मनुष्य गृहस्थ जीवन में कब प्रवेश करता है - Household Life - गृहस्थ में कैसे रहें
गृहस्थ जीवन के लोगो को र्नित्य प्रति देवता गौ ब्राह्मण सिद्ध गण वयोवृद्ध तथा आचार्य जनों का सरकार अर्चना अवश्य करना चाहिए और सुबह शाम के समय मै शंध्या वंदना अग्नि होत्रादि कर्म करने चाहिये, गृहस्थ पुरुष सदा ही संयम पूर्वक रह कर बिना कही से कटे हुए दो वस्त्र उत्तम ओषधियाँ और गारुड मरकत आदि विष नष्ट करने वाले रत्न धारण करे, वह केशो को स्वच्छ और चिकना रखे तथा सर्वदा सुगन्ध युक्त सुन्दर वेष और मनोहर श्वेत पुष्प धारण करे, किसी का थोड़ा सा भी धन हरण न करे किसी के धन छीन कर ना खाए और थोड़ा सा भी अप्रिय भाषण न करे जो कड़क और अनाकर्शित हो ऐसा अप्रिय वचन भी कभी न बोले और न कभी दूसरो के दोषो को ही कहे तथा दूसरे की स्त्री पुत्री अथवा दूसरों के साथ वैर करने में कभी रुचि न करे,
निन्दित सवारी में कभी न चढ़े और नदी तीर की छाया का कभी आश्रय न ले, बुद्धिमान् पुरुष लोक विद्विष्ट पतित उन्मत्त और जिसके बहुत से शत्रु हों ऐसे पर पीडक पुरुषो के साथ तथा कुलटा कुलटा के स्वामी क्षुद्र मिथ्यावादी अति व्ययशील निन्दापरायण और दुष्ट पुरुषो के साथ कभी मित्रता न करे और न कभी मार्ग में अकेला चले, जल प्रवाह के वेग में सामने पड़ कर स्नान न करे जलते हुए घर में प्रवेश न करे और वृक्ष की चोटी पर न चढ़े, दाँतो को परस्पर न घिसे नाक को न कुरेदे तथा मुख को बन्द किये हुए जमुहाई न ले और न बन्द मुख से खाँसे या श्वास छोड़े, बुद्धिमान् पुरुष जोर से न हँसे और शब्द करते हुए अधोवायु न छोड़े तथा नखो को न चबावे तिनका न तोड़े और पृथिवी पर भी न लिखे, विचक्षण पुरुष मूंछ दाढ़ी के बालो को न चबावे दो ढेलो को परस्पर न रगड़े और अपवित्र एवं निन्दित नक्षत्रो को न देखे, नग्न पर स्त्री को और उदय अथवा अस्त होते हुए सूर्य को न देखे तथा शव और शव गन्ध से घृणा न करे क्यो कि शव गन्ध सोम का अंश है,
गृहस्थ का अर्थ, गृहस्थ जीवन में कैसे रहे, गृहस्थ जीवन कैसे जीना चाहिए?
चौराहा चैत्य वृक्ष श्मशान उपवन और दुष्टा स्त्री की समीपता इन सब का रात्रिbके समय सर्वदा त्याग करे, गृहस्थ जन अपने पूजनीय देवता ब्राह्मण और तेजोमय पदार्थों की छाया को कभी न लाँघे तथा शून्य वन खण्डी और शून्य घर में कभी अकेला न रहे, केश अस्थि कण्टक अपवित्र वस्तु बलि भस्म तुष तथा स्नान के कारण भीगी हुई पृथिवी का दूर ही से त्याग करे, प्राज्ञ पुरुष को चाहिये कि अनार्य व्यक्ति का संग न करे कुटिल पुरुषbमें आसक्त न हो सर्प के पास न जाय और जग पड़ने पर अधिक देर तक लेटा न रहे, जागने सोने स्नान करने बैठने शय्या सेवन करने और व्यायाम करने में अधिक समय न लगावे, दाँत और सींग वाले पशुओ को ओस को तथा सामने की वायु और धूप का सर्वदा परित्याग करे, नग्न होकर स्नान शयन और आचमन न करे तथा केश खोल कर आचमन और देव पूजन न करे, होम तथा देवार्चन आदि क्रियाओ में आचमन में पुण्याहवाचन में और जप में एक वस्त्र धारण करके प्रवृत्त न हो, संशयशील व्यक्तियोंके साथ कभी न रहे।
