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भगवान शिव के अनुसार पदार्थ क्या है? महाभारत के अनुसार पदार्थ विज्ञान - भगवान शिव ने ब्राह्मण रूप धारण करके महर्षि मङ्कणक के भ्रम को दूर किया

भगवान शिव के अनुसार पदार्थ क्या है? महाभारत के अनुसार पदार्थ विज्ञान भाग २,


महाभारत के शल्य पर्व में वैशम्पायन ने राजा जनमेजय से मङ्कणक मुनि का का चरित्र बताया है जिसके अनुसार भगवान शिव ने ब्राह्मण रूप धारण करके महर्षि मङ्कणक के भ्रम को दूर किया जिसके फलस्वरूप महर्षि मङ्कणक ने भगवान शिव की स्तुति करते हुए कहा है कि सम्पूर्ण देवता भी आपको यथार्थ रूप से नही जान सकते, फिर मैं कैसे जान सकूगाँ? संसार में जो-जो पदार्थ स्थित हैं वे सब आप में देखे जाते हैं। इस वर्णन में यह कहा जा सकता है कि ईश्वर (भगवान शिव) संसार के सभी पदार्थों में विद्यमान हैं। इससे प्रतीत होता है कि ईश्वर सम्पूर्ण पदार्थों में स्थित है जोकि तीन रूपों में पाया जाता है जैसे-ठोस, द्रव तथा गैस । इस पृथ्वी पर पदार्थ के विषय में प्राचीन काल से ही वैज्ञानिकों ने बहुत सी विचारधाराएँ व्यक्त की हैं।


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अतः महर्षि व्यास ने महर्षि वसिष्ठ के वचनों द्वारा भगवान शिव के संसार के सभी कणों में स्थित होने की बात कहकर अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण का ही उल्लेख


द्रव्याद् द्रव्यस्य निर्वृत्तिरिन्द्रियादिन्द्रियं तथा। देहाद् देहमवाप्नोति बीजाद् बीजं तथैव च || - महा. भा. शान्ति पर्व. 305.21 2 महा. भा. शान्ति पर्व. 305.21.

देवैरपि न शक्यत्त्व परिज्ञातुं कुतोमया। त्वयि सर्वेस्म दृश्यन्ते भावा ये जगति स्थिताः । - महा. भा. शल्य पर्व. 38.52



किया है इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि समस्त पदार्थों (ठोस, द्रव, गैस) में ईश्वर का वास होता है।महाभारत के शान्तिपर्व में व्यासमुनि ने अपने पुत्र शुकदेव को वैराग्य और धर्मपूर्ण उपदेश देते हुए सावधान किया है। इसी सन्दर्भ में महर्षि व्यास ने शुकदेव से कहा है - "दिन सब पदार्थों को प्रकाशित करता है और रात्रि उन्हें छिपा लेती है। ये सर्वत्र व्याप्त है और सभी वस्तुओं का स्पर्श करते हैं, अतः तुम इनकी वेला में सर्वदा अपने धर्म का ही पालन करो।' इस वर्णन में यह स्पष्ट कहा गया है कि दिन सभी पदार्थों को प्रकाशित करता है और रात्रि उन्हें छिपा लेती है। अर्थात् दिन के प्रकाश में पृथ्वी पर उपस्थित सभी पदार्थ (ठोस-द्रव-गैस) दृष्टिगोचर होते हैं। तथा रात्रि में सभी पदार्थ प्रकाश की अनुपस्थिति में दिखाई नहीं देते हैं। अतः यह प्रतीत होता है कि महाभारत काल में पदार्थ से जुड़े रहस्यों का ज्ञान सर्वत्र प्रचलित था। आधुनिक वैज्ञानिकों का यह मानना है कि समस्त पदार्थ सूर्य की रोशनी में भलीभाँति दिखाई देते हैं। इस तथ्य से महाभारत कालीन विद्वान् भी परिचित थे। अतः महर्षि व्यास ने उद्योगपर्व में सूर्य को पदार्थों का अधिपति तथा संरक्षक बताया है। इस सन्दर्भ में उद्योगपर्व में दुर्योधन द्वारा सेनापति के पद पर भीष्म पितामह की नियुक्ति के विषय में कथन है कि "जिस प्रकार किरणों वाले तेजस्वी पदार्थों के सूर्य, वृक्ष और औषधियों के चन्द्रमा, यक्षों के कुबेर, देवताओं के इन्द्र, पर्वतों के मेरू, पक्षियों के गरूड़, समस्त देवयोनियों के कार्तिकेय और वस्तुओं के अग्निदेव अधिपति तथा संरक्षक हैं (उसी प्रकार आप आप हमारी समस्त सेनाओं के अधिनायक और संरक्षक हो)।



अहर्निशेषु सर्वतः स्पृशत्सु सर्वचारिषु । प्रकाशगूढ़वृत्तिषु स्वधर्ममेव पालय ।।महा.भा.शान्तिपर्व. 321.56 2

रश्मिवतामिवादित्यो वीरूधामिव चन्द्रमाः । कुबेर इव यक्षाणां देवानामिव वासवः ।। पर्वतानां यथा मेरूः सुपर्णः पक्षिणां यथा। कुमार इव देवानां वसूनामिव हव्यवाट् ।। - महा. भा. उद्यो. पर्व 156.12-13




