महाभारत शास्त्रों के अनुसार उत्क्षेप (Upthrust) क्या है । कर्ण का जन्म रहस्य।
आधुनिक भौतिक विज्ञान के अनुसार उत्क्षेप (upthrust)
से तात्पर्य है कि - यदि किसी पिण्ड को रस्सी से बांधकर जल में डुबोया जाय तो उस पर नीचे से एक बल लगता है तथा वह वस्तु वायु की अपेक्षा जल में कम भारी प्रतीत होती है। भार में यह कमी जल द्वारा वस्तु पर लगाए गए बल के कारण होती है। इस बल को द्रव का 'उत्क्षेप' (upthrust) अथवा 'उत्प्लावन बल' कहते हैं।
मल्वं बिभ्रती गुरूभृद् भद्रपापस्य निधनं तितिक्षुः । वराहेण पृथिवी संविदानां सूकराय वि जिहीते मृगाय ।।अथर्व. वे. 12.1.48
द्रव की भाँति वायु भी वस्तुओं पर उत्क्षेप लगाती है।
यदि किसी वस्तु को पहले निर्वात में तथा फिर वायु में तोला जाए तो दोनों भारों में कुछ अन्तर आता है, जोकि वस्तु द्वारा हटायी गयी वायु के भार के बराबर होता है अर्थात् वायु भी द्रव की तरह वस्तुओं पर उत्क्षेप (upthrust) लगाती है क्योंकि वायु का घनत्व बहुत कम होता है अतः वायु का उत्क्षेप बहुत कम होता है। महाभारत काल में विद्वान्, ऋषि आदि वायु के उत्क्षेप से सम्बन्धित गुणों से भली-भाँति परिचित थे। इस सन्दर्भ में महाभारत के शान्ति पर्व में भीष्म पितामह द्वारा युधिष्ठिर के प्रति वायु के गुणों का वर्णन करते हुए कथन है कि अनियत स्पर्श, वाइन्द्रिय की स्थिति, चलने-फिरने आदि की स्वतंत्रता, बल, शीघ्रगामिता, मलमूत्र आदि को शरीर से बाहर निकालना, उत्क्षेपण आदि कर्म क्रिया शक्ति, प्राण और जन्म मृत्यु ये सब वायु के गुण हैं।' इस वर्णन में वायु का एक गुण उत्क्षेप बताया गया है जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि महाभारतकार उत्क्षेपण के वैज्ञानिक रहस्य से भली-भाँति परिचित थे।
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत में
वायु तथा जल दोनों के उत्क्षेप (Upthrust) को उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया है। जल के उत्क्षेप के सन्दर्भ में अनुशासन पर्व के प्रथम अध्याय में वर्णन मिलता है। इस अध्याय में भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को सांत्वना देने के लिए (गौतमी) ब्राह्मणी, व्याघ्र, सर्प, मृत्यु और काल के संवाद का उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार एक बूढ़ी ब्राह्मणी (गौतमी) का पुत्र सांप के काटने से मर जाता है तभी एक व्याघ्र उस सांप को पकड़कर गौतमी के पास लाता है तब ब्राह्मणी (गौतमी) द्वारा उस व्याध के प्रति कथन है कि संसार में धर्माचरण करके जो अपने को हल्के रखते हैं (अपने ऊपर पाप का भारी बोझ नहीं लादते हैं) वे पानी के ऊपर चलने वाली नौका के समान भवसागर से पार हो जाते हैं, परन्तु जो पाप के बोझ से अपने को बोझिल बना लेते हैं, वे जल में फेंके गए हथियार की भाँति नरक
वायोरनियमस्पर्शी वादस्थानं स्वतंत्रता। बलं शैध्यं च मोक्षं च कर्म चेष्टाऽऽत्मता भवः ।। महा. भा. शान्ति पर्व 255.6
समुद्र में डूब जाते हैं। इस वर्णन में ब्राह्मणी द्वारा कहे गए वचनों की समानता प्लवन के सिद्धान्तों से की जा सकती है, यथा – पाप के बोझ से हीन व्यक्ति हल्का हो नाव के समान तैरता है, प्लवन ने अपने सिद्धान्त में भी यही कहा है कि हल्की वस्तु पानी में तैरती है क्योंकि यदि वस्तु अपने वजन से अधिक पानी हटाती है तो वह तैरती है और पाप के बोझ से युक्त मनुष्य भारी हो हथियार के समान समुद्र में डूब जाता है क्योंकि यदि कोई हथियार समुद्र में फेंका जाए तो वह भारी होने के कारण तथा अपने वजन से कम पानी हटाने के कारण डूब जाता है। इसी कारण बड़े-बड़े जहाज तैरते हैं और लोहे की कील डूब जाती है, महाभारत के अनुशासन पर्व में जल उत्क्षेपण या उत्पलावन बल का उल्लेख किया गया है। इस पर्व में विश्वामित्र को ब्राह्मणत्व की प्राप्ति का वर्णन करते हुए भीष्म का युधिष्ठिर के प्रति कथन है कि- पूर्वकाल में विश्वामित्र के भय से अपने शरीर को रस्सी से बाँधकर श्रीमान् वसिष्ठ अपने आपको एक नदी के जल में डुबो रहे थे, परन्तु उस नदी के द्वारा पाशरहित (बन्धनमुक्त) हो पुनः ऊपर उठ आये।
