महाभारत में भौतिक विज्ञान, महाभारत के अनुसार विज्ञान और पदार्थ की परिभाषा, mahabharat physics science
आधुनिक युग का मानव प्रगतिशील हैं वह दिन-प्रतिदिन विकास के नये-नये स्रोतों की ओर अग्रसर है। इन सभी विकास के आयामों में भौतिक विज्ञान (Physics) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस विज्ञान के द्वारा अनेक जीवनोपयोगी वस्तुओं का निर्माण किया गया है, यथा-रेडियो (Radio), दूरदर्शन (Television), गणना करने का यन्त्र (Calculator), विद्युत् यन्त्र (Electric-Ingine) विमान (Aeroplane) आदि। इस विज्ञान के द्वारा चिकित्सा, दूरसंचार तथा युद्ध आदि के क्षेत्र में अनेक अविष्कार किए गए हैं, यथा-लेसर किरणों द्वारा उपचार, सङ्गणक (Computer), परमाणु बम (Atom Bomb) आदि। इस प्रकार दैनिक जीवन में भौतिक विज्ञान का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है। mahabharat physics science
भौतिक विज्ञान सामान्य परिचय
भौतिक विज्ञान (Physics), विज्ञान (Science) की शाखा है जिसमें ऊर्जा की विभिन्न स्वरूपों तथा द्रव्य से उसकी अन्योन्य क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।" विज्ञान की इस शाखा के द्वारा विकास के नये आयाम खुले हैं। आज समस्त विश्व नये-नये अविष्कार करके अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहा है। भौतिक विज्ञान की परिभाषा देते हुए में वर्णन मिलता है- भौतिक विज्ञान का विस्तृत अध्ययन करने के लिए इसे निम्नलिखित क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है
पदार्थ (Matter)- इसमें पदार्थ की तीनों अवस्थाओं (ठोस, द्रव, गैस) से निर्मित वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है।
बल (Force) इसमें गुरूत्वाकर्षण बल, उत्प्लावन बल आदि का अध्ययन किया जाता है।
प्रकाश (Light)- इसमें प्रकाश से सम्बन्धित घटनाओं जैसे- मरीचिका विक्षेपणादि का अध्ययन किया जाता है।
चुम्बकत्त्व (Magnetism)- इसमें चुम्बककीय शक्ति का अध्ययन किया जाता है।
गति (Motion)- इसमें गति के नियमों का अध्ययन किया जाता है।
ऊष्मा (Heat)- इसमें विद्युत् ऊर्जा का अध्ययन किया जाता है।
विद्युत् (Electricity) - इसमें विद्युत् की उत्पत्ति तथा प्रयोग का अध्ययन किया जाता है।
ध्वनि (Sound)- इसमें ध्वनि की उत्पत्ति, प्रकार आदि का अध्ययन किया जाता है।
महाभारत के अनुसार विज्ञान और पदार्थ की परिभाषा। भौतिक विज्ञान
प्राचीन भारतीय साहित्य में अमूल्य रत्नों का भण्डार है। इनमें ज्ञान-विज्ञान के गूढ रहस्य छिपे हुए हैं। प्राचीन कालीन विद्वानों तथा मन्त्रद्रष्टा ऋषियों ने अपने प्रज्ञाचक्षुओं के द्वारा ज्ञान के अपरिमित भण्डार को अलोकित किया है। अतः प्राचीन ग्रन्थों में भौतिक, रसायन, वनस्पति, गणित, भूगर्भ आदि विज्ञानों से सम्बद्ध विविध विषयों का उल्लेख मिलता है। यथा- अश्व -शक्ति का द्योतक है इस सन्दर्भ में ऋग्वेद में वर्णन मिलता है।' पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण शक्ति के विषय में प्रश्नोपनिषद में वर्णन मिलता है। इसी प्रकार प्राचीन परम्परा का अनुसरण करते हुए महर्षि व्यास ने महाभारत कालीन विज्ञान के महनीय तत्त्वों का उल्लेख महाभारत में किया है।
महाभारत तथा पदार्थ Matter,
प्रत्येक मनुष्य के आस-पास के वातावरण में विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ पायी जाती हैं। ये वस्तुएँ पदार्थों से मिलकर बनी होती हैं जैसे-बाल्टी, प्लास्टिक और लोहे से बनी होती है, कुदाल-हथौड़ी लोहे तथा लकड़ी से बनी होती हैं, पुस्तक कागज से बनी होती हैं आदि। अतः इससे स्पष्ट होता है कि कोई वस्तु एक ही पदार्थ से बनी हो अथवा एक ही वस्तु कई पदार्थों से बनी हो सकती है।