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इस वर्णन से प्रतीत होता है कि समस्त पदार्थों के संरक्षक सूर्य हैं। अर्थात् सम्पूर्ण संसार में जो-जो पदार्थ उपस्थित हैं उन सभी पदार्थों के अधिपति तथा संरक्षक सूर्य हैं क्योंकि समस्त पदार्थ सूर्य के प्रकाश में ही स्पष्ट दिखाई देते हैं।विज्ञान के ज्ञाताओं के अनुसार पदार्थ को 'द्रव्य' भी कहा गया है। महर्षि व्यास ने महाभारत में भी पदार्थ को द्रव्य नाम से सम्बोधित किया है। महाभारत के आदि पर्व में ज्वलनशील द्रव्यों का वर्णन मिलता है। इस सन्दर्भ में दुर्योधन द्वारा लाक्षागृह के निर्माण हेतु पुरोचन को आदेश देते हुए कथन है कि “सन तथा राल आदि, जो कोई भी आग भड़काने वाले द्रव्य संसार में हैं, उन सबको उस मकान की दीवारों में लगवाना। इस वर्णन में दुर्योधन ने ज्वलनशील द्रव्यों के उपयोग करने का आदेश पुरोचन को दिया है इससे यह प्रतीत होता है कि दुर्योधन को पदार्थ के गुणों तथा अवस्थाओं का भली-भाँति ज्ञान था क्योंकि उसने पुरोचन को संसार में पाई जाने वाले समस्त ज्वलनशील पदार्थों (सन, राल, घी, तेल, चर्बी आदि) का प्रयोग करने का आदेश दिया था।



यहाँ महर्षि व्यास ने पदार्थ को 'द्रव्य' नाम से सम्बोधित किया है। महाभारत में महर्षि व्यास ने अनेक स्थानों पर द्रव्यों (पदार्थों) का उल्लेख किया है। उस काल में राजभवनों, सभाओं आदि का निर्माण विभिन्न द्रव्यों से किया जाता था। महाभारत के सभा पर्व में नारद मुनि से ब्रह्माजी की सभा के विषय में प्रश्न करते हुए युधिष्ठिर का कथन है कि "ब्रह्मन् उन सभाओं का निर्माण किस द्रव्य से हुआ है। उनकी लम्बाई-चौड़ाई कितनी है ? ब्रह्माजी की उस दिव्य सभा में कौन-कौन सभासद उन्हें चारों ओर से घेरकर बैठते हैं ? इस वर्णन में विशेष द्रव्यों (पदार्थों) से निर्मित ब्रह्मा की सभा के विषय में युधिष्ठिर नारद मुनि से प्रश्न करते हैं। यहाँ ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि


शणसर्जरसादीनि यानि द्रव्याणि कानिचित् ।

आग्नेयान्युत सन्तीह तानि तत्र प्रदापय || - महा. भा. आदि पर्व 143.9 2

किंद्रव्यास्ताः सभाः ब्रह्मन् किं विस्ताराः किमायताः । पितामहं च के तस्यां सभायां पर्युपासते।।। - महा. भा. सभा पर्व 6.16

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उस सभा के निर्माण में अनेक पदार्थ जैसे – लोहा, लकड़ी, सोना आदि प्रयोग किए गए होंगे। आधुनिक वैज्ञानिकों ने पदार्थ को तीन भागों में बाँटा है – ठोस, द्रव, गैस । परन्तु महाभारत में पदार्थों के मात्र दो भाग बताए गए हैं - शीत और उष्ण । महाभारत के अनुशासन पर्व में श्री महेश्वर द्वारा उमा से पदार्थों के दो भागों का वर्णन करते हुए कथन है कि "जगत् के सारे पदार्थ दो भागों में विभक्त हैं – 


शीत और उष्ण (अग्नि और सोम)। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि महाभारत काल में पदार्थ को भागों में बाँटा गया था – अग्नि और सोम परन्तु आधुनिक वैज्ञानिकों ने इसे तीन भागों में ही बाँटा है। महाभारत में उपलब्ध पदार्थों का उल्लेख निराधार नहीं है वरन् वैदिक काल में भी पदार्थों के रहस्यों का गूढ़ ज्ञान महर्षियों, मुनियों आदि को था। इस सन्दर्भ में ऋग्वेद में पदार्थ विद्या का उल्लेख विस्तृत रूप में मिलता है।


यथा -

आपो भूयिष्ठा इत्येको अब्रवीग्निभूपिष्ठ इत्यन्यो अब्रवीत्। वधर्यन्ती बहुभ्यः प्रैको अब्रवीदृता वदन्तश्चमसां अपिंशत।।'

ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में पदार्थों के गुणों का उल्लेख किया गया है यथा


ये चिद्धि त्वामृषयः पूर्व ऊतये जुहूरेड वसे महि। सा नः स्तोमा अभि गृणीहि राधसोषः शुक्रेण शोचिषो।।


इस मन्त्रानुसार उषा अपने प्रकाश से समस्त पदार्थों को प्रकाशित करती हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि दिन में समस्त पदार्थ (ठोस-द्रव-गैस) आदि दृष्टिगत होते हैं परन्तु रात्रि में प्रकाश के अभाव में इन्हें देखना असम्भव है। इसलिए ऐसा



तदहं कथयिष्यामि श्रृणु तत्वं समाहिता। द्विविधो लौकिको भावः शीतमुष्णमिति प्रिये ।। - महा. भा. अनु. पर्व , - ऋ.वे. 1.16.9 3 ऋ. वे. 1.48.14 102


प्रतीत होता है कि पदार्थों के इन गुणों से प्राचीन वैदिक ऋषि भी अवगत थे। महाभारत के रचनाकार ने भी वेदों को आधार मानकर ही सर्वत्र पदार्थों का उल्लेख किया है। इस सन्दर्भ में 'तैत्तिरीय उपनिषद में पदार्थ का वर्णन मिलता है, यथा- PHYSICS Origin Of Matter,


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