रेय एण्डर्स जोनास एंगस्ट्रम (Anders Jonas Angstrom) (1817-1874) को दिया जाता है। इन्होंने प्रकाश के प्रकीर्णन को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया है - यदि प्रातः उगते तथा सायं डूबते सूर्य को देखा जाए तो यह लाल दिखाई देता है। इसका कारण यह है कि उगते अथवा डूबते सूर्य की किरणें वायुमण्डल में काफी अधिक दूरी तय करके मनुष्य की आँखों तक पहुँचती हैं। इन किरणों का मार्ग में धूल के कणों तथा वायु के अणुओं द्वारा बहुत अधिक प्रकीर्णन होता है जिससे सूर्य के प्रकाश से नीली तथा बैंगनी किरणें निकल जाती हैं क्योंकि इन किरणों का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है।


प्रकाश-प्रकीर्णन-(Scattering)


अतः आँख में विशेष रूप से शेष लाल किरणें ही पहुँचती हैं जिसके कारण सूर्य लाल दिखाई देता है। दोपहर के समय जब सूर्य सिर पर होता है तब किरणें वायुमण्डल में अपेक्षाकृत बहुत कम दूरी तय करती हैं। अतः प्रकीर्णन कम होता है और लगभग सभी रङ्गों की किरणें आँख तक पहुँच जाती हैं। अतः सूर्य श्वेत दिखाई देता है। इस घटना का वर्णन महाभारत में किया गया है। वन पर्व में सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय का वर्णन करते हुए मार्कण्डेय ऋषि द्वारा देवसेना तथा इन्द्र के मध्य हुए संवाद के विषय में कथन है कि ऐश्वर्यशाली इन्द्र ने देखा, पूर्व संध्या(प्रभात) का समय है, प्राची के आकाश में लाल रङ्ग के घने बादल घिर आये हैं और समुद्र का जल भी लाल ही दृष्टिगोचर हो रहा है। इस वर्णन में पूर्व संध्या (प्रभात) के अवसर पर आकाश में लाल रङ्ग के बादल तथा लाल रङ्ग के जल का उल्लेख किया गया है, इससे यह घटना प्रकाश के प्रकीर्णन पर आधारित प्रतीत होती है क्योंकि सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखाई देता है जिसके कारण यहाँ लाल रङ्ग के सूर्य के प्रकाश में बादल तथा समुद्र का जल दोनों ही लाल दिखाई दे रहे हैं।


अतः ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रकाश के प्रकीर्णन की दशा का वर्णन कर महर्षि व्यास ने अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा का प्रदर्शन किया है।

प्रातःकाल तथा सायंकाल में आकाश का रङ्ग लोहित वर्ण (लाल रङ्ग) हो जाने के विषय में श्रीपत का निम्नलिखित श्लोक संस्कृत वाङ्मय में प्रचलित है -


भूम्युत्थितरजोधूमैदिर्गन्तव्योम्नि संस्थितैः । सूर्यस्य किरणौर्मित्रैश रूपेणायमेव भासते।। विरलाव्ययं वस्तुयद् दृष्टेर्व्यवधाय कम्। ते वाम्रमरूणोद्मतं दृश्यन्ते शक्रचापवत्।।


अर्थात् सम्पूर्ण वायुमण्डल में रजकण फैले हुए हैं और सूर्य की किरणें उनसे छनकर पृथ्वी पर पड़ती हैं। सूर्य का प्रकाश भिन्न-भिन्न रङ्गों की किरणों का समूह है। लाल-किरणों की तरङ्ग-लम्बाई (Wave Lenght) अधिक होती है। उषा तथा गोधूली के समय सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं और नभ मण्डल का लोहित वर्ण (लाल रङ्ग) हो जाना इन्हीं किरणों पर निर्भर है।


लोहितैश्च घनैर्युक्तां पूर्व संध्यां शतक्रतुः । अपश्यल्लोहितोदं च भगवान् वरूणालयम् ।। - महा. भा. वन पर्व 224 13 2

महाभारत युग में काल गणना,
योग दर्शन सूत्र ०१ से ०८,
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योग दर्शन सूत्र 20 से 26,
साधनपाद-२ सूत्र 1 से 5,
साधनपाद- सूत्र 5 से 13,
योग दर्शन सूत्र १४ से १८
sadhanpaad sutra 19 to 35,
सूत्र २७ से ३५,
प्राणायाम का सही क्रम, विधि, नियम,
विभूतिपाद सूत्र 1-13,
vibhutipaad sutra 14-18,
ऐतरेयोपनिषद प्रथम अध्याय तृतीय खण्ड मंत्र,
खण्डः मंत्र २५ से ४८
योग दर्शन सूत्र 08 से 12,
अक्ष्युपनिषद् खंड 1-2
भगवान शिव के अनुसार पदार्थ क्या है?,
वेदान्त-दर्शन पहला अध्याय,
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