सदाचारी पुरुषोंका तो आधे क्षणका संग भी अति प्रशंसनीय होता है॥ बुद्धिमान् पुरुष उत्तम अथवा अधम व्यक्तियोंसे विरोध न करे। हे राजन् विवाह और विवाद सदा समान व्यक्तियोंसे ही होना चाहिये॥ प्राज्ञ पुरुष कलह न बढ़ावे तथा व्यर्थ वैरका भी त्याग करे। थोड़ीसी हानि सह ले किन्तु वैरसे कुछ लाभ होता हो तो उसे भी छोड़ दे ॥ स्नान करनेके अनन्तर स्नानसे भीगी हुई धोती अथवा हाथोंसे शरीरको न पोंछे तथा खड़ेखड़े केशोंको न झाड़े और आचमन भी न करे॥ पैरके ऊपर पैर न रखे गुरुजनोंके सामने पैर न फैलावे और धृष्टतापूर्वक उनके सामने कभी उच्चासनपर न बैठे॥ देवालय चौराहा मांगलिक द्रव्य और पूज्य व्यक्तिइन सबको बायीं ओर रखकर न निकले तथा इनके विपरीत वस्तुओंको दायीं ओर रखकर न जाय, चन्द्रमा सूर्य अग्नि जल वायु और पूज्य व्यक्तियोंके सम्मुख पण्डित पुरुष मलमूत्रत्याग न करे और न थूके ही, खड़ेखड़े अथवा मार्गमें मूत्रत्याग न करे तथा श्लेष्मा थूक विष्ठा मूत्र और रक्तको कभी न लाँघे,
ग्रस्त जीवन के नियम, सुखी जीवन जीने का रहस्य
भोजन देवपूजा मांगलिक कार्य और जपहोमादिके समय तथा महापुरुषोंके सामने थूकना और छींकना उचित नहीं है, बुद्धिमान् पुरुष स्त्रियोंका अपमान न करे उनका विश्वास भी न करे तथा उनसे ईर्ष्या और उनका तिरस्कार भी कभी न करे, सदाचार परायण प्राज्ञ पुरुष मांगलिक द्रव्य पुष्प रत्न घृत और पूज्य व्यक्तियोंका अभिवादन किये बिना कभी अपने घरसे न निकले, चौराहोंको नमस्कार करे यथासमय अग्निहोत्र करे दीनदुःखियोंका उद्धार करे और बहुश्रुत साधु पुरुषोंका सत्संग करे, जो पुरुष देवता और ऋषियोंकी पूजा करता है पितृगणको पिण्डोदक देता है और अतिथिका सत्कार करता है वह पुण्यलोकोंको जाता है, जो व्यक्ति जितेन्द्रिय होकर समयानुसार हित मित और प्रिय भाषण करता है हे राजन् वह आनन्दके हेतुभूत अक्षय लोकोंको प्राप्त होता है, बुद्धिमान् लज्जावान् क्षमाशील आस्तिक और विनयी पुरुष विद्वान् और कुलीन पुरुषोंके योग्य उत्तम लोकोंमें जाता है, अकाल मेघगर्जनके समय पर्वदिनोंपर अशौच कालमें तथा चन्द्र और सूर्यग्रहणके समय बुद्धिमान् पुरुष अध्ययन न करे, जो व्यक्ति क्रोधितको शान्त करता है सबका बन्धु है मत्सरशून्य है भयभीतको सान्त्वना देनेवाला है और साधुस्वभाव है उसके लिये स्वर्ग तो बहुत थोड़ा फल है॥३७॥ जिसे शरीररक्षाकी इच्छा हो वह पुरुष वर्षा और धूपमें छाता लेकर निकले तथा रात्रि काल मै और वन आदि वीरान स्थल में दण्ड अर्थात कोई सुरक्षा अस्त्र साथ मै अवश्य लेकर जाना चाहिए और यत्र घर से बाहर कहीं किसी भी स्थान जगह आदि पर जाए तो चप्पल जूते पैर मै अवश्य पहन लिया करे।
बुद्धिमान् पुरुषको ऊपरकी ओर इधरउधर अथवा दूरके पदार्थोंको देखते हुए नहीं चलना चाहिये केवल युगमात्र चार हाथ पृथिवीको देखता हुआ चले, जो जितेन्द्रिय दोषके समस्त हेतुओंको त्याग देता है उसके धर्म अर्थ और कामकी थोड़ीसी भी हानि नहीं होती, जो विद्याविनयसम्पन्न सदाचारी प्राज्ञ पुरुष पापीके प्रति पापमय व्यवहार नहीं करता कुटिल पुरुषोंसे प्रिय भाषण करता है तथा जिसका अन्तकरण मैत्रीसे द्रवीभूत रहता है मुक्ति उसकी मुट्ठीमें रहती है, जो वीतरागमहापुरुष कभी काम क्रोध और लोभादिके वशीभूत नहीं होते तथा सर्वदा सदाचारमें स्थित रहते हैं उनके प्रभावसे ही पृथिवी टिकी हुई है। अतः प्राज्ञ पुरुषको वही सत्य कहना चाहिये जो दूसरोंकी प्रसन्नताका कारण हो। यदि किसी सत्य वाक्यके कहनेसे दूसरोंको दुःख होता जाने तो मौन रहे, यदि प्रिय वाक्यको भी अहितकर समझे तो उसे न कहे उस अवस्थामें तो हितकर वाक्य ही कहना अच्छा है भले ही वह अत्यन्त अप्रिय क्यों न हो, जो कार्य इहलोक और परलोकमें प्राणियों के हितका साधक हो मतिमान् पुरुष मन वचन और कर्मसे उसीका आचरण करे,
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