काल क्या है? काष्ठा, कला, मूहूर्त, दिन, रात, लव, मास, पक्ष, छः ऋतुएं, संवत्सर और कल्प क्या है?
महर्षि वेदव्यास ने शान्ति पर्व में भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के संवाद में काल का उल्लेख किया है। इस सन्दर्भ में भीष्म द्वारा दूरदर्शी, तत्कालज्ञ और दीर्घसूत्री-इन तीन मत्स्यों का दृष्टान्त देते हुए काल को परिभाषित किया गया है, जिसके अनुसार काष्ठा, कला, मूहूर्त, दिन, रात, लव, मास, पक्ष, छः ऋतुएं, संवत्सर और कल्प इन्हें 'काल' कहा जाता है तथा पृथ्वी को देश कहा जाता है। इनमें से पृथ्वी का तो दर्शन होता है किन्तु काल दिखायी नहीं देता है। अतः अभीष्ट मनोरथ की सिद्धि के लिए जिस देश और काल को उपयोगी मानकर उसका विचार किया जाता है, उसको ठीक-ठीक ग्रहण करना चाहिए। मनुष्यों में काल को ही कार्य-सिद्ध हेतु देश और काल को प्रधान माना गया है तथा धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और मोक्षशास्त्र में भी इन देश और काल को कार्य सिद्धि का प्रधान उपाय माना
काङ्क्षमाणाः श्रियं कृत्स्नां पृथिव्यां च महद् यशः । कृतान्तविधिसंयुक्ताः कालेन निधनं गताः ।। कर्मसूत्रात्मकं विद्धि साक्षिणं शुभपापयोः । सुख दुःखगुणोदकं कालं कालफलप्रदम् ।। महा. भा. शान्ति पर्व 33.15-19 2
गया है। अतः जो मनुष्य सोच-विचार कर तथा सतत् सावधान होकर, अपने अभीष्ट देश और काल का ठीक-ठीक उपयोग करता है, वह उनके सहयोग से इच्छित फल प्राप्त कर लेता है। इस वर्णन से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि महाभारत काल में काल के महत्व और उसके उचित उपयोग से सभी भली-भांति परिचित थे।
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत के शान्ति पर्व में काल गणना हेतु सूक्ष्म माप का वर्णन किया है। इस पर्व मेंमहर्षि व्यास द्वारा अपने पुत्र शुकदेव को काल के विभाग को समझाते हुए कथन हैं -
काष्ठा निमेषा दशपञ्च चैव
त्रिंशत्रु काष्ठा गणयेत् कलांताम्। त्रिंशत्कालश्चापि भवेन्मूहूर्ता
भागः कलाया दशमश्चयः स्यात्।। त्रिंशन्मूहूर्त तु भवेदहश्च
रात्रिश्च संख्या मुनिभिः प्रणीता। मासः स्मृतोरात्र्यहनीच त्रिंशत्
संवत्सरो द्वादशमास उक्तः ।।
अर्थात् पंद्रह निमेष की एक काष्ठा और तीस काष्ठा की एक कला गिननी चाहिए। तीस कला का एक मूहूर्त होता है। उसके साथ कला का दसवां भाग और सम्मिलित होता है अर्थात् तीस कला और तीन काष्ठा का एक मूहूर्त होता है।
तीस
काष्ठाः कला मूहूर्ताश्च दिवा रात्रिस्तथा लवाः । मासाः पक्षाः षड्ऋतृवः कल्पः संवत्सरास्तथा।। परीक्ष्यकारी युक्तश्च स सम्यगुपपादयेत् । देशकालवीभप्रेतौ ताभ्यां फलमवाप्नुयात् ।।
महा. भा. शान्ति. पर्व. 137.21-24 2 महा. भा. शान्ति पर्व. 231.12-13,
