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दर्पण किसे कहते हैं, दर्पण (Mirror) - आधुनिक समय में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में बहुत से आविष्कार किए जा रहे हैं,

दर्पण (Mirror) आधुनिक समय में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में बहुत से आविष्कार किए जा रहे हैं, जो दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी हैं। इनमें से एक आविष्कार दर्पण को कहा जा सकता है। दर्पण सामान्य रूप से मुख को देखने हेतु लोगों द्वारा प्रयोग किया जाता है।


दर्पण को निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया जा सकता है, 


कोई चिकना तल जिसके एक पृष्ठ पर पॉलिश करके दूसरे पृष्ठ को परावर्तक बना दिया जाए दर्पण कहलाता है। यह दो प्रकार के होते हैं -


दर्पण-किसे-कहते-हैं


1. समतल दर्पण,


2. गोलीय दर्पण।


महर्षि व्यास ने महाभारत में अनेक स्थानों पर कथानक को स्पष्ट करने के किलए दर्पण को उदाहरण के रूप में व्यक्त किया है। इस सन्दर्भ में महाभारत के अनुशासन पर्व में विपुल द्वारा इन्द्र से गुरू पत्नी की रक्षा का वृत्तान्त सुनाते हुए भीष्म ने दर्पण का उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिसके अनुसार दर्पण मे प्रतिबिम्ब की भाँति विपुल अपने गुरू पत्नी के शरीर में परिलक्षित हो रहे थे।' इस प्रकार महाभारतकार ने दर्पण को स्पष्ट करने हेतु शाकुन्तलोपाख्यान में शकुन्तला द्वारा राजदरबार में दुष्यन्त के समक्ष यह कहलाया है कि पत्नी के गर्भ से उत्पन्न हुए पुत्र को पिता द्वारा उसी प्रकार देखा जाना चाहिए जिस प्रकार मनुष्य दर्पण में अपना मुँह देखता है। महर्षि व्यास ने खगोल के रहस्य को उद्द्याटित करने के लिए सञ्जय द्वारा सुदर्शन द्वीप का वर्णन किया है जिसके अनुसार जिस प्रकार पुरूष दर्पण में अपना मुँह देखता है उसी प्रकार सुदर्शन द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता



प्रतिबिम्बमिवादर्श गुरूपत्न्याः शरीरगम् । स तं धोरेण तपसा युक्तं दृष्टा पुरन्दरः ।। प्रावेपत सुरांत्रस्तः शापभीतस्तदा विभो ।- महा. भा. अनु. पर्व. 41.18 2

भार्यायां जनितं पुत्रमादर्शेष्विव चाननम् । हादते जनिता प्रेक्ष्य स्वर्गं प्राप्येव पुण्यकृत् ।।- महा. भा. आदि पर्व 74.49 है।



इस सन्दर्भ में शान्तिपर्व में प्रजापति मनु द्वारा आत्मा तथा परमात्मा के साक्षात्कार का विवेचन महर्षि बृहस्पति के समक्ष किया गया है, जिसके अनुसार जिस प्रकार मनुष्य स्वच्छ और स्थिर जल के नेत्रों द्वारा अपना प्रतिबिम्ब देखता है उसी प्रकार मनसहित इन्द्रियों के शुद्ध तथा स्थिर हो जाने पर वह ज्ञान दृष्टि से ज्ञेय स्वरूप आत्मा का साक्षात्कार कर सकता है। वही मनुष्य हिलते हुए जल में अपना रूप नहीं देख पाता है, उसी प्रकार मन सहित इन्द्रियों के चचल होने पर बुद्धि में ज्ञेय स्वरूप आत्मा का दर्शन नहीं कर सकता। इस वर्णन में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि स्थिर जल में ही मनुष्य का प्रतिबिम्ब दिखता है परन्तु हिलते हुए जल में ऐसा सम्भव नहीं। यहाँ स्वच्छ तथा स्थिर जल दर्पण के समान है। जब तक दर्पण स्थिर है तब तक प्रतिबिम्ब साफ-साफ दिखता है, परन्तु यदि दर्पण को हिलाते रहा जाय तो प्रतिबिम्ब साफ नहीं दिखता। अतः इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि दर्पण की समस्त विशेषताओं का ज्ञान महाभारतकालीन लोगों को था। 


प्रतिबिम्बमिवादर्श गुरूपत्न्याः शरीरगम् । स तं धोरेण तपसा युक्तं दृष्टा पुरन्दरः ।। प्रावेपत सुरांत्रस्तः शापभीतस्तदा विभो ।- महा. भा. अनु. पर्व. 41.18 2

भार्यायां जनितं पुत्रमादर्शेष्विव चाननम् । हादते जनिता प्रेक्ष्य स्वर्गं प्राप्येव पुण्यकृत् ।।- महा. भा. आदि पर्व 74.49 है।



इस सन्दर्भ में शान्तिपर्व में प्रजापति मनु द्वारा आत्मा तथा परमात्मा के साक्षात्कार का विवेचन महर्षि बृहस्पति के समक्ष किया गया है, जिसके अनुसार जिस प्रकार मनुष्य स्वच्छ और स्थिर जल के नेत्रों द्वारा अपना प्रतिबिम्ब देखता है उसी प्रकार मनसहित इन्द्रियों के शुद्ध तथा स्थिर हो जाने पर वह ज्ञान दृष्टि से ज्ञेय स्वरूप आत्मा का साक्षात्कार कर सकता है। वही मनुष्य हिलते हुए जल में अपना रूप नहीं देख पाता है, उसी प्रकार मन सहित इन्द्रियों के चचल होने पर बुद्धि में ज्ञेय स्वरूप आत्मा का दर्शन नहीं कर सकता। इस वर्णन में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि स्थिर जल में ही मनुष्य का प्रतिबिम्ब दिखता है परन्तु हिलते हुए जल में ऐसा सम्भव नहीं। यहाँ स्वच्छ तथा स्थिर जल दर्पण के समान है। जब तक दर्पण स्थिर है तब तक प्रतिबिम्ब साफ-साफ दिखता है, परन्तु यदि दर्पण को हिलाते रहा जाय तो प्रतिबिम्ब साफ नहीं दिखता। अतः इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि दर्पण की समस्त विशेषताओं का ज्ञान महाभारतकालीन लोगों को था।



प्रतिबिम्ब (Image) – 

वस्तु के किसी बिन्दु से दो या दो से अधिक प्रकाश की किरणें चलकर परावर्तन या अपवर्तन के पश्चात् जिस बिन्दु पर जाकर मिलती हैं, या मिलती हुई प्रतीत होती हैं, तो वह बिन्दु पहले बिन्दु का प्रतिबिम्ब कहलाता है। किसी वस्तु के विभिन्न बिन्दुओं के प्रतिबिम्बों को मिलाने पर उस वस्तु का प्रतिबिम्ब' बन जाता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में शिव के सहस्रनास्तोत्र में से एक नाम 'दर्पण' बताया गया है। क्योंकि जिस तरह दर्पण स्वच्छ तथा उपयोगी है, उसी प्रकार शिव भी स्वच्छ तथा सभी लोगों के लिए हितकारी है,


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