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Purano mai gali galoch apshabd kaha gya hai - आर्य समाजियों की धूर्तता

आर्य समाजियों की धूर्तता

पुराणों में रंडी शब्द भी नहीं है और ये रंडियों जैसे कर्म अपनाकर ऐसी ही बाते करते हैं।


जो बात भगवान शिव के बारे लिखी हैं ये पूर्णतया असत्य है इन धूर्तों ने गूगल पर भी शिव पुराण विषय सूची पर एडिट करके डाल रखी है उदाहरण तया धर्म संहिता शिव पुराण में भगवान विष्णु का चरित्र खराब कर रखा है जबकि शिवमहापुराण में कहीं भी धर्म संहिता है ही नहीं।




अब महानंदा वेश्या की

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जो कहानी डाल रखी है वो ये है जिसमें शिव का चरित्र खराब कर रखा है इन धूर्त ईसाई एजेंटों ने।जबकि ऐसा नहीं हैः


सत्य ये है कि नंदीग्राम में महानंदा एक वेश्या थी जो कि वेश्या होने के बाद भी भगवान शिव की परमभक्त थी और नित्य शिवलिंग का अभिषेक करती थी।


भगवान शिव के दर्शनों की अभिलाषी थी।अतः भगवान शिव ने पहले महानंदा को दर्शन देने से पहले उसकी परीक्षा लेने के लिये एक वैश्य का रूप बनाया और वैश्यनाथ भगवान शिव का एक माया अवतार था।


जोकि महानंदा की परीक्षा लेने के लिये उसके पास गया और उस वैश्यनाथ ने महानंदा के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा ।परंतु महानंदा ने कहा कि हमारे कुल में विवाह नहीं होते केवल व्यभिचार करना ही धर्म है इसमें कुछ संशय नहीं 


यदि यह हाथ का भूषण आप मुझे दोगे तो मैं तीन दिन रात तुम्हारी पत्नी बन कर रहूंगी।


समीक्षाः


दिनत्रयमहोरात्रंपत्नी तव भवाम्यहम्।। महानंदा उवाच

अर्थात्

वेश्या बोली 

हे वैश्य मैं तीन दिन तथा तीन रात तुम्हारी भार्या बनकर रहूंगी।

यहां संभोग शब्द कहां से घुसा दिया?

 ये आर्य समाजियों की बुद्धि वास्तव में वासना संभोग विषय में ही रमती है।

दूसरा रंडी शब्द आया कहां से?

अब इनके दयानंद ने तो कुतिया कहा वेश्या को तो ये तो कहेंगे क्या?

वास्तव में हमारे धर्म में चाहे वेश्या ही क्यों न हो स्त्री होने के नाते कभी गलत नहीं बोलेंगे।

वैश्य ने कहा तथास्तु।

महानंदा ने तीन बार कहकर सूर्य और चंद्रमा को साक्षी कर प्रसन्नता पूर्वक उस वैश्य के ह्रदय को स्पर्श करती हुई बोली।

तब वैश्य ने उस वेश्या को रत्न जडित कंकण देकर उसके हाथ में रत्नय शिवलिंग देकर कहा

हे कांते यह रत्नजडित शिवलिंग जोमेरे प्राणों से भी प्यारा है तू इसकी रक्षा करना और यत्न से छिपाना

नंदीश्वर बोले।ऐसा ही होगा।

इस प्रकार वह रत्नजडित शिवलिंग लेकर नाट्यशाला के मध्य में उसने घर में प्रवेश किया।

तब वह वेश्या उस वैश्य के पास गई और वहां उसे शिव माया से नींद आ गई और वह सो गई।

अब उस वैश्य के इच्छा सेनृत्यमंडप में अकस्मात् वाणी हुई

हे तात् तेज पवन की सहायता से अग्नि प्रज्वलित होकर इस नाटय भवन को ले उडा है अर्थात् जलने लगी है।अब वेश्या घबराकर उठी और बंधन से उसने बंदर को खोला तब वह नटी बंदर बंधन से खुलकर आग से दूर भाग गया।ये बंदर वेश्या के साथ मनोरंजन किया करता था।

वहां खंबों के साथ शिवलिंग जलकर खंड खंड हो गया।यह देखकर दोंनो दुखी हुये।ओर वैश्य ने वहां चिता बनायी और उसमें वैश्य जल गया ।

अब महानंदा वेश्या दुखी हुईकि रत्न कंकण लेकर मैं इसकी पत्नी हुई मेरे कर्म से यह शिवव्रतधारी मरा है।इसलिये अब मैं भी इस वैश्य के साथ जलकर प्राण त्यागूंगी।

सत्य वचन बोलने वाली वह वेश्या अपना सर्वस्व ब्राहमणों को दानकर सदा शिव का ध्यान कर उसमें प्रवेश करने लगी ।तब शिवजी प्रकट हुयेऔर उसका निवारण किया।

शिवजी बोले ये सब मेरी ही माया है और वह वैश्य मैं ही था और तेरी भक्ति से मैं प्रसन्न हूँ।

तब उस महानंदा को मोक्ष का वरदान दिया और उसे अपने वैश्यनाथ अवतार क चरित्र वर्णन किया।

वह महानंदा तब देहत्यागकर शिवलोक को प्राप्त हुई।

अब आर्य समाजियों की बुद्धि बताये इसमें क्या गलत है।इस कथा कहां गलत है।एक वेश्या से भी गिरे हुये आर्य समाजी हैंधूर्त मक्कारों पूरी कथा ये है और तुम तो अपने माता पिता का चरित्र खराब कर दो तुम्हारा क्या है?

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