महात्मा वसिष्ठ के उस महान कर्म से विख्यात हो वह पवित्र नदी उसी दिन से विपाशा कहलाने लगी। इस वर्णन से प्रतीत होता है कि नदी ने उत्पलावन बल उत्क्षेपण के कारण ही महर्षि वसिष्ठ को ऊपर उठा दिया। इसे इस रूप में भी समझा जा सकता है कि जब कोई वस्तु जल में गिर जाती है या डुबोयी जाती है तो उसपर नीचे (पानी) की ओर से एक बल कार्य करता है जिसे उत्पलावन बल उत्क्षेपण कहते हैं।
प्लवन्ते धर्मलाघवो लोकेऽम्भसि यथा प्लवाः। भज्जन्ति पापगुरवः शस्त्रं स्फन्नमिवोदेक।।- महा. भा. अनु. पर्व. 1.22. 2
आधुनिक भौतिक विज्ञान के अनुसार, सर्वप्रथम उत्लावन बल अर्थात् जल के उत्क्षेप का अध्ययन आर्कमिडीज नामक वैज्ञानिक ने किया था। इसके आधार पर उन्होंने एक सिद्धान्त निकाला जिसे "आर्किमिडीज का सिद्धान्त” कहते हैं। यथा - "जब कोई वस्तु किसी द्रव में पूरी अथवा आंशिक रूप से डुबोयी जाती है तो उसके भार में कमी का आभास होता है। भार में यह आभासी कमी उस वस्तु के डूबे हुए भाग द्वारा हटाये गये द्रव के भार के बराबर होती है। महर्षि वेद व्यास ने महाभारत में अनेक वैज्ञानिक तथ्यों का उल्लेख किया है। महाभारत के वन पर्व में कर्ण के जन्म की कथा भी वैज्ञानिक रहस्य से अनुस्यूत प्रतीत होती है। इस सन्दर्भ में महात्मा वैशम्पायन द्वारा राजा जनमेजय के प्रति कर्ण के जन्म की कथा का वर्णन किया गया है जिसके अनुसार दुर्वासा ऋषि की सेवा-शुश्रूषा के फलस्वरूप कुन्ती (पृथा) ने एक अद्भुत मंत्र प्राप्त किया। जिसकी सहायता से वह किसी भी देवता को बुला सकती थी तथा उसके द्वारा पुत्र प्राप्त कर सकती थी। अतःकौमार्यवस्था की चञ्चलता के कारण कुन्ती ने कौतूहलवश सूर्यदेव का आवाहन कर उस मंत्र की परीक्षा की।
जिसके कारण उसे सूर्यदेव से एक पुत्र प्राप्त हुआ परन्तु लोक लाज के भय से कुन्ती ने अपने पुत्र को त्यागना ही उचित समझा। उस बालक के उत्पन्न होते ही भामिनी कुन्ती ने धाय से सलाह लेकर एक पिटारी मंगवायी और उसमें सब ओर सुन्दर मुलायम बिछौने बिछा दिए। इसके बाद उस पिटारी में चारों आर मोम लगा दिया, जिससे उसके भीतर जल न प्रवेश कर सके। जब वह (पिटारी) सब तरह से चिकनी और सुखद हो गयी तब उसके भीतर उस बालक को सुला दिया और उस पिटारी का ढक्कन बंद कर जातमात्रं च तं गर्भ धात्र्या सम्मन्त्र्य भाविनी। मञ्जूषायां समाधाय स्वास्तीर्णायां समन्ततः ।।
मधूच्छिष्ट स्थितायां सा सुखायां रूदती तथा। श्लक्षणायां सुपिधानायामश्वनद्या मवा सृजत् ।।- महा. भा. वन पर्व 3086-7
भली-भाँति ज्ञात थी कि यदि पिटारी के चारों ओर मोम लगा दिया जाए तो नदी का जल उसमें प्रवेश नहीं करेगा। वैज्ञानिक दृष्टि से इस तथ्य को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है कि पिटारी के छिद्र, मोम के लगा देने से लगभग बन्द हो जाते हैं अथवा बहुत सूक्ष्म हो जाते हैं जिससे पानी के अणु उस छिद्र से बड़े होने के कारण पिटारी में प्रवेश नहीं कर पाते हैं। साथ ही पिटारी की लकड़ी गीली होकर भारी नहीं हो पाती है। अतः इससे यह प्रतीत होता है कि कुन्ती को अणु-परमाणु तथा उत्प्लावन बल का भली-भाँति ज्ञान था, वह जानती थी कि पिटारी में शिशु को रखने पर तथा नदी में डालने पर वह नदी के जल में डूब सकता है। इसी कारण उसने पिटारी के चारों ओर मोम लगवाया जिससे जल पिटारी में न जा सके और जल से न भीगकर लकड़ी हल्की बनी रहे और नदी में डाले जाने पर वह अपने वजन से अधिक जल हटाकर तैरती रहे अतः पिटारी के तैरने के सन्दर्भ में प्लवन के सिद्धान्त का सङ्केत मिलता है। अतः यह माना जा सकता है कि कुन्ती एक विदुषी महिला थी जिसे अणु परमाणु तथा प्लवन के सिद्धान्त का भली-भाँति ज्ञान था।
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