संसार में प्रत्येक वस्तु जिस सामग्री से बनी होती है, उसे 'पदार्थ' कहते हैं। हवा, पानी, रेत का एक कण भी पदार्थ के उदाहरण हैं। इन सभी पदार्थों का कुछ द्रव्यमान होता है और ये कुछ स्थान घेरते हैं। पदार्थ को 'द्रव्य' भी कहा जाता है। विश्व में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं जो पदार्थ से न बनी हो यहाँ तक कि सूर्य, चन्द्रमा, हवा पानी आदि सभी पदार्थ के ही उदाहरण हैं।
अंग्रेज वैज्ञानिक डॉल्टन के अनुसार सभी पदार्थ छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने हैं। इन सूक्ष्म कणों को परमाणु कहते हैं। परमाणु अविभाज्य है अर्थात इनको तोड़ा नहीं जा सकता। पदार्थ की तीन अवस्थाओं का स्वरूप बताते हुए डॉल्टन ने कहा है
आ द्वाभ्यां हरिभ्यामिन्द्र या हया चतुर्भिराषङिभर्खमानः | अष्टाभिर्दशाभिः सोमपेयमयं सुतः सुमख मा मृधस्कः ।। ऋ.वे. 2.10.4 2
आदित्यो ह वै ब्रह्म प्राण उदयत्येष ह्येनं चाक्षुष प्राणमनुरक्षनः । पृथिव्या या देवता सैषा पुरूषस्य अपानमवष्टभ्यान्तरा यदाकाशः स समानो वायुया॑नः । - प्रश्नोप. 3.8
(1) जब परमाणुओं के मध्य आकर्षण बल बहुत अधिक होता है तब ठोस की रचना होती है। अतः ठोस का आकार निश्चित होता है।
(2) जब परमाणुओं के मध्य आकर्षण बहुत अधिक नहीं होता तथा वे इधर-उधर गति कर सकते हैं। इस स्थिति में द्रव की रचना होती है।
(3) तब परमाणु स्वतंत्रतापूर्वक गति करते हैं तब इस स्थिति में गैस की रचना होती है।
ठोस को गर्म करने पर द्रव्य का रूप उपस्थित हो जाता है इसे पिघलना (Melting) कहते हैं। जैसे-बर्फ का पानी में बदलना। द्रव को गर्म करने पर गैस की अवस्था में आना वाष्पन (Evaporation) कहलाता है, जैसे-द्रव का उबल कर गैस बनना।
इस वर्णन से यह समझा जा सकता है कि पदार्थ की तीन अवस्थाएँ ठोस, द्रव तथा गैस हैं। ये सभी अवस्थाएँ सूक्ष्म कणों (परमाणुओं) के आकर्षण पर निर्भर करती हैं।
प्राचीन वैदिक युग में ऋषि, मुनि, प्रकृति तथा प्राकृतिक घटनाओं का प्रेक्षण करते थे और ध्यान से समाधिस्थ अवस्था में मनन तथा चिंतन द्वारा समझने का प्रयास करते थे। यह उनका सैद्धान्तिक तरीका था। जिसके आधार पर वह नये प्रेक्षण करके नई जानकारी प्राप्त करते थे। इन महत्त्वपूर्ण जानकारियों का उल्लेख प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में मिलता है। वेद, वेदाङ्गों, पुराणों तथा षड्दर्शनों आदि में भौतिक विज्ञान पर प्रकाश डाला गया है जो कि जड़, चेतन तथा जगत् के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित है।
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत में भी भौतिक विज्ञान के तत्त्वों का अनेक स्थानों पर वर्णन किया है। महाभारत के शान्ति पर्व में राजा जनक तथा महर्षि वसिष्ठ का संवाद मिलता है। इस संवाद में क्षर-अक्षर तथा प्रकृति-पुरूष के विषय में राजा जनक की शङ्का का समाधान महर्षि वसिष्ठ द्वारा किया गया है। इस सन्दर्भ में
महर्षि वसिष्ठ द्वारा द्रव्य का उदाहरण देते हुए कथन है कि – जिस प्रकार बीज से बीज की उत्पत्ति होती है उसी प्रकार द्रव्य से द्रव्य, इन्द्रिय से इन्द्रिय तथा देह से देह की प्राप्ति होती है।' इस वर्णन में महर्षि वसिष्ठ ने यह बतलाया है कि द्रव्य से द्रव्य की उत्पत्ति होती है अर्थात् पदार्थ से ही पदार्थ की प्राप्ति होती है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि महाभारत काल में पदार्थ के गुणों का ज्ञान महर्षियो को भली-भाँति था।
ऐद्रियकं धातु सप्तकं बीजद्वीजांतर मिवाजायते न्ह्येकं कार्य बीज द्वयोत्पत्तिकमिति दृष्टमस्तीव्याशयवानाह द्रव्यादिति।
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