महाभारत युग में काल गणना हेतु बड़ी इकाईयों का प्रयोग प्रचलित था। काल गणना कैसे करें, प्राचीन ज्योतिषविदों के अनुसार, विश्व के जीवनकाल को चार युगों में बांटा गया है,
यथा - कृत, त्रेता, द्वापर और कलियुग। आधुनिक समय में कलियुग चल रहा है। मनुस्मृति, पुराण और महाभारत के कथनानुसार यह माना जाता है कि कलियुग के अन्त में प्रलय होगा और तब नयी सृष्टि होगी। अतः प्रत्येक युग के आरम्भ में संध्या है और अन्त में सन्ध्यांश है। इस सन्दर्भ में वर्षों की संख्या निम्नलिखित हैं -
कृत
2000
युग वर्ष
युग
वर्ष संध्या 400
संध्या 200 (सतयुग)
मुख्य भाग 4000 द्वापर
मुख्य भाग संध्यांश400
संध्यांश200 त्रेता ( संध्या 300
संध्या 100 __ मुख्य भाग 3000 कलि
मुख्य भाग संध्यांश 300
संध्यांश100 चारों युग मिलकर = 1 दैवयुग = 12,000 वर्ष 1000 दैवयुग = ब्रह्मा का 1 दिन 1000 इस वर्णन में जिन वर्षों की संख्या दी गयी है वे मानव वर्ष नहीं हैं अपितु दैव वर्ष है तथा प्रत्येक दैव वर्ष 360 मानव वर्षों के बराबर होता है।
महाभारत के शान्ति पर्व में महर्षि व्यास तथा शुकदेव के मध्य चारों युगों के वर्ष आदि की काल गणना का विस्तृत उल्लेख किया गया है। इस सन्दर्भ में महर्षि व्यास का कथन है कि देवताओं के चार हजार वर्षों का एक कृत युग (सत्य युग) होता है। इस युग में चार सौ दिव्य वर्षों की संध्या तथा उतने ही वर्षों का एक संध्यांश भी होता है। संध्या और संध्यांशों सहित अन्य तीन युगों में यह संख्या क्रमशः एक-एक चौथाई घटती जाती है।' इस कथन को गणित के नियमानुसार निम्नलिखित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है -
देवताओं का सत्ययुग = 4000 वर्ष
400 दिव्य वर्ष (संध्या)
400 दिव्यवर्ष (संध्यांश) कुल सत्ययुग = 4800 वर्ष तथा क्रमानुसार प्रत्येक युग 1/4 वर्ष कम होता जाता है।
त्रेता युग = 4800 - 4800 x 1/4
4800 - 1200
3600 वर्ष द्वापर युग 3600-4800 x 1/4
3600 – 12000
2400 वर्ष कलियुग
2400 - 4800 x 1/4
2400 – 1200 = 1200 वर्ष
इस तरह, संध्या तथा संध्यांशों सहित सत्य युग 4800 वर्षों का, त्रेतायुग 3600 वर्षों का, द्वापर युग 2400 वर्षों का और कलियुग 1200 वर्षों का होता है तथा कुल मिलाकर चारों युग 12000 वर्षों का होता है। महर्षि वेदव्यास द्वारा पुनः शुकदेव के प्रति ब्रह्मा के दिन की काल गणना करते हुए कथन है कि देवताओं के बारह हजार वर्षों का एक चतुर्यग होता है, यह विद्वानों की मान्यता है। एक सहस्र चतुर्युग को ब्रह्मा का एक दिन बताया जाता है। इतने ही युगों की उनकी एक रात्रि भी होती है। भगवान ब्रह्मा अपने दिन के
ये ते रात्र्यहनी पूर्व कीर्तिते जीवलौकिके। तयोः संख्याय वर्षाग्रं ब्राह्मे वक्ष्याम्यहःक्षपे।।
इतरेषु ससंध्येषु संध्यांशेषु ततस्त्रिषु । एकपादेन हीयन्ते सहस्राणि शतानि च।।महा. भा. शान्ति पर्व 231.18-21
आरम्भ में संसार की सृष्टि करते हैं और रात में जब प्रलय का समय होता है, तब सबको अपने में लीन करके योगनिद्रा का आश्रय ले सो जाते हैं, फिर प्रलय का अन्त होने अर्थात् रात बीतने पर वे जाग उठते हैं। एक हजार चतुर्युग का जो ब्रह्मा का एक दिन बताया गया है और उतनी ही बड़ी जो उनकी रात्रि कही गयी है, उसको जो लोग ठीक-ठीक जानते हैं वे ही दिन और रात अर्थात् काल तत्त्व को जानने वाले हैं।' इस वर्णन के अनुसार, व्यास ऋषि का कथन है कि
12000 वर्ष 1000 चतुर्युग 1000 चतुर्युग, 1 चतुर्युग 1 दिन (ब्रह्मा का) 1 रात्रि (ब्रह्मा की) यहां भी वर्ष का तात्पर्य मानव वर्ष नहीं अपितु दैव वर्ष है। अतः इस कथन से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि महाभारत काल में काल ज्योतिष का गूढ़ ज्ञान प्रचलित था। महर्षि वेदव्यास ने महाभारत के आदि पर्व में पांच वर्षों के एक युग का उल्लेख किया है।
इस सन्दर्भ में पाण्डवों के जन्म के प्रसङ्ग में ऋषि वैशम्पायन द्वारा जनमेजय के प्रति कथन है कि एक-एक वर्ष के अन्तर से उत्पन्न हुए कुरूओं में श्रेष्ठ पाण्डु के वे पांचों पुत्र (युग के) पांच वर्षों के समान लगते थे।' इस वर्णन में पांचों पाण्डवों से पञ्च संवत्सरों की उपमा दी गयी है। इन पांचों वर्षों के युग की अपेक्षा बड़े युग की कल्पना महाभारत काल में पूर्ण हो गयी थी, इसमें संशय नहीं है।
एतां द्वादशसाहस्री युगाख्यां कषयो विदु: सहस्रपरिवर्तं तद् ब्राह्म दिवसमुच्यते।।
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदोजनाः ।। महा. भा. शान्ति पर्व 231.29-31
अनुसंवत्सरं जाता अपि ये कुरुसत्तमाः ।। पाण्डुपुत्रा व्यराजन्त पञ्च संवत्सरा इव।। महा. भा. आदि पर्व. 123.22 3 भा. ज्यो. इति. पृ. 71
महाभारतकार ने महाभारत में कहीं-कहीं चतुर्युग को सिर्फ युग कहा है। इस सन्दर्भ में महाभारत के वन पर्व में महर्षि मार्कण्डेय द्वारा चारों युगों की वर्ष–संख्या का वर्णन करते हुए युधिष्ठिर के प्रति कथन है कि बारह हजार दिव्य वर्षों का चतुर्युग होता है। यहां बारह सहस्रों की संज्ञा 'युग' है।
मनुस्मृति तथा अन्य ज्योतिष ग्रन्थों में भी यही गणना स्वीकार की गयी है। उनमें इतना और कह दिया गया है कि चतुर्युगों के बारह हजार वर्ष मानवी वर्ष नहीं है बल्कि देवताओं के वर्ष हैं। अर्थात्
मानवी एक वर्ष = देवताओं का एक दिन मानवी 360 वर्ष = देवताओं का एक वर्ष
इस सन्दर्भ में भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में भी 'चतुर्युग' की गणना का उल्लेख किया है।
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