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शिव महापुराण का मूल मंत्र ! शिव महापुराण प्रथम अध्याय - शक्तित्रय परमात्म-शिव के त्रिनेत्र एवं त्रिशूल

शिव महापुराण प्रथम दिवस परमात्म-शिव की शक्ति परमात्म-शिव की परा शक्ति स्वाभाविकी एवं विश्वविलक्षणा है। 


यह एक होते हुए भी भानु की प्रभा की भाँति अनेक रूपों से प्रकाशित होती है २२ । वह्नि से विस्फुलिङ्ग की भाँति इससे विविध शक्तियाँ प्रादुर्भूत होती हैं। यह इच्छा, ज्ञान एवं क्रियारूपा है२३ । यह इस प्रकार हो और यह इस प्रकार न हो-इस प्रकार कार्यों का नियमन करने वाली शक्ति इच्छा शक्ति कही जाती है२४ । बुद्धिरूप होकर कार्य, करण, कारण और प्रयोजन का ठीक ठीक निश्चय करने वाली शक्ति ज्ञानशक्ति कही जाती है२५ । यह सामर्शात्मक होती है। संकल्परूपिणी परमात्मनशिव की इच्छा और निश्चय के अनुसार कार्यरूप सम्पूर्ण जगत् को क्षण भर में कल्पनाकर देने वाली शक्ति क्रियाशक्ति कही गई है२६ । इस प्रकार एक परा शक्ति ही त्रिधा अभिव्यक्त होती है ! २१. 

शिव-महापुराण-का-मूल-मंत्र


षट्कोशरूपः पिण्डो हि तत्र चाद्यत्रयं भवेत् । मात्रंशजं पुनश्चान्यत् पित्रंशजमिति श्रुतिः ॥ शिव० ६, १६, २३ । २२.
शक्तिः स्वभाविकी तस्य विद्या विश्वविलक्षणा। एकानेकस्य रूपेण भाति भानोरिव प्रभा ॥ वही, ७, २, ७, १ २३. 
एतामेव परां शक्तिं श्वेताश्वतरशाखिनः । स्वभाविकी ज्ञानबलक्रियाचेत्यस्तुवन्मुदा ॥ वही, ६, १६, ४८-४९ ।
परास्य शक्तिविविधैव श्रूयते स्वाभाविको ज्ञानबलक्रिया च । श्वेता. उप०६,८।


टिप्पणी:--कार्यों का नियमन करने के कारण इच्छा शक्ति को 'बल' भी कहते हैं।
क्योंकि नियमन 'बल' (शक्ति) से ही सम्भव है। २४. 



इदमित्थमिदं नेत्थं भवेदित्येवमात्मिका । इच्छाशक्तिर्महेशस्य नित्या कार्य नियामिका ।। वही, ७, २, ४, ३२ । २५. 
ज्ञानशक्तिस्तु तत्कायं करणं कारणं तथा । प्रयोजनं च तत्त्वेन बुद्धिरूपाध्यवस्यति ।। वही, ७, २, ४, ३३ । २६. 
यथेप्सितं क्रियाशक्तिर्यथाध्यवसितं जगत् । कल्पयत्यखिलं कार्य क्षणात् संकल्परूपिणी ॥ वही, ७, २, ४, ३४ । २७. 
तथा शक्तित्रयोत्स्थानं शक्तिः प्रसमिणी ॥ वही, ७, २, ४, ३५ ।
तुलना कोजिए


प्रथम अध्याय


शक्तित्रय परमात्म-शिव के त्रिनेत्र एवं त्रिशूल का आधार परमात्म-शिव की इस स्वाभाविकी शक्ति को विद्या एवं महामाया आदि अनेक नामों से कहा जाता है। इच्छा, ज्ञान एवं क्रिया ये तीन शक्तियाँ पुराणों में शम्भु के तीन नेत्रों के रूप में कल्पित की गई हैं । वस्तुतः उनके त्रिशूल का आधार यह तीन शक्तियाँ ही हैं। परमात्म-शिव की ही भाँति अमनोगोचर तथा तत्त्वातीत होने के कारण यह शक्ति मनोन्मनी नाम से भी कही जाती है। इसको स्थिति परमात्म-शिव के वामभाग में बतलाई गई है । लोक में अर्द्धना-रीश्वर रूप की कल्पना में परमात्म-शिव का यह शक्तिमान् रूप ही कारण है। परमात्म-शिव की पञ्चविध शक्तियां परमात्म-शिव का प्रत्येक रूप शक्तिरूप से ही कल्पित है। यही कारण है परमात्म-शिव का सर्वकर्ता, सर्वज्ञ, पूर्ण, नित्य एवं व्यापक स्वरूप उनकी पंचविध शक्तियों के रूप में कल्पित किया गया है। ये पंचविध शक्तियां परा शक्ति के ही परिणाम हैं। इस प्रकार सर्वकर्तृत्वरूपा, सर्वज्ञत्व-स्वरूपिणी पूर्णत्वरूपा, नित्यत्व एवं व्यापकत्व स्वरूपिणी* *परमात्म-शिव की पंचविध शक्तियां हो जाती हैं। परमात्म-शिव के पश्चकृत्य पारमात्म-शिव के पंचविध जागतिक कृत्य बतलाये गये हैं ।


सृष्टि पालन संहार, तिरोभाव और अनुग्रह । इनकी व्याख्या इस प्रकार की गई है, 


१. सृष्टि :-संसार की रचना का जो प्रारम्भ है, उसी को सर्ग अथवा सृष्टि कहते हैं।

२. स्थिति अथवा पालन:-शिव से पालित होकर सृष्टि का सूस्थिर रूप से है,

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