मूहूर्त का एक दिन-रात होता है। महर्षियों ने दिन और रात्रि के मूहूर्तों की संख्या उतनी ही बतायी है। तीस रात-दिन का एक मास और बारह मासों का एक संवत्सर बताया गया है। इस वर्णन के अनुसार व्यास ऋषि ने गणना करते हुए कहा है -
1 काष्ठा 15 निमेष 30 काष्ठा 303 कला 30 मूहूर्त 30 दिन
1 कला 1 मूहूर्त 1 दिन
1 मास 1 संवत्सर (वर्ष)
12 मास
यहां महाभारतकार ने काल की सामान्य इकाई (माप) बतायी है। इस काल का सूक्ष्मतम अंश परमाणु तथा महत्तम अंश ब्रह्म आयु माना गया है। इसे विस्तृत रूप में बताते हुए शुकमुनि उसके विभिन्न मापों का उल्लेख करते हैं यथा -
2 परमाणु 3 अणु 3 त्रसरेणु 100 त्रुटि 3 वेध
1 अणु - 1 त्रसरेणु - 1 त्रुटि - 1 वेध - 1 लव - 1 निमेष - 1क्षण - 1 काष्ठा - 1 लघु
15 लघु -
2 नाड़िका 30 मूहूर्त 7 दिन रात - 2 सप्ताह
1 नाड़िका 1 मूहूर्त 1 दिन रात 1 सप्ताह
1 पक्ष
2 पक्ष
1 मास
2 मास
1 ऋतु
3 लव 3 निमेष 5 क्षण 15 काष्ठा
ऋतु
1 अयन
2 अयन
1 वर्ष
शुकमुनि की उपर्युक्त गणना के अनुसार एक दिन रात में 3280500000 परमाणु काल होता है तथा एक दिन रात में 86400 सेकेण्ड होते हैं। इसका अर्थ है सूक्ष्मतम माप अर्थात् -
1 परमाणु काल = 1 सेकेण्ड का 37968वां हिस्सा।
प्राचीन भारत में काल विभाजन अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ किया गया था। ई. स. 1564-1642 में 'गैलिलियो द्वारा पहली बार समय का विभाजन 'सेकेण्ड' के रूप में किया गया ऐसा पाश्चात्य विद्वानों का अभिप्राय है, किन्तु महर्षि वेदव्यास ने महाभारत में सेकण्ड का भी विभाजन कर व्यक्त किया है।
प्राचीन काल में अमरकोष, विष्णुपुराण, मनुस्मृति आदि ग्रन्थों में भी समय की गणना दिखाई देती है। यथा –नीचे निम्नवत् तालिका है -
1/4 निमेष = 1 त्रुटि 2 त्रुटि = 1 लव 2 लव = 1 निमेष 5 निमेष = 1 काष्ठा 10 काष्ठा = 1 कला 40 कला = 1 नाडिका
2 नाडिका = 1 मूहूर्त 15 मूहूर्त = 1 अहोरात्र 7 अहोरात्र = 1 सप्ताह 15 अहोरात्र = 1 पक्ष
2 पक्ष
= 1 मास
12 मास
= 1 वर्ष
प्राचीनकाल में दिनों और मासों का नाम निश्चित करने के लिए भी चन्द्रमा की कलाओं ग्रहों और नक्षत्रों की गति पर आधारित पूर्णतया वैज्ञानिक पद्धति विकसित की गई थी। अतः यह जानकर आश्चर्य होता है कि काल का यह अतिसूक्ष्म ज्ञान कैसे सम्भव हो सका होगा ? वेदाङ्ग ज्योतिष तथा ज्योतिष के तत्कालीन अन्य शास्त्रीय ग्रन्थों के अतिरिक्त इसका उल्लेख कल्प सूत्र, निरूक्त, व्याकरण ग्रन्थों मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति तथा महाभारत में भी मिलता है।'
काल ज्योतिष के विद्वानों के अनुसार, काल को मापने हेतु बड़ी इकाईयों (जैसे – युग, चतुर्युग, कल्प, मन्वन्तर तथा छोटी इकाईयों (जैसे - लव, निमेष, मूहूर्त आदि) की आवश्यकता होती है।
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